मोदी सरकार को बड़ा झटका, संसद में कृषि विधेयकों को विरोध करेगा शिरोमणि अकाली दल
सरकार के तीन कृषि विधेयकों को लेकर हरियाणा और पंजाब में बड़ी संख्या में किसान सड़कों पर हैं।
नई दिल्ली। कृषि विधेयकों को लेकर हरियाणा और पंजाब में चल रहे किसानों के आंदोलन के बीच मोदी सरकार को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब एनडीए के प्रमुख सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल ने इस मुद्दे पर सरकार का साथ देने से इनकार कर दिया। शिरोमणि अकाली दल के सांसद बलविंदर भुंदर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी संसद के दोनों सदनों में सरकार के कृषि विधेयकों को विरोध करेगी। गौरतलब है कि सरकार के तीन कृषि विधेयकों को लेकर हरियाणा और पंजाब में बड़ी संख्या में किसान सड़कों पर हैं।
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हम एक स्वतंत्र राजनीतिक पार्टी हैं- SAD
गुरुवार को संसद के मानसून सत्र में हिस्सा लेने पहुंचे शिरोमणि अकाली दल के सांसद बलविंदर भुंदर ने कहा, 'संसद के दोनों सदनों में हमारी पार्टी केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों का विरोध करेगी। हम एक स्वतंत्र राजनीतिक पार्टी हैं। गठबंधन का अर्थ यह नहीं है कि हम हर उस बात पर सहमत होंगे, जो भारतीय जनता पार्टी कहेगी। भाजपा का अपना एजेंडा है और हमारा पार्टी का अपना एजेंडा।'
विधेयकों के विरोध में सड़कों पर किसान
आपको बता दें कि सरकार के तीन कृषि विधेयकों को लेकर पिछले कई दिनों से हरियाणा और पंजाब में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की मांग है कि सरकार इन विधेयकों को वापस ले। हरियाणा के किसानों का कहना है कि वो 19 सितंबर तक धरना देंगे और शांतिपूर्वक तरीके से सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करेंगे, लेकिन अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती है तो फिर 20 सितंबर को पूरे हरियाणा में चक्का जाम किया जाएगा। हाल ही में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज भी किया गया था, जिसमें कई किसानों को चोटें आईं।
सीएम अमरिंदर सिंह ने किया किसानों का समर्थन
वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी केंद्र के इन विधेयकों का विरोध किया है। अमरिंदर सिंह ने बुधवार को किसानों से अपील करते हुए कहा कि वो ट्रैफिक ना रोकें और शांति से अपनी बात रखें। सीएम अमरिंदर ने विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमों को भी वापस लेने का ऐलान किया। किसानों से जुड़े संगठनों का कहना है कि सरकार के ये विधायक पूरी तरह से कृषि और किसान के खिलाफ हैं। संगठनों का तर्क है कि इन विधेयकों के जरिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की पहले से स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है।
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