व्यंग्य: लुटियंस गोत्र का नाम सुना है आपने!
बैंकों को अरबों का चूना लगाने वाले मेहुल चौकसी का गोत्र कौन पूछता है - सब यही पूछते हैं कि यह कर्मठ पुरुष अब किस देश में है.
मेहुल चौकसी के सहकर्मी नीरव मोदी के गोत्र पर किसका ध्यान है, सब के सब चौकसी की चौकस कर्मठता की ही चर्चा करते हैं. यानी हमें समझ लेना चाहिए कि आधुनिक समाज में कर्मठता से ही चर्चित हुआ जा सकता है.
गोत्र, जाति के बहुआयामी हल्ले में चालू विश्वविद्यालय ने गोत्र-जाति विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया.
इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है-
गोत्र-जाति-कुल इनका भारत में दो मौकों पर जमकर प्रयोग होता है. एक तो शादी के मौके पर, दूसरा चुनावों का मौकों पर.
जैसा कि विद्वानों का मानना है कि शादी और चुनाव दोनों का ही ताल्लुक सघन और बहुव्यापी झूठों से हैं. जैसा कि हम देखते हैं प्राय: शादी-रिश्तों की बातों में दोनों ही पक्ष खुद को ब्रह्मांड का टॉप रईस, टॉप अफसर, वगैरह बताने की कोशिश करते हैं.
एक शोध के मुताबिक औसत भारतीय शादी-रिश्ते की बात में करीब पांच सौ अठ्ठाईस झूठ बोले जाते हैं, जैसे हमारे रिश्तेदार वो हैं, जैसे कि हम तो महाराणा प्रताप के वंशज हैं, जैसे कि पूरा कलकत्ता हमारे परदादा की रियासत में आता था- टाइप सघन झूठ बोले जाते हैं.
ठीक ऐसे ही चुनाव के वक्त भी भरपूर झूठ बोले जाते हैं.
गोत्र क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई?
गोत्र, जाति, धर्म वगैरह को लेकर भी भरपूर झूठ बोले जाने का चलन है.
गोत्र जाति को लेकर बोले जाने वाले झूठों का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इनसे पब्लिक का खास नुकसान नहीं होता.
नेता पुल हजम करके झूठ बोले तो झूठ नुकसानदेह हो जाता है. पर कोई नेता अपना गोत्र कुछ भी बता दे, पब्लिक हंसकर झूठा बलमा नामक भोजपुरी फिल्म को याद करने लग जाती है.
गोत्रों का सिस्टम
वक्त बहुत बदल लिया है. अब गोत्रों का सिस्टम भी बदल लिया है.
दिल्ली में टॉप गोत्र हैं - ग्रेटर कैलाश गोत्र, पृथ्वीराज रोड गोत्र, नार्थ एवेन्यू गोत्र, लुटियंस दिल्ली गोत्र. इस मुल्क को चलाने वाले परम हैसियतवान लोग रहते हैं यहां.
मुंबई में बड़े गोत्र हैं - पेडर रोड गोत्र, नरीमन प्वाइंट गोत्र, मुल्क की अर्थव्यवस्था चलाने वाले लोग रहते हैं यहां. ये हैं परम ताकतवर गोत्र.
वरना हाल यह है कि ग्रेटर कैलाश में रहने वाले बंदे मंगोलपुरी में रहने वाले अपनी ही जाति-गोत्र के लोगों को ऐसे देखते हैं, जैसे अमेरिकन इथियोपिआई को देखता है.
जैसे बड़े लेवल के चोर ठग एक साथ कई नाम रखते हैं गुड्डू उर्फ चुन्नू उर्फ चिल्लू वैसे ही बड़े नेता कई गोत्र धर्म एक साथ रखते हैं.
मस्जिद में पहुंचकर टोपी पहन लेते हैं मंदिर में पहुंचकर जनेऊ. वोट सबसे लेना, बेवकूफ सबको बनाने के सिद्धांत को राजनीति का समतावादी सिद्धांत भी कहा जा सकता है.
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गोत्रों के चक्कर में आम आदमी को ज्यादा ना पड़ना चाहिए उसे देखना चाहिए कि ताकत असर कहां से आता है. कारों में रोल्स रोयल गोत्र को सबसे पावरफुल माना गया है. इसमें जो बैठ जाये, वह खुद ब खुद परम सत्ताशाली हो जाता है.
ऑल्टो से रोल्स रॉयस गोत्र तक
कारों का ऑल्टो गोत्र ऐसा है, जो बंदा खुद भी बताते हुए शर्माता है. तो बंदे को कोशिशें ऐसी करनी चाहिए वह ऑल्टो गोत्र से रोल्स रॉयस गोत्र तक पहुंच जाये और मंगोलपुरी गोत्र से ग्रेटर कैलाश गोत्र का सफर तय कर ले.
जाति-पाति पूछे ना कोई, कार देख नतमस्तक होई- यह नया धार्मिक सिद्धांत है, तो आम आदमियों को ज्यादा इस चक्कर में ना पड़ना चाहिए कि किसका गोत्र क्या है. यह देख लेना चाहिए कौन ऑल्टो गोत्र से रोल्स रोयस गोत्र तक कैसे पहुंच गया.
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एक बार बंदा टॉप पोजीशन पर पहुंच जाये, फिर उसके गोत्र से ज्यादा उसकी कर्मठता की चर्चा होने लगती है. विजय माल्या जैसे पुरुषार्थी का गोत्र कौन पूछता है - समस्त जग में उनके कार्यों की ही चर्चा होती है.
बैंकों को अरबों का चूना लगाने वाले मेहुल चौकसी का गोत्र कौन पूछता है - सब यही पूछते हैं कि यह कर्मठ पुरुष अब किस देश में है.
मेहुल चौकसी के सहकर्मी नीरव मोदी के गोत्र पर किसका ध्यान है, सब के सब चौकसी की चौकस कर्मठता की ही चर्चा करते हैं. यानी हमें समझ लेना चाहिए कि आधुनिक समाज में कर्मठता से ही चर्चित हुआ जा सकता है.
किस गोत्र में पैदा हुए, यह सवाल प्रासंगिक नहीं है, सवाल यह है कि कैसे ऑल्टो से रोल्स रॉयस पर पहुंच गये.