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क्या सांबर शब्द की उत्पत्ति का संभाजी महाराज से कोई ताल्लुक़ है? सांबर बनाने की शुरुआत कैसे हुई थी?

आज हम जिस सांबर को जानते हैं वो पतले रस वाली मसालों और सब्ज़ियों से बनी दाल होती है. लेकिन, सांबर का असली मतलब, 'स्वाद बढ़ाने वाला' होता है.

By BBC News हिन्दी
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पकी हुई दाल, इमली, ड्रमस्टिक (सहजन), टमाटर, गाजर, कद्दू और हरा धनिया- इन सब में मसालों का छौंक लगाकर तैयार होता है सांबर.

दक्षिण भारत का व्यंजन सांबर पूरे भारत में मशहूर है और अब तो ये हिंदुस्तान की सरहदों के पार भी अपनी शोहरत के झंडे गाढ़ रहा है. सांबर, इडली का पक्का साथी है. बल्कि बहुत से लोग तो चावल के साथ दाल खाने के बजाय सांबर को तरजीह देते हैं.

sambar was made by maratha king Sambhaji Maharaj?

लेकिन, सांबर अस्तित्व में कैसे आया? सांबर शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? क्या महाराष्ट्र में पहले ऐसी कोई डिश पकाई जाती थी, जिसे सांबर कहा जाता था?

ऐसे बहुत से सवालों के जवाब तलाशने की ज़रूरत है.

कई मौक़ों पर होता यही है कि कुछ पकवान हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का ऐसा हिस्सा बन जाते हैं कि जब हम इसकी जड़ें तलाशने की कोशिश करते हैं, तो हमारे हाथ दिलचस्प और चौंकाने वाली ऐतिहासिक कहानियां भी लग जाती हैं.

इसी तरह, जब हम सांबर के बारे में जानने निकले, तो हमें पता चला कि इस लफ़्ज़ के तो कई मायने होते हैं.

आज हम जिस सांबर को जानते हैं वो पतले रस वाली मसालों और सब्ज़ियों से बनी दाल होती है. लेकिन, सांबर का असली मतलब, 'स्वाद बढ़ाने वाला' होता है.

सांबर की उत्पत्ति की तलाश के इस सफ़र में हमें मालूम हुआ कि आज जो सांबर, इडली, वड़े या दोसे के साथ परोसा जाता है, उसका प्राचीन काल में इसी नाम से चलन में रहे बहुत से व्यंजनों से कोई ताल्लुक़ ही नहीं है.

तंजावुर का संभाजी आहार

जब कोई ये सवाल करता है कि पहली बार सांबर को कब पकाया गया था, तो हमें ऐसी कहानी सुनने को मिलती है, जो बहुत आम है. ये क़िस्सा कुछ यूं है कि सांबर असल में तंजावुर के मराठा शासकों की रसोई में इत्तेफ़ाक़न बन गया पकवान है. हम पहले इस कहानी की पड़ताल करने की कोशिश करेंगे

छत्रपति शिवाजी महाराज के सौतेले भाई व्यंकोजी तंजावुर रियासत पर राज करते थे. सन् 1683 में उनका निधन हो गया था. इसके क़रीब एक बरस बाद, 1684 में व्यंकोजी के बेटे शाहूजी तंजावुर के शासक बने. उस वक़्त शाहूजी की उम्र बस बारह साल थी. तंजावुर के दूसरे शासकों की तरह, शाहूजी भी लिखने-पढ़ने, कविताओं और कला का शौक़ रखते थे. कहा जाता है कि वो पाक-कला में भी माहिर थे.

सांबर से जुड़ी इस मशहूर कहानी के मुताबिक़, एक बार छत्रपति संभाजी महाराज तंजावुर के दौरे पर गए. लेकिन, उस दिन इत्तेफ़ाक़ से शाहूजी महाराज की शाही रसोई में कोकम (पकवानों में खट्टा स्वाद लाने के लिए इस्तेमाल होने वाली चीज़) नहीं था. तो, कोकम की कमी पूरी करने के लिए किसी ने शाहूजी महाराज को इमली का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया. तो उस रोज़ की रसदार सब्ज़ी इमली डालकर पकाई गई.

संभाजी महाराज के सम्मान में इस पकवान का नाम संभाजी आहार (संभाजी का भोजन) नाम दिया गया, जो आगे चलकर सांबर में तब्दील हो गया. फिर यही पकवान बनाने के अलग अलग तरीक़ों के साथ पहले दक्षिण भारत के तमाम इलाक़ों और फिर पूरे हिंदुस्तान में फैल गया. सांबर बनाने की शुरुआत के साथ आम तौर पर यही कहानी सुनी-सुनाई जाती रही है.

