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सारकेगुडा फर्ज़ी मुठभेड़: रिपोर्ट के बाद अब होगी कार्रवाई

छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के सारकेगुड़ा की रहने वाली मड़कम रत्ना बहुत धीरे-धीरे बात करती हैं. सात साल पहले की घटना को कुरेदने पर वो जैसे अतीत में लौट जाती हैं, "मेरा भाई मड़कम रामविलास 15 साल का था. दौड़ने में उसका कोई मुकाबला नहीं था. गांव की पगडंडियों पर ऐसे दौड़ता था जैसे उड़ रहा हो." रत्ना अपने भाई को याद करके बताती हैं 

By आलोक प्रकाश पुतुल
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सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़
Alok putul /BBC
सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़

छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के सारकेगुड़ा की रहने वाली मड़कम रत्ना बहुत धीरे-धीरे बात करती हैं.

सात साल पहले की घटना को कुरेदने पर वो जैसे अतीत में लौट जाती हैं, "मेरा भाई मड़कम रामविलास 15 साल का था. दौड़ने में उसका कोई मुकाबला नहीं था. गांव की पगडंडियों पर ऐसे दौड़ता था जैसे उड़ रहा हो."

रत्ना अपने भाई को याद करके बताती हैं कि कैसे उसका भाई गर्मी की छुट्टियों में भी पढ़ाई करता रहता था और स्कूल में सबसे अधिक नंबर लाता था.

वे कहती हैं, "पढ़ने-लिखने में ब्रिलियेंट था वो. वकील बनना चाहता था. लेकिन पुलिस ने मेरे भाई को मार डाला."

मड़कम रत्ना छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के उन लोगों में शामिल हैं, जिनके परिजन 28-29 जून 2012 की रात सीआरपीएफ़ और सुरक्षाबलों के हमले में मारे गये थे.

सरकार ने उस समय दावा किया था कि बीजापुर में सुरक्षाबल के जवानों ने एक मुठभेड़ में 17 माओवादियों को मार डाला है. तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने इसे बड़ी उपलब्धि माना था.

राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस कथित मुठभेड़ के लिये सुरक्षाबलों की प्रशंसा की थी. उन्होंने दावा किया था कि "मारे जाने वाले सभी लोग माओवादी थे."

लेकिन सोमवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस कथित मुठभेड़ को लेकर गठित न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें कहा गया है कि मारे जाने वाले लोग माओवादी नहीं थे.

बीजापुर के आदिवासी समुदाय के लोग
Alok putul /BBC
बीजापुर के आदिवासी समुदाय के लोग

जांच रिपोर्ट

जस्टिस वी के अग्रवाल की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय जांच आयोग ने 17 आदिवासियों के मारे जाने की इस घटना को लेकर कहा है कि पुलिस के बयान के विपरित ग्रामीण घने जंगल में नहीं, तीनों गांव से लगे खुले मैदान में बैठक कर रहे थे.

आयोग ने कहा है कि फायरिंग एकतरफ़ा थी, जो केवल सीआरपीएफ और पुलिस द्वारा की गई थी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात से भी इंकार किया है कि इस घटना में मारे गये लोगों का माओवादियों से कोई संबंध था.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मृतकों और घायलों के शरीर पर गोली के अलावा चोट के भी निशान हैं, जो मारपीट के कारण हैं और सुरक्षाबलों के अलावा यह कोई और नहीं कर सकता.

कोट्टागुड़ा गांव की कमला काका
Alok putul /BBC
कोट्टागुड़ा गांव की कमला काका

कोट्टागुड़ा गांव की कमला काका कहती हैं "न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ज़रुर कहा है कि 17 आदिवासियों को पुलिस ने मार डाला लेकिन हमें न्याय तो तभी मिलेगा, जब इस अपराध में शामिल लोगों को सज़ा होगी."

नर्सिंग के पेशे से जुड़ी कमला काका के भतीजे काका राहुल भी इस हमले में मारे गये थे.

कमला काका ने बीबीसी से कहा कि बीजापुर ज़िले के सारकेगुड़ा और सुकमा ज़िले के कोट्टागुड़ा और राजपेंटा गांव के ग्रामीण तीनों गांव से लगे एक खुले मैदान में 'बीज पोंडूम' त्यौहार की तैयारी के लिये बैठे थे, उसी समय सुरक्षाबलों ने चारों तरफ़ से घेर कर गोलीबारी की, जिसमें 7 नाबालिगों समेत 17 लोग मारे गये.

वो कहती हैं, "हम पहले दिन से यह बात कह रहे थे, लेकिन हमें हर जगह झूठा साबित करने की कोशिश की गई. बीज पोंडूम की बैठक के लिये उस रात मेरा भतीजा काका राहुल भी गया था और वह फिर कभी लौट कर नहीं आया."

