Sanjay Dutt: बार-बार टूटकर बिखरना और फिर पार पाना, सीखिए संजय दत्त से
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संजय दत्त। एक एक्टर जिसके दो कैरेक्टर। नायक भी खलनायक भी। एक बिगड़ैल शख्स लेकिन कामयाब एक्टर। जिंदगी की राह में बार-बार गिरे। लेकिन हर बार और मजबूती से उठे। कदम –कदम पर गलतियां कीं। लगा सब कुछ खत्म होने वाला है। लेकिन उन्हें हर बार लाइफ लाइन मिलती रही। इसका बखूबी इस्तेमाल किया। बिखरती जिंदगी संवरती गयी। विवादों की आग में तप कर निखरते गये। ड्रग की गिरफ्त से खुद का आजाद किया। अंडरवर्ल्ड से ताल्लुकात के दाग को धोया। और अब कैंसर को मात दे कर ये बता दिया कि उनका जिगर किस फौलाद का बना है। संजय दत्त का हर कमबैक शानदार रहा। उम्र की बंदिशें भी उनको नहीं रोक पायीं। 60 साल की उम्र में भी जब फिल्म पानीपत का उनका अब्दाली वाला लुक सामने आया तो हर कोई मुरीद हो गया। सबसे बड़ी दिलेरी ये कि उन्होंने हमेशा अपनी गलतियों को खुल कर कबूला। कभी इस पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं की। कई इंटरव्यू में उन्होंने खुद बताया है कि कैसे छोटी उम्र में उनके कदम बहक गये थे। उन पर लिखी गयी किताब ( द क्रेजी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ बॉलीबुड्स बैड ब्वॉय संजय दत्त) भी इस बात की गवाह हैं। संजय दत्त ने एक पुत्र के रूप में, पति के रूप में, भाई के रूप में और पिता के रूप में अनगिनत गलतियां की लेकिन इन सब से उबर कर उन्होंने अपने लिए कामयाबी का रास्ता भी बनाया। कैंसर को हराना संजय दत्त की सबसे बड़ी जीत है।
एक पुत्र के रूप में संजय दत्त
बकौल संजय दत्त, मेरी उमर तब आठ-दस साल रही होगी। दत्त साहब ( सुनील दत्त) से मिलने कई निर्माता, निर्देशक आया करते थे। घर के बरामदे में उनकी बैठक लगती थी। वे मीटिंग के दौरान सिगरेट पीते और बरामदे की खिड़की से बाहर फेंक देते। मैं खिड़की के नीचे लेट कर जलते हुए सिगरेट के टुकड़ों के पास पहुंचता और कश लगाता। एक दिन दत्त साहब को खिड़की के नीचे से धुआं निकलता दिखायी पड़ा। उन्होंने लपक कर खिड़की से देखा तो मैं नीचे लेट कर सिगरेट के सुट्टे मार रहा था। उन्होंने फौरन मीटिंग बर्खास्त कर दी। मेरी मां को बुलाया। अगले दिन मुझे हिमाचल प्रदेश के सेंट लॉरेंस स्कूल की बोर्डिंग में भेज दिया गया। मेरी गलती ये थी कि मैं अपने घर आये लोग को देख कर सिगरेट पीने की कोशिश की। मेरी मां (नरगिस दत्त) मुझको लेकर बहुत फिक्रमंद रहती थीं। दत्त साहब को डिसिप्लीन पसंद थी। सेंट लॉरेंस स्कूल न केवल भारत का बल्कि एशिया का प्रसिद्ध स्कूल है। यहां आ कर मेरी जिंदगी बदल गयी। मेहनत करनी पड़ी। गलतियों के लिए कठोर दंड सहने पड़े। स्कूल के होस्टल की परम्परा के अनुसार उन्हें करीब 25-30-तीस लड़कों के जूते रोज प़ॉलिश करने पड़ते। उनके बिस्तक ठीक करने पड़ते। यहां तक कि उनके सीनियर छात्र उनकी अभिनेत्री मां और राजकपूर को लेकर फब्तियां कसते। इन सब बातों से संजय घबरा गये। वे मुम्बई लौटने के लिए अपनी मां को रोज चिट्टी लिखने लगे। नरगिस किसी तरह संजय दत्त को समझा बुझातीं रहीं। इस स्कूल ने संजय दत्त को अगर मेहनती बनाया तो उनके जिगर को जख्मी भी किया।
