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'स्कूल के शिक्षक चाय और स्नैक्स का बिल भरवाते थे'

महेश चौहान ने जातिगत भेदभाव की बात कहते हुई 6 फ़रवरी को आत्महत्या कर ली थी.

By BBC News हिन्दी
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महेश चौहान
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महेश चौहान

गुजरात के वडनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैतृक निवास से महज़ 50 मीटर की दूरी पर है महेश चौहान का घर. यह घर एक दलित बस्ती में है.

पूरी बस्ती में अजीब सा सन्नाटा महसूस किया जा सकता है. महेश के परिवार की आंखें हैरान भी हैं और आंसुओं से भरी हुई भी.

80 साल की बुजुर्ग महेश की मां अचानक उठ खड़ी होती हैं और उनका नाम पुकारने लगती हैं, दूसरी तरफ महेश की तस्वीरों को देख उनकी पत्नी की आंखें बार-बार नम हो जाती हैं, महेश के बड़े भाई इन आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हैं लेकिन छोटे भाई के मासूम बच्चों को देख वे अपना संयम खो देते हैं.

मोदी और महेश एक ही स्कूल से पढ़े

40 वर्षीय महेश वडनगर के उसी बीएन हाईस्कूल से पढ़े थे जहां से देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पढ़ाई की.

मोदी का जन्म वडनगर में ही हुआ था, यहां उन्होंने अपनी ज़िंदगी के कुछ शुरुआती साल गुजारे थे. वे साल 1963 से 1967 तक बीएन हाईस्कूल के छात्र रहे.

वहीं दूसरी तरफ दलित छात्र महेश चौहान ने 90 के दशक में इस स्कूल से पढ़ाई की.

महेश चौहान ने बीती 6 फ़रवरी को यह कहते हुए आत्महत्या कर ली थी कि शेखपुर गांव के शेखपुर प्राइमरी स्कूल में उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है.

महेश ने ये बातें अपने सुसाइड नोट में लिखी थीं. पुलिस ने इसी नोट के आधार पर 7 फ़रवरी को एक शिकायत दर्ज की.

वडनगर
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वडनगर

सरकारी नौकरी करना चाहते थे महेश

महेश वडनगर की दलित बस्ती रोहितवास के निवासी थे, यहां की आबादी 5 हज़ार के आसपास है. पूरे इलाके में लगभग 80 लोग ग्रेजुएट हैं लेकिन इनमें से कुछ गिने-चुने लोग ही सरकारी नौकरी में हैं.

महेश ने एमए प्रथम वर्ष तक की पढ़ाई की थी और वे सरकारी नौकरी की तैयारी भी कर रहे थे. जब वे 6 महीने के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी.

उनकी मां हेती बेन ने मजदूरी कर उनकी और उनके भाई का पालन-पोषण किया और उन्हें अच्छे से पढ़ाया लिखाया.

महेश के बड़े भाई रमेश चौहान कहते हैं, ''हमारा सिर्फ़ एक ही सपना था, हम सम्मान की ज़िंदगी जीना चाहते थे''

महेश अपनी शैक्षिक योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी करना चाहते थे, लेकिन पिछले 20 साल से वे शेखपुर के प्राइमरी स्कूल में मिड डे मील के प्रबंधक के रूप में काम करते थे. इस काम के लिए उन्हें 1600 रुपये प्रति माह मिलते थे.

महेश की मां और बड़े भाई रमेश
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महेश की मां और बड़े भाई रमेश

पुलिस की जांच जारी

महेश ने स्कूल के जिन तीन शिक्षकों पर जातिगत भेदभाव करने के आरोप लगाए हैं उनके नाम हैं मोमिन हुसैन अब्बासभाई, अमज अनारजी ठाकोर और विनोद प्रजापति.

पुलिस अभी मामले की जांच कर रही है और अभियुक्तों का पकड़ा जाना अभी बाकी है.

मेहसाणा में पुलिस के एससी/एसटी सेल के उपाधीक्षक हरीश दुधत ने कहा, ''हमने अभियुक्तों के घर की तलाशी ली है लेकिन अभी और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.''

स्कूल में होने वाले जातिगत भेदभाव के संबंध में जब शेखपुर प्राइमरी स्कूल की प्रिंसिपल गायत्री जानी से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने इस तरह के भेदभाव की कोई जानकारी होने से इंकार कर दिया.

उन्होंने कहा, ''मुझे इस तरह की कोई जानकारी नहीं है कि स्कूल परिसर के बाहर उनके साथ क्या होता था, उन्होंने मुझसे इन शिक्षकों के ख़िलाफ़ कभी कोई शिकायत नहीं की.''

शेखपुर प्राइमरी स्कूल की प्रिंसिपल
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शेखपुर प्राइमरी स्कूल की प्रिंसिपल

बेटी के सबसे करीब थे

वहीं महेश के परिजनों का कहना है कि महेश ने इस बारे में खुलकर इसलिए नहीं कहा क्योंकि उन्हें डर था कि इस बात के बाहर आने से कई उल्टे परिणाम देखने को मिलेंगे.

उनके बड़े भाई रमेश ने कहा, ''पिछले डेढ साल से उनके साथ भेदभाव किया जा रहा था, उन्होंने अपनी बेटी और मेरे साथ यह बात साझा की थी. हमने पुलिस में शिकायत दर्ज करने पर भी विचार किया था लेकिन बाद में उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया था.''

महेश अपनी बेटी के बेहद करीब थे, उन्होंने अपना सुसाइड नोट उसके ही स्कूल बैग में रखा था. अपनी बेटी के लिए महेश के अंतिम शब्द थे, ''मैं तुम्हें स्कूल छोड़ने आ रहा हूं, शायद इसके बाद मैं कभी तुम्हें स्कूल छोड़ने न आ सकूं.''

महेश की तस्वीर के साथ उनके तीनों बच्चे और उनके बड़े भाई
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महेश की तस्वीर के साथ उनके तीनों बच्चे और उनके बड़े भाई

क्या लिखा था सुसाइड नोट में?

महेश चौहान ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि तीनों शिक्षक उनसे जबरदस्ती अपने चाय और स्नैक्स के बिल भरवाते थे. अगर महेश ऐसा करने से इंकार करते तो वे स्कूल रजिस्टर में इस बात को दर्ज करने से इंकार कर देते कि कितने बच्चों ने मिड-डे मील खाया, इस वजह से सरकार की तरफ से आने वाली सप्लाई में कटौती हो जाती.

उन्होंने नोट यह भी लिखा है कि वे उन शिक्षकों की चाय और स्नैक्स के बिल नहीं भर सकते थे. महेश पर कर्ज़ भी था और उन्हें डर था कि अगर वे कहीं शिकायत करेंगे तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.

रमेश की पत्नी और उनके तीन बच्चों को अब सरकार से आस है कि वह उनकी मदद करेगी. उनके रिश्तेदारों ने सरकार से अपील की है कि महेश की जगह उनकी पत्नी को नौकरी दे दी जाए.

महेश
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महेश

यह देखने वाली बात होगी कि महेश के परिवार को सरकार की तरफ से कोई मदद मिलती है या नहीं साथ ही पुलिस कब तक अपनी जांच पूरी कर आरोपियों को पकड़ती है.

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English summary
School teachers used to bill tea and snacks
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