नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल का बड़ा खुलासा
नई दिल्ली। नगारकिता संशोधन कानून में जिस तरह से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को नागरिकता देने से इनकार किया गया है उसके बाद इस कानून का लगातार विरोध हो रहा है। इस कानून के तहत तीनों ही देश के हिंदू,सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इस कानून को लेकर दिग्गज संवैधानिक विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल सुभाष कश्यप ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया है कि ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी में नागरिकता संशोधन बिल में इस प्रावधान को लेकर चेताया था। उन्होंने कहा कि बिल में किसी भी धर्म का जिक्र नहीं करने का सुझाव दिया था और सिर्फ प्रताड़ित अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।
बिना धर्म का जिक्र किए भी उद्देश्य पूरा होता
कश्यप ने सुझाव दिया था कि इस कानून के तहत जिन लोगों का शामिल किए जाने का उद्देश्य है उन्हें प्रताड़ित अल्पसंख्यक शब्द इस्तेमाल करके भी लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मेरा मानना था कि दोनों ही एक बात एक होती, यह मैंने जेपीसी में कही थी। इस बात की कोई जरूरत नहीं थी कि हिंदू, सिख, जैन, बैद्ध, पारसी, ईसाई धर्म के लोगों का जिक्र किया जाए, इन धर्मों का जिक्र किए बगैर भी उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती थी कि इन देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी जाए।
हिंसक
प्रदर्शन
की
आलोचना
की
बता
दें
कि
कश्यप
छठी,
सातवीं,
आठवीं
और
नौंवी
लोकसभा
के
सेक्रेटरी
जनरल
थे।
उन्होंने
कहा
कि
अब
इस
बिल
के
कानून
बन
जाने
के
बाद
इसे
अब
कोर्ट
के
द्वारा
ही
बदला
जा
सकता
है।
इस
कानून
के
खिलाफ
हिंसक
प्रदर्शन
की
आलोचना
करते
हुए
कश्यप
ने
कहा
कि
लोगों
को
यह
नहीं
भूलना
चाहिए
कि
इसी
संविधान
हमे
सुप्रीम
कोर्ट
की
भी
सुविधा
दी
है।
संविधान
को
मानने
वाले
के
तौर
पर
हमे
इस
बात
को
स्वीकार
करना
चाहिए
कि
इसे
सही
करने
का
रास्ता
मौजूद
है
और
यह
हिंसक
प्रदर्शन
नहीं
है।
कोर्ट में चुनौती दी जा सकती थी
कश्यप ने कहा कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसे किसी भी लोकतांत्रित तरीके से चुनौती दी जा सकती है। वहीं जब कश्यप से पूछा गया कि जिन लोगों ने इस बिल का संसद में विरोध किया उनकी संख्या कम थी, इसपर उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने संसद में इस बिल का समर्थन किया वो अब इसका विरोध कर रहे हैं, ये लोग वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वह जनता के प्रतिनिधि नहीं है, जहां तक संविधान की बात है कि यह फैसला गलत है या सही लेकिन यह फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने लिया है।