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सरदार सरोवर विस्थापित : पाँच-पाँच न्यायिक आदेशों के बाद भी नहीं मिला मुआवज़ा, टिन शेड में रहने को मजबूर

दरअसल, सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले अपने खेतों के बदले उचित मुआवज़े के लिए लड़ रहे कैलाश अवसिया की लड़ाई, इस देश की थका देनी वाली न्याय व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक आम आदिवासी की लड़ाई है. कुछ ही देर में हम कैलाश के खेतों की तरफ़ निकल पड़ते हैं. भीलखेड़ा गांव से कुछ दूर कपास और अरहर के खेतों से गुज़रते हुए वह

By प्रियंका दुबे
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DEVASHISH KUMAR/BBC

सितम्बर के आख़िरी दिनों में भी मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी धूप भरी उमस में तप रही है.

सुबह के आठ बजे हैं और हम बड़वानी ज़िले के भीलखेड़ा गांव में रहने वाले कैलाश आवासीया के घर पहुंचे चुके हैं.

अपनी बकरियों और मुर्ग़ियों के साथ काग़ज़ों से भरी एक मोटी सी फ़ाइल हाथों में लिए कैलाश अपने घर के दरवाज़े पर हमारा इंतज़ार कर रहे हैं.

मिलते ही वह हल्का सा मुस्कुरा कर हाथ मिलाते हैं. लेकिन उनके चेहरे पर किसी लम्बी यात्रा से निष्फल लौटने की सी उदासी है.

दरअसल, सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले अपने खेतों के बदले उचित मुआवज़े के लिए लड़ रहे कैलाश अवसिया की लड़ाई, इस देश की थका देनी वाली न्याय व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक आम आदिवासी की लड़ाई है.

कुछ ही देर में हम कैलाश के खेतों की तरफ़ निकल पड़ते हैं. भीलखेड़ा गांव से कुछ दूर कपास और अरहर के खेतों से गुज़रते हुए वह ज़मीन के एक तालाबनुमा टुकड़े के पास आकर रुक जाते हैं.

DEVASISH KUMAR/BBC

क़ानून के अंतहीन गलियारे

फिर पानी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "यहां से वहां तक पूरा मेरा खेत था... जो अब सरदार सरोवर बांध के बैक पानी में डूब गया है. अब इतना ऊपर तक पानी भर गया है तो ये पूरी फसल भी सड़ जाएगी. इस तरह से एक-दो दिन और पानी भरा रहा तो मेरा पूरा खेत भी रेतीला हो जाएगा."

कैलाश के खेतों को अधिग्रहीत करके 18 साल तक अपने पास रखने के बाद, नर्मदा वैली डिवेलपमेंट अथॉरिटी या एनवीडीए बिना मुआवज़ा दिए उनकी डूबी हुई ज़मीन को वापस कर दिया.

साल 2017 में उनकी ज़मीन को 'डीनोटिफ़ाई' (या लौटाते हुए) सरकार ने कहा की उनकी ज़मीन डूब में नहीं आ रही. जबकि ज़मीन पर आज कैलाश की 27 प्रतिशत से ज़्यादा ज़मीन डूब चुकी है.

विस्थापन नीति के अनुसार वह कृषि की ज़मीन के बदले कृषि की ज़मीन के अधिकारी हैं. लेकिन न्याय बीते 18 सालों से भारत की अलग-अलग अदालतों में अपना मुक़दमा लड़ रहे कैलाश को अपने पक्ष में पांच न्यायिक आदेश जुटाने के बाद भी, आज तक ज़मीन का मुआवज़ा नहीं मिला.

मुक़दमे से जुड़े काग़ज़ात दिखाते हुए वह कहते हैं, "2000 में जब भूअर्जन हुआ और पुनर्वास की बात शुरू हुई थी, तभी से हमारी ज़मीन और पूर्ण पुनर्वास की मांग रही है सरकार से. मेरे पास हाथ में पाँच जजमेंट हैं. तीन जीआरए (ग्रीवियेंस रीअडरेसल औथोरिटी या शिकायत निवारण प्राधिकरण) के, एक सुप्रीम कोर्ट का और एक हाई कोर्ट का."

"सरकार के सारे डॉक्यूमेंट मेरे पास हैं जो ये साबित करते हैं कि उन्होंने ख़ुद मुझे मुआवज़े की पात्रता दी हुई है. लेकिन 18 साल होने एक बाद भी हमको ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं मिली. उल्टा डूबी हुई ज़मीन को उन्होंने डीनोटिफ़ाइ कर दिया."

सरदार सरोवर
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सरदार सरोवर

जाँघरवा का क़िस्सा :

इधर सरदार सरोवर की डूब में आयी अपनी ज़मीन के मुआवज़ा के लिए सालों से क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे कुँवर सिंह, आठ दिनों तक अपने डूबे हुए घर में खड़े रहे. विरोध जताने के लिए उन्होंने जाँघरवा गांव में बने अपने पुश्तैनी घर का सारा सामान डूब के पानी में सड़ने दिया.

