राजस्थान में एससी/एसटी वोटबैंक ने उड़ाई भाजपा-कांग्रेस की नींद
नई दिल्ली। राजस्थान विधान सभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए दोबरा सत्ता में वापसी करने आसान नहीं होने वाला है, जबकि अंदरूनी कलह से जूझ रही कांग्रेस लगातार प्रदेश में पार्टी की संभावनाओं को बेहतर करने में जुटी है। प्रदेश के मतदाताओं पर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों की पैनी नजर है। प्रदेश में राजपूत, जाट, एसएसी, एसटी वोटबैंक को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी के रणनीतिकार अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। पिछले बार के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा 2013 में प्रदेश की 59 आरक्षित सीटों में से 50 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी, ऐसे में एसएसी और एसटी सीटों पर एक बार फिर से विजय पताका फहराना भाजपा के लिए शीर्ष प्राथमिकता में शामिल है। हालांकि जिस तरह से पिछले कुछ सालों में दलितों के खिलाफ शोषण और मॉब लिंचिंग के मामले सामने आए थे, उसके बीच भाजपा के लिए यह आसान चुनौती नहीं होने वाली है।
कांग्रेस
ने
जीती
थी
34
सीटें
वर्ष
2018
के
विधानसभा
चुनाव
की
बात
करें
तो
कांग्रेस
ने
प्रदेश
की
कुल
200
विधानसभा
सीटों
में
से
उन
34
सीटों
पर
जीत
दर्ज
की
थी,
जोकि
एससी
और
एसटी
के
लिए
आरक्षित
थीं।
प्रदेश
में
अगर
एससी
और
एसटी
वोटबैंक
पर
नजर
डालें
तो
17.8
फीसदी
एससी
वोटर
हैं,
जबकि
13.5
फीसदी
वोटर
एसटी
हैं।
जोकि
कुल
मिलाकर
तकरीबन
31.3
फीसदी
हैं,
लिहाजा
पिछले
दो
विधानसभा
चुनाव
में
एससी
एसटी
मतदाताओं
ने
सरकार
गठन
में
अहम
भूमिका
निभाई
है।
भाजपा
की
रणनीति
एससी
वोटर
मुख्य
रूप
से
राजस्थान
के
सात
डिवीजन
में
बंटे
हैं,
जबकि
एसटी
वोटर
मुख्य
रूप
से
उदयपुर
डिवीजन
में
हैं।
मुख्यमंत्री
वसुंधरा
राजे
अपना
चुनावी
अभियान
उदयपुर
से
ही
शुरू
किया
था,
अगस्त
माह
में
उन्होंने
यहां
के
चारभुजा
मंदिर
से
अपने
अभियान
की
शुरुआत
की
थी।
जबकि
कांग्रेस
अध्यक्ष
राहुल
गांधी
ने
राजस्थान
में
अपनी
पहली
जनसभा
सागवारा
में
सितंबर
माह
में
की
थी।
एक
तरफ
जहां
भाजपा
ने
अपनी
पार्टी
ने
आदिवासी
नेता
किरोड़ी
लाल
मीणा
को
शामिल
किया
है,
तो
दूसरी
तरफ
कांग्रेस
ने
आदिवासी
नेता
रघुवीर
सिंह
मीणा
को
पार्टी
में
अहम
जिम्मेदारी
सौंपी
है,
उन्हें
कांग्रेस
वर्किंग
कमेटी
में
शामिल
किया
गया
है,
जिससे
कि
ये
दोनों
नेता
आदिवासी
मतदाताओं
को
अपनी
ओर
खींच
सके।
भाजपा
के
खिलाफ
रोष
राजनीतिक
पंडितों
का
कहना
है
कि
राजस्थान
में
भाजपा
सरकार
को
लेकर
प्रदेश
के
तकरीबन
हर
तबके
में
नाराजगी
है,
ऐसे
में
इस
बार
के
चुनाव
में
वसुंधरा
राजे
की
राह
आसान
नहीं
होने
वाली
है।
राजनीतिक
विशेषज्ञ
एमएल
यादव
ने
कहा
कि
2
अप्रैल
से
ही
भाजपा
के
खिलाफ
लोगों
में
गुस्सा
काफी
बढ़ता
जा
रहा
है।
ये
लोग
शांति
बनाए
हुए
हैं
और
आगामी
चुनाव
में
मतदान
केंद्र
पर
ये
लोग
अपना
गुस्सा
जाहिर
कर
सकते
हैं।
वहीं
आदिवासियों
की
बात
करें
तो
उनके
लिए
सबसे
बड़ा
मुद्दा
है
कि
जिस
तरह
से
मनरेगा
को
कमजोर
किया
गया
है
वह
उनके
लिए
काफी
नुकसानदायक
साबित
हुआ
है।
मनरेगा
के
कमजोर
होने
की
वजह
से
आदिवासियों
को
पलायन
करना
पड़ा
है,
उन्हें
रोजगार
नहीं
मिल
रहा
है।