खान-पान के मशहूर इतिहासकार और आहार विशेषज्ञ के. टी अचाया ने भी सांबर से जुड़ी इस कहानी की तस्दीक़ की है. तो आम तौर पर यही माना जाता है कि सांबर बनाने की शुरुआत तंजावुर से हुई थी.

लेकिन, पुणे के रहने वाले खान पान की संस्कृति के रिसर्चर डॉक्टर चिन्मय दामले कहते हैं कि सांबर से जुड़ी इस कहानी में कोई ख़ास सच्चाई है नहीं.

उन्होंने बीबीसी मराठी को बताया, "जब शाहूजी ने 1684 में तंजावुर की गद्दी संभाली तो वो 12 साल के थे. और संभाजी महाराज की सत्ता का प्रमुख दौर 1680 से 1689 के बीच का माना जाता है. ऐसे में इस बात की संभावना बहुत कम है कि ये घटना 1684 से 1689 के बीच घटी होगी."

"इसके अलावा संभाजी महाराज के तंजावुर का दौरा करने के क़िस्से की पुष्टि के लिए भी कोई सबूत नहीं हैं. सत्रवहीं सदी के मराठा पकवानों के बारे में बहुत कम दस्तावेज़ी ज़िक्र मिलते हैं. ऐसे में लगता यही है कि सांबर बनाने की शुरुआत को लेकर सुनाए जाने वाले इस क़िस्से का कोई ख़ास आधार नहीं है."

लेकिन, तंजावुर के मराठा शासकों के मौजूदा वंशज, शिवाजी महाराज भोंसले ने बीबीसी मराठी को बताया कि जब संभाजी महाराज तंजावुर के दौरे पर गए थे, तो उन्हें दाल, सब्ज़ियों और इमली से बना ख़ास व्यंजन परोसा गया था और इसे उनके नाम पर सांबर कहा गया था.

तो फिर, सांबर शब्द का मतलब क्या हो सकता है?

हमें सांबर शब्द की उत्पत्ति के बारे में सोचने की ज़रूरत है. वो रसदार पकवान जिसे हम इडली या दोसे के साथ खाते हैं. पहले के ज़माने में खाने के बहुत से व्यंजन केवल स्वाद बढ़ाने की ग़रज़ से परोसे जाते थे और उन्हें सांबर कहा जाता था. उस दौर में सांबर असल में सलाद जैसा ही एक लफ़्ज़ था. जैसे सलाद को खीरे और टमाटर के साथ अन्य कई सब्ज़ियां मिलाकर बनाया जा सकता है. उसी तरह सांबर शब्द को कई मिलते जुलते पकवानों के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

कुछ विद्वान कहते हैं कि सांबर शब्द व्याकरणीय नज़रिए से संस्कृत के शब्द सांभर से काफ़ी मिलता है.

महाराष्ट्र की विश्व कोष परिषद् के सदस्य और संस्कृत के विद्वान हेमंत राजोपाध्ये इस बात पर रोशनी डालते हैं.

हेमंत कहते हैं, "संस्कृत के सम और भ्रु का मतलब होता है बहुत सी चीज़ों को मिलाना या बहुत सी वस्तुओं को मिलाकर कोई चीज़ तैयार करना. लेकिन, हम ये नहीं कह सकते कि इस बात का कोई संबंध सांबर से भी है."

हेमंत राजोपाध्ये आगे कहते हैं, "जब तक हम सांबर शब्द की उत्पत्ति के द्रविड़ और इंडो-ईरानियन संदर्भों का परीक्षण नहीं करते, तो ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि सांबर शब्द संस्कृत के सांभर से उत्पन्न हुआ. जब तक हम इसके किसी भाषा से सीधे संबंध का हवाला नहीं तलाश लेते, तो बस इसे क़रीबी शब्द होने की संभावना या महज़ इत्तेफ़ाक़ ही कहा जा सकता है."

राजोपाध्ये कहते हैं कि बरो और एमेन्यू द्वारा संपादित द्रविड़ियन एटाइमोलॉजिकल डिक्शनरी में इन दोनों शब्दों के बीच किसी तरह के संबंध का कोई ज़िक्र नहीं मिलता है.

