दूसरे चरण का लोकसभा चुनाव 2019: बिहार की वो सीटें जहां होगा दिलचस्प मुक़ाबला
लोकसभा चुनाव में बिहार में तेजस्वी यादव का महागठबंधन भारी पड़ेगा या मोदी-नीतीश का एनडीए, इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है.
लोकसभा चुनाव में बिहार में तेजस्वी यादव का महागठबंधन भारी पड़ेगा या मोदी-नीतीश का एनडीए, इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है. एनडीए में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड 17-17 सीटों पर लड़ रहे हैं और 6 सीटों पर लोकजनशक्ति पार्टी. उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश निषाद ने महागठबंधन से जुड़कर चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है.
जानते हैं कि वे कौन सी सीटें हैं जो इन चुनावों में बिहार का राजनीतिक भविष्य तय कर सकती हैं.
मधेपुरा
महागठबंधन ने मधेपुरा से शरद यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. लेकिन मुक़ाबला दिलचस्प हो गया जब पप्पू यादव ने भी इसी सीट से लड़ने की घोषणा कर दी जो कभी खुद राष्ट्रीय जनता दल की सीट से लड़कर शरद यादव को 2014 चुनावों में हरा चुके हैं.
वक्त-वक्त की बात है कि शरद यादव तब जदयू के नेता हुआ करते थे. पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस की सुपौल से उम्मीदवार हैं जो बिहार में महागठबंधन का हिस्सा है.
इस बार जेडीयू ने दिनेश चंद्र यादव को यहां से टिकट दी है जो पहले भी कई बार सांसद रह चुके हैं और बिहार सरकार में मंत्री भी.
पटना साहिब
गांधी मैदान पटना साहिब की एक बड़ी पहचान है जहां कई बड़े नेताओं ने रैलियां की हैं. कभी सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया और अटल बिहारी वाजपेयी भी रैलियां कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यहां रैली की है. जयप्रकाश नारायण ने 1974 में इसी मैदान से संपूर्ण क्रांति की बात कही थी.
परिसीमन के बाद 2009 में पहली बार यहां लोकसभा चुनाव हुए जिसमें भाजपा के टिकट पर शत्रुघ्न सिन्हा की जीत हुई. 2014 में वे फिर से यहीं से सांसद बने.
इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काटकर केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद को दे दिया. इस सीट पर कायस्थ वोटर ज्यादा हैं. रविशंकर प्रसाद पिछले कुछ वक्त से अक्सर पटना के दौरे पर भी रहे हैं.
इस क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 5 पर बीजेपी का ही कब्ज़ा है और एक सीट राष्ट्रीय जनता दल के पास है.
इस बार महागठबंधन की ओर से कांग्रेस की टिकट पर शत्रुघ्न सिन्हा यहां से अपनी सीट बचाने के लिए मैदान में उतर रहे हैं.
बेगूसराय
इस लोकसभा सीट पर चुनाव सबके लिए दिलचस्प होगा क्योंकि राष्ट्रद्रोह के केस से सुर्खियों में आए जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार यहीं से चुनाव लड़ रहे हैं.
जाति समीकरण देखा जाए तो यहां भूमिहार वोटर काफ़ी संख्या में हैं और कन्हैया कुमार भी भूमिहार हैं. 1967 में ये सीट सीपीआई की झोली में आई थी. 2014 में पहली बार इस सीट से भाजपा के दिवंगत नेता भोला सिंह ने जीत दर्ज की. अक्तूबर 2018 में उनकी मृत्यु हो गई.
ये भी कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार भाजपा राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा को कन्हैया के मुक़ाबले उतार सकती है लेकिन बीजेपी ने गिरिराज सिंह को वहां से टिकट दे दी. हालांकि गिरीराज सिंह बहुत साफ़ शब्दों में कह चुके हैं कि वे वहां से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं.
महागठबंधन के सीट बंटवारे में ये सीट राजद ने अपने पास रखी है और कन्हैया की पार्टी सीपीआई को महागठबंधन में शामिल नहीं किया है.