अपने डूबे हुए घर के सामने बैठ कर बात करते हुए उन्होंने कहा, "मेरा घर डूब चुका है. हम इसमें आठ रोज़ पानी में खड़े रहे. हमारी ज़मीन और खेती भी डूब गयी है. डूब के कारण हमारा पूरा घर बर्बाद हो गया. हाम आठ रोज़ पानी में इसलिए खड़े थे क्योंकि हमें ग़ुस्सा था. हमने सोच लिया था की जब तक हमें ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं देंगे, तब तक हम पानी में खड़े रहेंगे. लेकिन फिर एनवीडीए के अधिकारी घर आए और उन्होंने हमें आश्वासन दिया. कुछ सर्वे भी किया. लेकिन अब तक वह आश्वासन सिर्फ़ आश्वासन ही है".

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टीन शेड में ज़िंदगी

डूब आने के बाद से मुआवज़ा की इन लम्बी क़ानूनी लड़ाईयों से थक गए लोग अब नर्मदा घाटी में बेघर हुए विस्थापितों के लिए बने 16 टीन शेड कैंप्स में रहने को मजबूर हैं.

बीबीसी ने बड़वानी ज़िले में बने सोंधुल टीनशेड कैम्प नाम की एक ऐसी ही कैम्प का दौरा किया जहाँ फ़िलहाल तीन सौ से ज़्यादा परिवार रहते हैं. सरकार ने सरदार सरोवर की डूब में आए इनके गांवों से पुनर्वासित करके इन्हें यहां बसाया था. लेकिन इस टीन शेड कैम्प का एक बड़ा हिस्सा आज भी डूबा हुआ है.

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अमलाली गांव की गायत्री को टीन शेड के इस निराश माहौल में अपना डूबा हुआ घर बहुत याद आता है.

पशुओं के बाड़े जैसे छोटे से शेड में शाम की सब्ज़ी बनाते हुए गायत्री कहती हैं, "हमारा कच्चा मकान था लेकिन हमें बहुत प्यार था. खुला खुला आंगन था वहां...ख़़ूब जगह थी. लेकिन वो घर तो हमारा बांध के पानी में डूब गया. अभी वहां से हमको अधिकारी लोग बुला कर यहां लाए और यहां टीन शेड में लाकर पटक दिया. अब हम यहां कैसे दिन बिता रहे हैं यह तो हम ही जानते है".

टीन शेड के दुरूह जीवन के बारे में जोड़ते हुए गायत्री कहती हैं, "यहां पर लैटरीन-बाथरूम जाने में दिक्क़त होती है क्योंकि कोई ठीक व्यवस्था नहीं है. इसलिए शौच के लिए हमें पहाड़ पर जाना पड़ता हैं. लकेन अब तो वहां पर भी गंदगी दिखने लगी है. बारिश होती है तो वो पूरी गंदगी पहाड़ से फिसलकर नीचे टीन शेड में आती है. यहां कोई कैसे जी सकता है?"

BBC HINDI /DEVASHISH KUMAR

सरकार ने इन अस्थायी कैम्पों में खाने-पीने की व्यवस्था तो की है लेकिन यहां रह रहे विस्थपितों ने हमें बताया की उनको दिया जाने वाला खाना भी खाने लायक़ नहीं है.

अमलाली गांव के ही एक विस्थापित बताते हैं, "रिक्शे में खाना आता है और सबको अपने बर्तन लेकर जाना पड़ता है और लाइन में लगना पड़ता है. लेकिन जो खाना आता है उसमें मिट्टी भी आता है, कंकड़ भी आता है. खाने की मात्रा बहुत कम होती है. हर आदमी को सिर्फ़ पाँच रोटी और एक चम्मच दाल देते हैं".

सबसे गहरी निराशा इन कैम्पों में रहने को मजबूर युवाओं में हैं. बड़वानी जिले की रहने वाली 18 साल की जमुना चौहान को स्कूल भी छोढ़ना पड़ गया. अपने डूबे हुए घर को याद करते हुए उनकी आँखों में आँसू तैर जाते हैं. "हमारा घर और खेत तो सब डूब गया, अब हम कहाँ रहेंगे? यहां टीन शेड में हमारे साथ हमारी दादी है -वो भी बहुत बीमार. कुछ पता नहीं चल रहा की हमें यहां ऐसे कब तक रहना पड़ेगा. मुझे अपने घर की बहुत याद आती है".

BBC/DEVAHISISH KUMAR

एनवीडीए और राज्य सरकार के उच्च अधिकारियों के पास प्रदेश के इन निराश युवाओं को देने के लिए आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं.

"सरदार सरोवर से प्रभावित सभी वंचित परिवारों का दोबारा सर्वे करके उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मुआवज़ा दिया जाएगा. टीन शेड एक तात्कालिक अस्थायी व्यवस्था है. परिवारों के सम्पूर्ण पुनर्वास के लिए प्रयास जारी हैं". - मध्यप्रदेश प्रशासन

क़ानूनी पेचों और अस्थायी टीन शेडों के बीच झूलते नर्मदा घाटी के इन विस्थापितों का भविष्य भी गहरी अनिश्चितता में डूबा हुआ है.

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English summary
Sardar Sarovar displaced: Compensation not received even after five judicial orders, forced to stay in tin shed
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