साख बचाने में सचिन पायलट ने खोए दो अहम पद, खिसकी राजनीतिक जमीन, CM गहलोत ने घोषित किया निकम्मा
जयपुर। राजस्थान की राजनीति में पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस पार्टी के दो दिग्गज क्षत्रपों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच तलवारें खिच गई थीं, जिसकी इतिश्री फिलहाल अशोक गहलोत खेमे की जीत से होती दिख रही है। पिछल काफी दिनों से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमे के बीच जुबानी जंग चल रही थी, लेकिन यह उस वक्त खुलकर सार्वजनिक तौर पर सामने आ गई, जब सचिन पायलट ने सरकार के खिलाफ बगावत कर दी और अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली आ गए। लेकिन आखिरकार तमाम वाद-विवाद के बाद सचिन पायलट ने पार्टी में फिर से वापसी की है और कहा राजस्थान की जनता से किए वादे को पूरा करने की कोशिश जारी रहेगी, यह लड़ाई किसी पद की नहीं बल्कि स्वाभिमान और सम्मान की थी। लेकिन इस पूरे प्रकरण का विश्लेषण करें तो सचिन पायलट को व्यक्तिगत तौर पर इस लड़ाई से कुछ खास हासिल होता नहीं दिख रहा है, बल्कि इससे इतर उन्हें इस विरोध ने काफी नुकसान पहुंचाया है।
गहलोत खेमे की बढ़ी साख
अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ सार्वजनिक विद्रोह के बाद सचिन पायलट को बदले में कोई बड़ी सफलता या आश्वासन नहीं मिला है। बल्कि इससे उलट इस पूरी लड़ाई को अशोक गहलोत की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के खिलाफ सार्वजनिक मंच पर मीडिया के सामने खूब खरी-खोटी कहा था, यही नहीं उन्होंने सचिन पायलट को निकम्मा तक कह डाला था। उन्होंने कहा था कि सचिन पायलट ने कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है।
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दो अहम पद गए हाथ से
सचिन पायलट को सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि उनके हाथ से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई, दूसरी उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया के पद से भी हटा दिया गया था। इस पूरी लड़ाई के दौरान कांग्रेस पार्टी की ओर से उनके खिलाफ दो बड़ी कार्रवाई की गई और सचिन पायलट को इन दोनों ही अहम पदों से हाथ धोना पड़ा। हालांकि सचिन पायलट का कहना है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी ने मेरी समस्या को सुना है और इसका समाधान करने की बात भी कही है। लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि सचिन पायलट की शिकायतों पर पार्टी क्या कदम उठाएगी।
व्यक्तिगत छवि को नुकसान
सचिन पायलट की व्यक्तिगत छवि की बात करें को उन्हें पार्टी से इतर एक बेहतर नेता के तौर पर हर दल में स्वीकार किया जाता है, उनकी छवि एक पढ़े लिखे, समझदार नेता के तौर पर होती है। ऐसे में जिस तरह से सचिन पायलट ने खुले तौर पर अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला था, उसके बाद लोगों को लग रहा था कि सचिन पायलट कुछ बड़ा राजनीतिक उलटफेर कर सकते हैं। हर किसी की निगाह इस महीने राजस्थान विधानसभा में होने वाले फ्लोर टेस्ट पर टिकी थी। सचिन पायलट ने कहा था कि अगर मैं राजस्थान की जनता से किया वादा पूरा नहीं कर सकता तो पद पर बने रहने का क्या महत्व। इस पूरे प्रकरण के बीच सचिन पायलट के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी खोई राजनीतिक साख और और पकड़ को वापस से हासिल करना है।
गहलोत रहेंगे हावी
अशोक गहलोत ने सचिन पायलट पर आरोप लगाया था कि सचिन पायलट बीजेपी के समर्थन से पिछले 6 महीनों से साजिश रच रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से वे सरकार गिराना चाहते थे। वे पार्टी ज्वाइन करने की कोशिश थी, जब विधायकों ने इनकार किया तो कहा थर्ड फ्रंट बना लेंगे।26 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री बन गए। 36 साल में प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष बन जाओ। छह सात साल में डिप्टी सीएम बन गए।किसी ने भी मुझ पर विश्वास नहीं किया जब मैं कहता था कि सरकार को गिराने की साजिश चल रही है। किसी को नहीं पता था कि इस तरह के भोले चेहरे वाला यह व्यक्ति ऐसा काम करेगा।
सचिन पायलट के खिलाफ निकाली भड़ास
मुख्यमंत्री गहलोत यहीं नहीं रुके थे, उन्होंने कहा था कि मैं यहां सब्जियां बेचने के लिए नहीं हूं, मैं मुख्यमंत्री बनने आया हूं। एक छोटी खबर भी नहीं पढ़ी होगी किसी ने कि पायलट साहब को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाना चाहिए। हम जानते थे कि वो (सचिन पायलट) निकम्मा है, नकारा है, कुछ काम नहीं कर रहा है खाली लोगों को लड़वा रहा है। हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी जैसे महंगे वकील कर रखे हैं, ये पैसे कहां से आ रहे हैं। गहलोत ने कहा कि, सचिन पायलट जिस रूप में खेले वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी को याकिन नहीं होता था कि ये व्यक्ति ऐसा कर सकता है..मासूम चेहरा, हिंदी-अंग्रेजी पर अच्छी कमांड और पूरे देश की मीडिया को इंप्रेस कर रखा है।
गहलोत सरकार सुरक्षित
सचिन पायलट के हथियार डालने का बाद यह साफ है कि प्रदेश की गहलोत सरकार अब सुरक्षित है। इसे गहलोत की बड़ी सफलता के रुप में देखा जा रहा है, वह भाजपा की योजना को विफल करने में भी सफल रहे हैं। जिस तरह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरी थी, उसके बाद हर किसी की नजह राजस्थान पर थी, ऐसे में अगर यहां प्रदेश की सरकार गिरती तो कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर काफी किरकिरी का सामना करना पड़ता। इस पूरी लड़ाई में सचिन पायलट को व्यक्तिगत और राजनीतिक तौर पर काफी बड़े नुकसान हुए हैं।
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