रिसर्च में दावा: 50 साल बाद भारत में पड़ेगी सहारा रेगिस्तान जैसी 'भीषण गर्मी'
नई दिल्ली। ग्रीनहाउस गैसों और ग्लोबल वार्मिग के चलते लगातार पृथ्वी के वातावरण में परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। इसी बीच एक चौंकाने वाले अध्ययन सामाने आया है। इस अध्ययन के मुताबिक, अगले 50 वर्षों में दुनिया के एक तिहाई यानि 3.5 अरब लोगों को सहारा रेगिस्तान जैसी भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। यह अध्ययन जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज प्रेडिक्ट्स में प्रकाशित हुआ है।
वैश्विक औसत वार्षिक तापमान में 1.8 डिग्री की वृद्धि होगी
नीदरलैंड के वैगननिंगन विश्वविद्यालय के इकोलॉजिस्ट मार्टन शेफ़र के अनुसार जलवायु परिवर्तन से वैश्विक औसत वार्षिक तापमान में 1.8 डिग्री की वृद्धि होगी। इससे लगभग एक अरब लोग गर्मी में बिना एसी के रहने के लिए मजबूर होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कितने लोग खतरे में होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कितना होगा और दुनिया की आबादी कितनी तेजी से बढ़ती है। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि, जनसंख्या वृद्धि और कार्बन प्रदूषण के मामले में सबसे खराब स्थिति के तहत लगभग 3.5 अरब लोग बेहद गर्म क्षेत्रों में रहेंगे। यह 2070 की अनुमानित आबादी का एक तिहाई है। कॉर्नेल विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक नताली महोल्ड ने कहा कि यह कम समय में लोगों की बहुत बड़ी संख्या है। यही कारण है कि हम चिंतित हैं। जलवायु परिवर्तन को अलग तरीके से देखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने भालू, पक्षी और मधुमक्खियों पर अध्ययन किया, जिसे "जलवायु आला" कहते है।
6,000 साल पहले के तापमान का अनुमान लगाया
उन्होंने 6,000 साल पहले के तापमान का अनुमान लगाया जो 52 से 59 डिग्री के बीच औसत वार्षिक तापमान होने की बात कही गई। वैज्ञानिकों ने अनुकूल तापमान वाले स्थानों की तुलना में असुविधाजनक और काफी गर्म स्थानों को देखा और गणना की कि 2070 तक कम से कम 2 अरब लोग उन स्थितियों में रहेंगे। वर्तमान में लगभग 2 करोड़ लोग 29 डिग्री सेल्सियस से अधिक वार्षिक औसत तापमान वाले स्थानों पर रहते हैं, ऐसे स्थान जो अनुकूल तापमान वाले स्थानों से परे हैं। वह क्षेत्र पृथ्वी के 1 फीसदी से कम है, और यह ज्यादातर सहारा रेगिस्तान के पास है, इसमें मक्का, सऊदी अरब शामिल हैं। इसमें भारत भी शामिल होगा।
7.5 डिग्री ज्यादा तापमान तक का सामना करना पड़ेगा
इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के जलवायु वैज्ञानिक और ग्लोबल सिस्टम इंस्टीट्यूट के निदेशक सह-अध्ययनकर्ता टिम लेंटन ने कहा कि नाइजीरिया जैसे गरीब देश की आबादी सदी के अंत तक तीन गुना होने की उम्मीद है, उनकी गर्मी की समस्या से सामना करने की क्षमता कम है। इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में जब औसत 3 डिग्री सेल्सयस का इजाफा होगा, तब इंसानों के अलग-अलग देशों और वहां मौसम के अनुसार 7.5 डिग्री ज्यादा तापमान तक का सामना करना पड़ेगा।
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