पिता की अर्जित संपत्ति पर बेटियों को पूरा अधिकार, चचेरे भाइयों को नहीं मिलेगी वरीयता
नई दिल्ली, 21 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने अहम फैसले में कहा कि हिंदू धर्म में अगर पिता की मृत्यु होती है और उसने मृत्यु से पहले वसीयत तैयार नहीं की है तो बेटी को उसके पिता द्वारा अर्जित की संपत्ति में अधिकार होता है और वह खुद से इस संपत्ति के लिए अधिकृत हो जाती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी बेटियों को परिवार के अन्य सदस्य जैसे बेटा, चाचा की बेटियों पर वरीयता मिलेगी। कोर्ट ने यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार एक्ट के तहत हिंदू महिला और विधवा के जमीन से जुड़े अधिकार की सुनवाई के दौरान सुनाया।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्णा मुरारी की बेंच ने 51 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि अगर हिंदू पुरुष की मृत्यु बिना वसीयत तैयार किए होती है तो उसके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति का उत्तराधिकारी सबसे पहले बेटी होगी। बेटी को चाचा के बेटे और बेटी से पहले वरीयता मिलेगी। यही नहीं अगर महिला की मृत्यु बिना विरासत के होती है तो उसने जो संपत्ति पिता से अर्जित की है वह संपत्ति पिता के वारिस को जाएगी और यदि महिला ने अपने ससुर या पति के द्वारा कोई संपत्ति अर्जित की है और उसकी मृत्यु बिना वसीयत के होती है तो संपत्ति का अधिकार पति के वारिस को होगा।
कोर्ट ने यह फैसला मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई के दौरान सुनाया। मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बेटी के संपत्ति के अधिकार के दावे को खारिज कर दिया था। जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि पिता की जिस संपत्ति पर बेटी ने दावा किया है वह पिता ने खुद से अर्जित की है और पिता की एक मात्र संतान बेटी है। लिहाजा बेटी के पिता की संपत्ति दूसरे को नहीं जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 15(2) का मूल भाव यही है कि संपत्ति उसी स्त्रोत को वापस मिल जाए। अगर महिला के पति या बच्चे हैं तो संपत्ति उन्हीं को जाएगी। कोर्ट ने महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए मद्रास हाई कोर्ट के फैसल को खारिज कर दिया।