ड्रग की चपेट में संजय
1977 में संजय सेंट लॉरेंस स्कूल से पास होकर कॉलेज की पढ़ाई के लिए मुम्बई आये। जबरन बोर्डिंग स्कूल में भेजे जाने से संजय अपने पिता से बहुत नाराज रहते थे। द क्रेजी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ बॉलीबुड्स बैड ब्वॉय संजय दत्त, के लेखक यासिर उस्मान के मुताबिक जब बॉबी रिलीज (1973) हुई थी उस समय एक अफवाह जोर से उड़ी थी कि डिम्पल कपाड़िया राजकपूर और नरगिस की निशानी हैं। इस अफवाह का सुनील दत्त या नरगिस पर तो कोई असर नहीं पड़ा लेकिन संजय दत्त के बाल मन पर बड़ा आघात लगा। वे गुस्सैल और जिद्दी हो गये। उन्हें एक स्टार किड होने की कीमत चुकानी पड़ी। इस अफवाह को जड़ से खत्म करने के लिए नर्गिस दत्त ने एक इंटरव्यू में खुल कर बातें कीं। उन्होंने कहा था, इस अफवाह का कब और कैसे जन्म हुआ मुझे मालूम नहीं लेकिन जिसने भी ऐसा किया है वह दिमाग से गंदा आदमी रहा होगा। बॉबी की डिम्पल और आवारा के मेरे किरदार में समानता है। केवल इसके आधार पर ऐसे घटिया बात नहीं कही जानी चाहिए। ये सच नहीं है, फिर अगर ऐसा रहा होता तो मैंने अपनी बेटी को कभी छोड़ा नहीं होता। मेरे पति और मेरी बेटियों ने इन बातों को हंसी में उड़ा दिया है। लेकिन संजय को बहुत तकलीफ पहुंची है। वह भी इससे उबर जाएगा। एक दिन ये उफवाहें भी खत्म हो जाएंगी। स्कूल जीवन में ही संजय दत्त का कलेजा इस बात से जख्मी हो चुका था। उन्होंने मुम्ब्ई के एलिफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया। उस समय इस कॉलेज में ड्रग लेने वाले छात्रों का बोलबाला था। आहत संजय दत्त ड्रग की नशीली दुनिया में एक बार दाखिल हुए तो फिसलते चले गये। संजय दत्त के मुताबिक उन्हें तब हर तरह के ड्रग लेने की लत पड़ चुकी थी।
ड्रग के नशे में जब पिता पर लगा दी छलांग
सुनील चाहते थे कि संजय दत्त पढ़ लिख कोई मुकाम हासिल करें। वे नहीं चाहते थे कि संजय फिल्मों में कम करें। उस समय सुनील दत्त रेशमा और शेरा के फ्लॉप होने से कर्ज में डूब गये थे। बहुत परेशान रहते थे। असुरक्षा की भावना से उन्होंने कई उटपटांग फिल्में साइन कर ली थीं। सुनील दत्त अपने बेटे को इस माहैल से अलग रखना चाहते थे। संजय का मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। नर्गिस को तो संजय के ड्रग लेने का अंदाजा हो गया था लेकिन सुनील दत्त अंजान थे। एक दिन उन्होंने कहा कि वे फिल्मों में काम करना चाहते हैं तो सुनील दत्त भड़क गये। नर्गिस के समझाने पर सुनील दत्त मान गये। एक दिन जब सुनील दत्त ने फिल्म