डॉक्टर चिन्मय दामले कहते हैं कि सांबर का मतलब ऐसे पकवान होता है, जो स्वाद बढ़ाते हों.

डॉक्टर दामले कहते हैं, "हम देखते हैं कि सांबर शब्द ऐसी चीज़ों के लिए इस्तेमाल होता है जो स्वाद बढ़ाने का काम करते हैं. हो सकता है कि सांबर शब्द सांभर का ही तद्भव रूप हो. मसाले और सांबर के भी एक जैसे अर्थ होते हैं."

डॉक्टर दामले बताते हैं कि लीलाचरित्र में मसालों के लिए सांबरू शब्द का प्रयोग हुआ है.

वो कहते हैं, "संस्कृत के सांभर शब्द जैसे ही शब्द हमें गुजराती (सांभर) बंगाली (सांभरा), तेलुगू (सांबरामू), तमिल (सांबर), कन्नड़ (सांबर/चांबर) भाषाओं में भी मिलते हैं. मलयालम भाषा में मसालों के साथ तैयार की जाने वाली छाछ को सांबरम कहते हैं."

महाराष्ट्र में सांबर

ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में सांबर और सांबरू शब्द का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है.

चिन्मय दामले कहते हैं कि चक्रधर स्वामी की रचना लीलाचरित्र के पहले हिस्से की कविता नंबर 260 में सांबरू शब्द का इस्तेमाल लज़्ज़त बढ़ाने वाले पकवान के लिए किया गया है.

चिन्मय दामले कहते हैं, "इसी तरह कविता नंबर 358 में सांबरिव शब्द का इस्तेमाल हुआ है. इस कविता का शीर्षक तथा चना अरोगन है. भैदेव एक गांव में जाते हैं और वो चने की कुछ कोठरियां देखते हैं. वो चक्रधर स्वामी के लिए अच्छे दर्ज़े के चने जमा करते हैं और बाक़ी को खा जाते हैं. फिर वो मुट्ठी भर चने लेकर मुनिदेव नाम के साधु के पास जाते हैं और कहते हैं कि मुनिदेव मैं आपके लिए कुछ चने लाया हूं. वो स्वाद में बहुत मीठे हैं. तब संत मुनिदेव एक महिला को कहते हैं कि वो इन चनों को ले जाए और इस्तेमाल कर ले. फिर वो महिला धनकाने और सांबरिव नाम के पकवान तैयार करती है. इस चौपाई में सांबरिव का मतलब सांबर यानी स्वाद बढ़ाने वाला है."

लीलाचरित्र का ये ज़िक्र इस बात को बिल्कुल स्पष्ट कर देता है कि सांबरू (रसदार सब्ज़ी में इस्तेमाल किया जाने वाला एक मसाला) और सांबरिव (स्वाद बढ़ाने वाला पकवान), दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल महाराष्ट्र में उन्नीसवीं सदी तक होता रहा था.

डॉक्टर चिन्मय दामले बताते हैं, "इसके अलावा एकनाथ महाराज के पौत्र मुक्तेश्वर ने भी सांबर नाम के एक पकवान का ज़िक्र, राजसूय बलिदान से जुड़े अपने एक व्याख्यान में किया है."

पेशवाओं के राज में सांबर

पेशवा के दस्तावेज़ों में भी सांबर नाम के एक व्यंजन का ज़िक्र मिलता है. पेशवा सवाई माधोराव ने 1782 में पुणे में ब्याह रचाया था. तब नाना फणनवीस ने इस शाही शादी की ज़ोरदार तैयारियां की थीं. ऐसा लगता है कि उन्होंने इस बारे में बारीक़ से बारीक़ निर्देश भी ख़ुद ही दिए थे.

ऐसे ही एक निर्देश में दो तरह के चावल परोसने की बात कही गई है- मीठे चावल और बैंगन वाले चावल. फिर दो तरह ही सब्ज़ी परोसने के लिए भी आदेश दिए गए हैं. दाल से बनी सब्ज़ी सांबरी, दो तरह के सूप, सांबर, खीर वग़ैरह का भी ज़िक्र है. नाना फणनवीस ने ये निर्देश भी दिए थे कि इन पकवानों को कैसे बिना ज़मीन पर या बर्तन में कहीं और गिराए परोसा जाए.

डॉक्टर चिन्मय दामले कहते हैं कि इन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि एक स्वाद बढ़ाने वाला पकवान और सलाद की तरह का व्यंजन सांबर, महाराष्ट्र में पकाया जाता था. नाना फणनवीस ने एक ख़त में सिद्धटेक मंदिर में होने वाली एक पूजा का ज़िक्र किया है, जिसके प्रसाद को ब्राह्मणों के बीच परोसा जाना था.