सिवान
सिवान लोकसभा सीट से इस बार जदयू-बीजेपी गठबंधन से कविता सिंह को टिकट दी गई है. कविता सिंह जेडीयू से दरौंदा सीट पर विधायक हैं और साथ ही बाहुबली अजय सिंह की पत्नी.
इस सीट पर राजद नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन का दबदबा रहा है जो कि फिलहाल कत्ल के आरोप में जेल में बंद हैं. 1996 से लगातार चार बार शहाबुद्दीन यहां सांसद रहे हैं. शहाबुद्दीन को तेज़ाब कांड में सज़ा होने के बाद 2009 और 2014 में बीजेपी के ओमप्रकाश यादव यहां से सांसद रहे.
ओमप्रकाश यादव पहले जेडीयू में थे लेकिन जब 2009 में पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीते. 2014 में वे बीजेपी में शामिल हो गए और लोकसभा सांसद बने. इन दोनों चुनावों में उन्होंने शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को हराया.
लेकिन इस बार उनका टिकट कट गया और मिला कविता सिंह को. महागठबंधन ने अभी अपना उम्मीदवार तय नहीं किया है लेकिन ऐसी अटकलें हैं कि शहाबुद्दीन अपने बेटे ओसामा को चुनाव लड़वा सकते हैं. हालांकि अभी तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
सिवान की छह विधानसभा सीटों में से 3 जेडीयू, 1 बीजेपी, 1 आरजेडी और एक सीपीआईएमएल के पास है. इस गणित के हिसाब से सीवान लोकसभा सीट पर बीजेपी-जदयू गठबंधन का पलड़ा भारी दिखता है. हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक ख़बर के मुताबिक़ बीजेपी इस सीट को ख़तरे में मान रही है.
वैशाली
गठबंधन में इस बार इस सीट से लोक जनशक्ति पार्टी की वीणा देवी लड़ रही हैं. 2014 में भी लोजपा से ही राम किशोर सिंह सांसद बने थे.
राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह यहां से 5 बार सांसद रहे हैं. लेकिन 2014 में लोक जनशक्ति पार्टी के बाहुबली नेता रमाकिशोर सिंह ने उन्हें एक लाख वोटों से हरा दिया. 1994 के उपचुनाव में बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद इस सीट से जीती थीं. ये एक ऐसी सीट है जहां 1988 तक कांग्रेस का दबदबा रहा था.
एक बार फिर रघुवंश प्रसाद यहां से चुनाव लड़ रहे हैं.
इस क्षेत्र की 6 विधानसभा सीटों में 3 राजद, एक बीजेपी, एक जदयू और एक निर्दलीय के पास है.
हाजीपुर
लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान यहां 2014 में सांसद बने थे. रामविलास पासवान नौ बार लोकसभा सांसद और एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं और ज़्यादातर इसी सीट से उन्होंने चुनाव जीता है.
इस बार ये सीट उन्होंने अपने भाई पशुपति कुमार पारस को लड़ने के लिए दे दी है. महागठबंधन से यहां शिव चंद्र राम लड़ रहे हैं जो राजद के राजा पाकड़ से विधायक हैं. पिछले साल ही उन्होंने कह दिया था कि वे हाजीपुर से चुनाव लड़ेंगे.
ये सीट 1977 से सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और तब पहली बार रामविलास पासवान यहां से सांसद बने थे.
पासवान ने 1977 में भारतीय लोकदल के नेता के रूप में चार लाख से भी ज़्यादा वोटों से ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. फिर 1980 में वे जनता पार्टी सेक्यूलर से चुनाव लड़े और जीते. साल 2000 में उन्होंने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की और फिर इसी सीट से 2004 में लोकसभा सांसद बने.
हालांकि 2009 में जेडीयू के रामसुंदर दास ने उन्हें हरा दिया लेकिन 2014 में वे फिर से इसी सीट से सांसद बने.
कुल मिलाकर इस सीट से 10 बार लड़कर वे 8 बार सांसद बने हैं. लेकिन इस साल इस सीट से ना लड़ने के उनके फैसले ने सभी को हैरान कर दिया है. ऐसी अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा उन्हें राज्यसभा सीट दे सकती है.
लोजपा 2014 में सात सीटों पर लड़ी थी, जिनमें छह सीटों पर उसे जीत मिली.