रॉकी के सीन डिस्कशन के लिए संजय को बुलाया तो उन्होंने एलएसडी ( नशीला पदार्थ) ले रखी थी। जब संजय स्टूडियो पहुंचे तो नशे के झोंक में उन्होंने अपने पिता के ऊपर जंप लगा दी। सुनील दत्त ये देख कर डर गये। तब उन्हें पता चला कि संजय दत्त ड्रग एडिक्ट हैं। फिल्म रॉकी के समय संजय दत्त का जीवन आग के दरिया के बीच से गुजर रहा था। फिल्म को लेकर सुनील दत्त ने बहुत उम्मीदें पाल रखीं थीं। ड्रग के नसे के बीच उन्हें अपने पिता की उम्मीदों के अनुरूप एक्टिंग करनी थी। इस बीच उनकी मां को कैंसर होने का पता चला। रॉकी के रिलीज होने (7 मई 1981) चार दिन पहले नर्गिस का देहांत हो गया। संजय दत्त और बिखर गये।
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ड्रग से की तौबा
ड्रग के बुरे दौर में ही संजय दत्त ने जाना कि उनके पिता सुनील दत्त कितने बड़े और नेकदिल इंसान हैं। बकौल संजय दत्त्, आम तौर पर किसी ड्रग एडिक्ट से उसका परिवार नफरत करने लगता है और उससे किनारा कर लेता है लेकिन मेरे पिता ने मेरी तमाम गलतियों के बाद मुझसे स्नेह बनाये रखा। संजय दत्त के मुताबिक, एक दिन मैं सो कर उठा तो अपने नौकर को बुलाया। उससे कहा, बहुत भूख लगी है कुछ खाने को लाओ। मेरी बात सुनकर नौकर रोने लगा। मैंने वजह पूछी तो उसने कहा, आप नशे की वजह से दो दिनों तक सोये रहे और आज ही उठे हैं। ये सुन कर मैं आवाक रह गया। मैंने शीशे में देखा चेहरा सूजा हुआ पाया। बिखरे बाल, मरियल सा शरीर। ये देख कर मैं भी डर गया। मैं अपने पिता के पास पहुंचा और कहा, मुझे आपकी मदद चाहिए। मेरे पिता ने मुझे ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया। फिर मुझे 1984 में अमेरिका ले गये। अमेरिका के नशा मुक्ति केन्द्र में एक दिन एक लड़के ने मेरे टेप रिकॉर्डर में मां का रिकॉर्डेड संदेश प्ले कर दिया। मेरी मां ने कहा था, संजू बड़ों की इज्जत करो और हौसले के साथ अपना काम करो। यही तुम्हें आगे ले जाएगा। इसके बाद मेरी दुनिया बदल गयी। मैंने ड्रग छोड़ने की ठान ली। कामयाब भी हुआ। अमेरिका से नौ महीने के बाद जब मुम्बई लौटा तो एक बदला हुआ संजय दत्त था।
मुम्बई दंगे और संजय दत्त
1985 में संजय दत्त मुम्बई छोड़कर अमेरिका में बिजनेस करना चाहते थे। वे यहां की डरावनी यादों से दूर जाना चाहते थे। तभी उन्हें फिल्म ‘जान की बाजी' मिल गयी। सुनील दत्त के कहने पर संजय ने फिर फिल्मों में काम शुरू किया। 1986 में आयी फिल्म ‘नाम' ने उनकी किस्मत बदल दी। इस फिल्म की कामयाबी ने संजय दत्त को स्टार बना दिया। लोगों को भरोसा हो गया कि संजय दत्त ने वाकई ड्रग से तौबा कर ली है। 