SC के जस्टिस दीपक गुप्ता बोले- देश के विकास के लिए असहमति महत्वपूर्ण
नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट के एक और जज ने देश में असहमति को दबाने की कोशिशों को लेकर बहुत बड़ी बात कही है। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा है कि हाल के दिनों में असहमति को राष्ट्र-विरोधी ठहराने की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं देखने को मिली हैं। जबकि, उनके मुताबिक कोई भी देश तभी समग्र रूप से विकसित हो सकता है, जब वहां असहमति को भी पूरा महत्त्व दिया जाए। उन्होंने डेमोक्रेसी एंड डिसेंट विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में ये विचार व्यक्त किए हैं।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि, 'अगर एक देश को समग्र रूप से विकसित होना है तो वहां असहमति का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। सच तो यह है कि असहमति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पिछले कुछ दिनों में ऐसी कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं देखने को मिली हैं, जब असहमति को राष्ट्र-विरोधी करार दिया गया है और कानूनी मामले दर्ज किए गए हैं।'
SC judge Justice Deepak Gupta in Delhi: If a country has to grow holistically,there has be to very important role of dissent. In fact,dissent must be encouraged. In recent past,there have been some unfortunate incidents when dissent was termed as anti-national&cases were slapped. pic.twitter.com/BF8PBm2v5t
— ANI (@ANI) February 24, 2020
जस्टिस गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से डेमोक्रेसी एंड डिसेंट विषय पर आयोजित एक सेमिनार में ये बातें कही हैं। उन्होंने कहा है कि अगर असहमति को दबाया जाएगा तो इसका लोकतंत्र पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने ये भी कहा है कि सरकारें हमेशा सही नहीं होती। हम सब गलतियां करते हैं। सरकार को किसी विरोध को तब तक दबाने का अधिकार नहीं है, जब तक वह हिंसक नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि अगर किसी पार्टी को 51 फीसदी वोट मिले, इसका मतलब ये नहीं कि 49 फीसदी वालों को 5 वर्षों तक नहीं बोलना चाहिए। लोकतंत्र में हर नागरिक का अपना एक रोल होता है।
बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के ही एक और जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी असहमति को लेकर इसी तरह की बातें कह चुके हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि असहमति को सीधे राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी बता देना लोकतंत्र पर हमला है। उन्होंने कहा था कि विचारों को दबाना देश की अंतरात्मा को दबा देना है। अहमदाबाद में गुजरात हाई कोर्ट में एक लेक्चर में उन्होंने असहमति को लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व बताया था। उन्होंने कहा था 'असहमति को सीधे-सीधे राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी ठहरा देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण और विचार-विमर्श करने वाले लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति देश की प्रतिबद्धता की मूल भावना पर चोट करती है।'
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