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ये कारण है जिनसे कभी नहीं बन सकती तीसरे मोर्चे की सरकार

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नई दिल्‍ली। अगर आ रहे सर्वे को आधार मानें तो एनडीए की सरकार बनने और नरेंद्र मोदी के भारत का अगला प्रधानमंत्री बनने में अब कोई संदेह नहीं है। टाइम्‍स नाऊ और सी वोटर सर्वे के अनुसार एनडीए को 217 से 237 सीटें मिलती हुई दिखाई दे रही हैं, जबकि यूपीए 91 से 111 की बीच सिमटती हुई नजर आ रही है। कुछ मिलाकर 2009 के मुकाबले एनडीए का वोट प्रतिशत 36 फीसदी तक बढ़ता दिख रहा है, वहीं यूपीए 36 से 22 फीसदी पर आ रही है। सीटों की संख्‍या दर्शाती हैं कि एनडीए को सरकार बनाने के लिए 50 से 60 सीटों की जरूरत होगी, जो कि अन्‍य दलों के मिलने से पूरी हो सकती है।

ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्‍या कांग्रेस को लगभग 90 सीटें मिलने पर तीसरे मोर्चे की पार्टियां कांग्रेस के सहयोग से सरकार बना सकती हैं? क्‍योंकि तीसरे मोर्चे की पार्टियों को 205 से 225 सीटें तक मिल सकती हैं। विश्‍लेषकों का कहना है कि तीसरा या चौथा मोर्चा सिर्फ कल्‍पना भर है, सच तो यह है कि इनमें से कुछ पार्टियां ऐसी हैं जो कि किसी भी स्थिति में एक साथ नहीं आ सकती हैं, सिर्फ पेपर पर ही इनकी सीटों की संख्‍या अधिक दिखाई जा रही हैं।

एनडीए के बहुमत की तरफ बढ़ने से ही अमेरिका मोदी के प्रति अपना बदला हुआ रूझान दिखा रहा है और उम्‍मीद की जा रही है कि जल्‍द ही वीजा भी उन्‍हें जारी कर दिया जाएगा। खास बात है कि मोदी की निवेश नीति के चलते प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में अमेरिका उनसे ज्‍यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्‍लीन चिट मिलने पर अब उन्‍हें प्रतिबंधित करने का कोई भी कारण नहीं रह जाता है। मोदी के पीएम बनने का रास्‍ता तीसरे मोर्चे की सरकार बनने के कारण ही रूक सकता है।

ऐसे में देखें तीसरे या चौथे मोर्चे की सरकार क्‍यों नहीं बन सकती है-

सबसे बड़ी पार्टी भाजपा

सबसे बड़ी पार्टी भाजपा

सर्वे के अनुसार भाजपा को लगभग 202 और कांग्रेस को 89 सीटें मिल रही हैं। तीसरा या चौथा मोर्चा चुनाव परिणाम आने के बाद की कल्‍पना मात्र है। अत: सरकार बनाने की स्थिति में भाजपा ही होगी और पार्टी को अन्‍य दलों का समर्थन मिल सकता है।

तीसरा और चौथा मोर्चा सिर्फ कागजी कल्‍पना है

तीसरा और चौथा मोर्चा सिर्फ कागजी कल्‍पना है

सच तो यह है कि तीसरे मोर्चे की पार्टियां जैसे सपा और बसपा, तृणमूल कांग्रेस और वाम, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की पार्टियां कभी एक साथ आ ही नहीं सकती हैं। अगर सिर्फ सत्‍ता पाने के लिए साथ आ भी गई तो प्रधानमंत्री पद को लेकर इनमें हो रही तकरार कभी किसी निर्णय पर एक साथ नहीं आ सकती हैं।

तीसरा मोर्चा ओर वाम दल

तीसरा मोर्चा ओर वाम दल

अगर वाम दलों को कांग्रेस का समर्थन मिलता है तो उनके पास अधिकतम 128 सीटें ही हो सकती हैं, मतलब बहुमत के आंकड़े से यह संख्‍या काफी कम है। जबकि तृणमूल के नेतृत्‍व में चौथा मोर्चा बनने की स्थिति में टीएमसी केवल 87 सीटें ही जुटा सकती है।

भाजपा के सभी विपक्षी एक हो जाएं तो

भाजपा के सभी विपक्षी एक हो जाएं तो

अगर भाजपा के विरोध में तीसरे मोर्चे की कई पार्टियां एकमत हो जाएं और यूपीए 3 का निर्माण करें तो मोदी को केंद्र में आने से रोंका जा सकता है लेकिन ऐसी स्थिति में राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बन पाना संभव नहीं है। अत: यूपीए थ्री बनेगा यह भी कहना मुश्किल है।

प्रधानमंत्री पद एक बड़ा मुद्दा

प्रधानमंत्री पद एक बड़ा मुद्दा

तीसरे मोर्चे में प्रधानमंत्री पद को लेकर बड़ी खींचतान है। जयललिता, ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव सभी पीएम पद को लेकर अपनी तीव्र इच्‍छा जाहिर कर चुके हैं अत: इस पद के लिए प्रत्‍याशी को लेकर सहमति बनती नहीं दिख रही है।

क्षेत्रीय पार्टियों के वोट में सेंध लगा रही है भाजपा

क्षेत्रीय पार्टियों के वोट में सेंध लगा रही है भाजपा

पूर्वोत्‍तर और और देश के दक्षिण और पूर्व में मोदी की रैलियों को मिल रहे भारी समर्थन के आधार पर कहा जा सकता है कि भाजपा बिहार में जदयू, हरियाणा में आईएनएलडी, असम में एजीपी, महाराष्‍ट्र में एमएनएस और एनसीपी, कर्नाटक में जेडीएस, जम्‍मू कश्‍मीर में नेशनल कांफ्रेंस और उत्‍तर प्रदेश में सपा और आरएलडी के वोट बैंक में सेंध लगा रही है। अत: तृणमूल 19 से 24, सीटें लेकर केंद्र में बड़ी भूमिका नहीं निभा सकती है।

केरल और तमिलनाडु में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा

केरल और तमिलनाडु में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा

आंकड़ों के अनुसार दक्षिणी राज्‍यों केरल और तमिलनाडु में भाजपा को भले ही सीटें न मिल पा रही हो पर पार्टी को वोटों में हिस्‍सेदारी मिल रही है। केरल में भाजपा का वोट प्रतिशत 16 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 14 प्रतिशत है।

सिर्फ आंध्र प्रदेश में मजबूत हो रही हैं क्षेत्रीय पार्टियां

सिर्फ आंध्र प्रदेश में मजबूत हो रही हैं क्षेत्रीय पार्टियां

सिर्फ आंध्र प्रदेश ही ऐसा राज्‍य है जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत स्थिति में नजर आ रही हैं। टीआरएस, टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस प्रत्‍येक को 10 से 13 सीटें मिलती हुई नजर आ रही हैं। हालांकि भाजपा को यहां दो सीटें मिलने की संभावना है।

भाजपा के साथ दिल्‍लीवासियों का अधिक समर्थन

भाजपा के साथ दिल्‍लीवासियों का अधिक समर्थन

सिर्फ आंध्र प्रदेश ही ऐसा राज्‍य है जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत स्थिति में नजर आ रही हैं। टीआरएस, टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस प्रत्‍येक को 10 से 13 सीटें मिलती हुई नजर आ रही हैं। हालांकि भाजपा को यहां दो सीटें मिलने की संभावना है।

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English summary
See here are the reasons why third front can't be a reality in upcoming Lok Sabha election 2014.
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