1991 में फिल्म ‘साजन' ने संजय को उम्दा और संजीदा एक्टर के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद संजय दत्त फिल्मों में मशरूफ हो गये। इसी बीच 1993 में बम धमाकों से मुम्बई दहल गयी। पुलिस की जांच में हनीफ लकड़ावाला और समीर हिंगोरा ने पुलिस को बताया कि संजय दत्त के पास एक-56 राइफल थी। कहा जाता है कि आतंकियों ने संजय को उनकी मां के मुस्लिम होने का हवाला देकर बहकाया था। संजय उस समय फिल्म आतिश की मॉरीशस में शूटिंग कर रहे थे। संजय लौटे तो उन्हें आतंकवाद निरोधी कानून (टाडा) के तहत गिरफ्तार कर लिया। सुनील दत्त को भरोसा नहीं हुआ कि संजय दत्त ने ऐसा किया। दत्त परिवार का जीन हराम हो गया। इसी साल सुभाष घई की फिल्म खलनायक रिलीज हुई जो सुपरहिट साबित हुई। एक तरफ संजय दत्त जेल में और दूसरी तरफ खलनायक की शोहरत।
बाल ठाकरे ने की मदद
लेखक यासिर उस्मान के मुताबिक उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार थे। कांग्रेस की सरकार थी। सुनील दत्त भी कांग्रेस के सांसद थे। लेकिन उन्हें शरद पवार से कोई मदद नहीं मिली। एक दिन जब सुनील दत्त संजय से मिलने जेल में गये तो संजय ने चिल्लते हुए पूछा, यहां से कब बाहर निकलूंगा ? ये सुन कर सुनील दत्त रोने लगे और कहा, मैं अब तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता। सुनील दत्त को जब कोई मदद नहीं मिली तो एक दिन वे बाला साहेब ठाकरे के पास पहुंचे। विरोधी दल का होते हुए भी बाला साहेब ठाकरे ने सुनील दत्त की मदद की। उन्होंने कहा कि मैं दत्त परिवार को जानता हूं, ये कभी देश विरोधी नहीं हो सकता। संजय 15 महीने तक जेल में रहे। 1995 में बाहर निकले तो फिर एक नये अवतार में। उन्होने जेल में खूब कसरत की थी और शानदार बॉडी बनायी थी। बाद में कोर्ट ने उन्हें आतंकवाद की आपारधिक साजिश रचने के आरोप से बरी कर दिया। हथियार रखने का जुर्म में उन्हें जरूर सजा काटनी पड़ी। लेकिन उनके लिए सबसे खुशी की बात ये रही कि उन्हें देशद्रोह के शर्मनाक आरोप से छुटकारा मिल गया। संजय दत्त एक बार फिर मुसीबतों से बाहर निकले।
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कैंसर को मात
संजय दत्त ने अब कैंसर को मात दे कर एक फिर अपने को बड़ा लड़ाका साबित किया है। इस जीत ने उनके बिखरे हुए परिवार को फिर से एक कर दिया है। संजय दत्त ने जब मान्यता के साथ तीसरी शादी की थी तो उनकी बहनें नम्रता और प्रिया नाराज हो गयीं थीं। संजय ने पहली शादी ऋचा शर्मा के साथ 1986 में और दूसरी शादी रिया पिल्लई के साथ 1998 में की थी। 2008 में जब संजय ने मान्यता के साथ तीसरी शादी की तो नाराज नम्रता और प्रिया उसमें शामिल नहीं हुईं थीं। वे इस शादी के खिलाफ थीं। बाद में संजय दत्त ने कहा था कि वे ही दत्त परिवार के असली वारिस हैं। इस लिहाज से हर किसी को उनकी पत्नी मान्यता को इज्जत देनी होगी। बहुत दिनों तक भाई बहनों में बोल चाल नहीं रही। लेकिन संजय दत्त के बीमार पड़ने पर दोनों बहनें एक बार फिर अपने भाई के साथ खड़ी नजर आयीं। बार-बार टूट कर बिखरना और हर बार खुद को संभाल लेना, यही बात संजय दत्त को खास बना देती है।