बीजापुर थाना
Alok putul /BBC
बीजापुर थाना

कमला का आरोप है कि पहले पुलिस ने लोगों को गोलीबारी में मारा और फिर घेर कर उनमें से कई को पीटा भी.

यहां तक कि अगले दिन मड़कम सुरेश को पुलिस ने स्कूल से उठाया और फिर उसे मार डाला.

कमला बार-बार दोहराती हैं, "जिन लोगों ने निहत्थे, बेकसूर और भोले-भाले आदिवासियों को मारा, बच्चों को मारा, उनके ख़िलाफ़ जब तक कार्रवाई नहीं होती, ऐसी न्यायिक आयोग की रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं है."

अब कार्रवाई का समय

इस घटना में शिकायतकर्ताओं की वकील शालिनी गेरा का कहना है कि न्यायिक जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साफ़-साफ़ कहा है कि सुरक्षाबल के लोगों ने अचानक घबराहट की प्रतिक्रिया में शुरु में गोलीबारी का सहारा लिया.

लेकिन यह पता चलने के बाद कि मारे जाने वाले लोग माओवादी नहीं, आम ग्रामीण हैं, तब भी सुरक्षाबल के लोगों ने उन्हें घेर कर बंदूकों से मारा-पीटा, उन्हें घायल किया और उन्हें गिरफ़्तार किया.

शालिनी कहती हैं, "यह सीधे-सीधे हत्या का मामला है और अब राज्य सरकार को इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए."

सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़
Alok putul /BBC
सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़

एक अन्य वकील अमरनाथ पांडेय का कहना है कि इस मामले में सरकार को चाहिए कि वह तत्काल दोषियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज़ करे और दोषियों की गिरफ़्तारी करे.

अमरनाथ पांडेय कहते हैं, "यह ऐसा मामला नहीं है कि विधानसभा के पटल पर रखने के बाद सरकार के स्व-विवेक पर निर्भर करता हो कि वह कार्रवाई करे या ना करे. यह 17 आदिवासियों की साफ़-साफ़ हत्या का मामला है और सरकार को कार्रवाई करनी ही होगी."

राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि इस मामले में कड़ी कार्रवाई होगी.

असल में जून 2012 में जब यह घटना हुई थी, तब कांग्रेस पार्टी ने अपनी एक जांच टीम बना कर इस मामले की जांच की थी और घटना को फर्ज़ी मुठभेड़ करार देते हुये इसे 'जनसंहार' बताया था.

केंद्र में कांग्रेस पार्टी द्वारा सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई की सराहना के बीच, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने राज्य की भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के इस्तीफ़े की मांग की थी.

मुख्यमंत्री कहते हैं, "साल 2012 के बाद 2019 में यह जांच रिपोर्ट आई है. इसे पटल पर रखा गया है. 17-17 निर्दोष आदिवासी मारे गये हैं और इसके लिये जो भी ज़िम्मेदार हैं, उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी. इस मामले में किसी को बख़्शने का सवाल ही नहीं उठता."

राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
Alok putul /BBC
राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

घटना के तुरंत बाद बनाई गई कांग्रेस पार्टी की जांच कमेटी के अध्यक्ष कवासी लखमा अब छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री हैं. उनका कहना है कि इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के ख़िलाफ़ तत्काल एफ़आईआर दर्ज़ की जानी चाहिए.

लेकिन भाजपा नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक जांच आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किये जाने से पहले ही उसके कुछ अंश मीडिया में सार्वजनिक किये जाने को बड़ा मुद्दा मानते हैं.

सोमवार को भाजपा ने विधानसभा में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव भी लाने का प्रयास किया.

धरमलाल कौशिक कहते हैं, "पटल पर न रख कर के, जो ये समाचार पत्रों में छपा है, निश्चित रुप से विधानसभा की अवमानना है और लगातार विधानसभा की अवमानना हो रही है."

सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़
Alok putul /BBC
सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़

विधानसभा का सत्र सोमवार को समय से पहले, स्थानीय निकाय के चुनाव का हवाला देकर ख़त्म कर दिया गया और मंगलवार से नेता चुनावी राजनीति में जुट जाएंगे.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी से जुड़े आदिवासी नेता अरविंद नेताम कहते हैं, "राजनीति ज़रुर हो लेकिन आदिवासी मुद्दों को हाशिये पर नहीं डाला जाना चाहिये."

"सरकार किसी की भी हो, बस्तर में आदिवासियों का विश्वास हासिल करने की कोशिश किसी ने आज तक नहीं की. न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट ने सरकार को एक अवसर दिया है."

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English summary
Sarkeguda fake encounter: Action will now be taken after the report
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