मराठों से पहले तंजावुर पर नायक राजवंश का राज था. 'रघुनाथभ्युदयामु' नाम की इस दौर की एक कविता में तंजावुर के राजा रघुनाथ नायक की ज़िंदगी के एक दिन का ब्यौरा मिलता है. इस कविता में पकवानों की लंबी फ़ेरहिस्त का ज़िक्र है, जो राजा को खाने के लिए परोसे जाते थे. इनमें से कुछ व्यंजन जैसे कि सांबारोटी और सांबर चावल (जिसमें और मसाले मिले हों)का हवाला मिलता है. लेकिन ऐसा लगता नहीं कि इनमें से कोई पकवान ऐसा है, जो आज के दौर में खाए जाने वाले सांबर से मिलता जुलता हो.

चिन्मय दामले कहते हैं "हालांकि कहा तो ये जाता है कि तंजावुर के शाहूजी महाराज ने आज के सांबर का आविष्कार किया था. लेकिन, उनकी लिखी किसी भी किताब में ऐसे किसी व्यंजन का ज़िक्र नहीं मिलता है. हां, शाहूजी की किताब में पोरिचाचाकुलूम्बु नाम के एक पकवान का हवाला ज़रूर दिया गया है, जिसे अरहर की दाल, सब्ज़ियां, इमली, करी पत्ते, हींग और मीर के चूर्ण से बनाया गया था. तो सांबर शब्द और शाहूजी महाराज के बीच कोई ताल्लुक़ नज़र नहीं आता. इसके अलावा तंजावुर से प्रकाशित शर्बेंद्र पाकशास्त्र में भी अरहर की दाल से बनने वाले सांबर का कोई ज़िक्र नहीं है."

तो, इस विषय में बहुत से ऐतिहासिक संदर्भों और उपलब्ध साहित्य को खंगालने के बाद आज परोसे जाने वाले सांबर और इसकी उत्पत्ति की कहानी के बीच कोई रिश्ता मिलता नहीं है.

तो फिर, आज के दौर का सांबर कहां से आया?

ये सवाल बना हुआ है कि सांबर शब्द कहां से आया?

डॉक्टर चिन्मय दामले के अनुसार, "बीसवीं सदी के मद्रास में बड़े पैमाने पर खाने पीने की छोटी छोटी दुकानें शुरू की गई थीं. इन दुकानों में कुलांबु नाम का एक पकवान खाने के लिए मिलता था. हो सकता है कि इसे ही सांबर भी कहा जाता रहा हो. इडली, वड़ा या दोसे के साथ परोसा जाने वाला स्वाद बढ़ाने वाला पकवान सांबर कहा जाता है."

डॉक्टर दामले कहते हैं कि धीरे धीरे पोरिचाकुलांबु और कुलुबू विलुप्त हो गए और उनकी जगह सांबर ने ले ली. दिलचस्प बात ये है कि सांबर शब्द का पहली बार प्रयोग दक्षिण भारत में स्वाद बढ़ाने वाले खाने के तौर पर हुआ था.

मसाला दोसा में भरावन के रूप में डाले जाने वाले आलू को मसाला कहा जाता है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान प्याज़ और आलू की भारी कमी हो गई थी. इसीलिए, कर्नाटक में खाने पीने की दुकानों में दोसे में सूखी सब्ज़ी भरकर परोसी जाने लगी. इस भरावन वाली सब्ज़ी को भी मसाला कहा जाता है.

https://www.youtube.com/watch?v=xUmhJMWqx00

तमिलनाडु में खाने-पीने की दुकानें मसाला पूरी नाम का पकवान परोसती हैं. इसमें आलू की सब्ज़ी और पूरी दी जाती है. चूंकि आलू की सब्ज़ी स्वाद बढ़ाने के लिए होती है, तो इसे मसाला कहा जाता है. कहने का मतलब ये है कि दोसे में भरी आलू की सब्ज़ी या उसके साथ दिया जाने वाला सांबर, दोनों एक ही काम के लिए हैं.

अब हक़ीक़त जो भी हो, सांबर ने हमारी ज़िंदगी में एक ख़ास जगह बना ली है. दक्षिण भारत के होटलों ने दुनिया के कई देशों में अपनी शाखाएं खोल ली हैं. इन्होंने सांबर को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका अदा की है.

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