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सचिन पायलट आखिरी नहीं, जानिए कांग्रेस के गांधी परिवार तक सिमटने की असली कहानी?

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बेंगलुरू। मार्च, 2020 में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस भावी मुख्यमंत्री और युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को किनारे लगा दिया और अब राजस्थान में युवा नेता सचिन पायलट को भी लगभग किनारे लगा चुकी है। इसका सीधा मतलब है कि कांग्रेस कैडर के बजाय गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान नेता को ही तवज्जो देती है और इस खांचे में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पिता माधवराव सिंधिया और सचिन पायलट और उनके पिता राजेश पायलट कभी नहीं बैठ सके थे।

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पार्टी नहीं, गांधी परिवार के प्रति निष्ठावानों को तवज्जो देती है कांग्रेस

पार्टी नहीं, गांधी परिवार के प्रति निष्ठावानों को तवज्जो देती है कांग्रेस

गांधी परिवार कांग्रेस में केवल उन्हीं नेताओं को तवज्जो देती आई है, जो पार्टी के प्रति नहीं, गांधी परिवार के प्रति अधिक निष्ठावान है। इसकी बानगी राजस्थान में अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में कमलनाथ के रूप में देखी जा सकती है, जिन्हें वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कद्दावर युवा चेहरों को दरकिनार करके मौका दिया।

निष्ठावान से यहां मतलब है गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान कांग्रेसी नेता

निष्ठावान से यहां मतलब है गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान कांग्रेसी नेता

निष्ठावान से यहां मतलब है गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान कांग्रेसी, जो परिवार से खुद को एक दर्जा नीचे मानता हो। गांधी परिवार को ऐसे हर व्यक्ति पर एतराज होता है, जो राजनीतिक तौर पर ज्यादा काबिल हो और खुद को राहुल गांधी की जगह कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी के काबिल समझता हो, मध्यप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में अभी जो कुछ हुआ है, यह सब उसी का परिणाम है।

कांग्रेस में महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए तब तक कोई जगह नहीं है...

कांग्रेस में महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए तब तक कोई जगह नहीं है...

कांग्रेस में महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है, उनकी जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट की तरह सेनापति की तरह होती है, जो गांधी परिवार के लिए राज्य जीतने में उनकी मदद करे, लेकिन पद और एलीवेशन की उम्मीद कतई न करे। इतिहास गवाह है, जिन्होंने भी ऐसी गलती की है, उन सभी कांग्रेस में दुर्गति हुई। ज्यादा दूर नहीं जाते हैं, यह सचिन पायलट, ज्योतिरायदित्य सिंधिया की पिछड़ी पीढ़ी के नेताओं से समझा जा सकता है।

नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस ने लाल बहादुर शास्त्री को ही क्यों चुना ?

नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस ने लाल बहादुर शास्त्री को ही क्यों चुना ?

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मई 1964 में हुए निधन के बाद उनकी जगह लेने के लिए दो बड़े नेता प्रमुख दावेदार थे, लेकिन कांग्रेस ने लाल बहादुर शास्त्री को क्यों चुना और मोरारजी देसाई को किनारे लगा दिया। इसके पीछे भी कैडर से ज्यादा गांधी परिवार के प्रति लाल बहादुर शास्त्री की निष्ठा महत्वपूर्ण कड़ी थी, क्योंकि शास्त्री नेहरू खेमे के माने जाते थे और उन्हें सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री पीएम चुन लिया गया।

लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद भी मोरारजी देसाई को मौका नहीं मिला

लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद भी मोरारजी देसाई को मौका नहीं मिला

जनवरी 1966 में जब पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद भी प्रमुख दावेदारों की लिस्ट में शुमार मोरारजी देसाई को मौका नहीं दिया गया और बाजी तब गूंगी गुड़िया के नाम से पुकारी जा रहीं इंदिरा गांधी के हाथ ही लगी। बाकी का इतिहास सबको पता है कि मोरारजी देसाई ने अपमानित होकर कांग्रेस को छोड़ दिया, जिस प्रकार ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट कांग्रेस के किनारे हो चुके हैं।

कांग्रेस में कैडर के ऊपर परिवार को तवज्जों देने के पीछे है रोचक कहानी

कांग्रेस में कैडर के ऊपर परिवार को तवज्जों देने के पीछे है रोचक कहानी

कांग्रेस पार्टी में कैडर के ऊपर परिवार को तवज्जों देने के पीछे एक बड़ी कहानी है, जो तमिल नेता के कामराज के फार्मूले से जुड़ा हुआ है। दिलचस्प बात यह है यह फार्मूला कामराज प्लान के नाम से जाता है, जिसने कांग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का ढांचे को कमजोर करके यह सुनिश्चित किया कि पार्टी पर परिवार की पकड़ इतनी मजबूत हो कि कोई उसे चुनौती न दे सके। यह अलग बात है कि खुद के कामराज भी इसके शिकार हुए बिना नहीं रह सके थे।

सोनिया गांधी खुद PM पद तक नहीं पहुंच सकीं तो मनमोहन सिंह को चुना

सोनिया गांधी खुद PM पद तक नहीं पहुंच सकीं तो मनमोहन सिंह को चुना

यह कामराज प्लान ही था कि सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंच सकीं, तो उन्होंने सभी कैडर वाले नेताओं को किनारे करके निष्ठावान कांग्रेसी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चुना और यह सर्वविदित है कि करीब 10 साल तक भारत में सोनिया गांधी बैकडोर से सरकार चलाती रहीं। इसलिए डा. मनमोहन सिंह को कठपुतली प्रधानमंत्री तक पुकारा गया।

राजस्थान अशोक गहलोत और MP कमलनाथ को इसी फार्मूले पर दिया गया

राजस्थान अशोक गहलोत और MP कमलनाथ को इसी फार्मूले पर दिया गया

राजस्थान को अशोक गहलोत के हवाले करना और मध्य प्रदेश को कमलनाथ के हवाले किया जाना, इसी प्लान के तहत किया गया था। सभी जानते हैं कि 2013 के विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद गहलोत ने खुद को प्रदेश की सियासत से अलग कर लिया था और सचिन पायलट ने संघर्षों का नतीजा था कि पार्टी 2018 विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने में कामयाब हो गई, जबकि सभी जानते हैं कि वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस पार्टी जीरो पर आउट हुई थी।

 युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया व सचिन पायलट सेनापति जरूर बनाए गए

युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया व सचिन पायलट सेनापति जरूर बनाए गए

संयोग ही कहेंगे कि वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश और राजस्थान में एक साथ चुनाव कराए गए और दोनों प्रदेशों के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट सेनापति बनाए गए थे, लेकिन जब चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आया, तो दोनों को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर कर दिया गया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास ज्योतिरादित्य सिंधिया के समकक्ष कोई नेता नहीं था, लेकिन कांग्रेस ने छिंदवाड़ा तक सीमित रहने वाले नेता कमलनाथ को ज्योतिरादित्य सिंधिया पर वरीयता दे दी गई।

वरना 51 वर्षीय युवराज राहुल गांधी के समक्ष चुनौती खड़ी हो सकती थी

वरना 51 वर्षीय युवराज राहुल गांधी के समक्ष चुनौती खड़ी हो सकती थी

गांधी परिवार अच्छी तरह से जानता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट को प्रदेशों की कमान देने पर गांधी परिवार को 51 वर्षीय युवराज राहुल गांधी के समक्ष चुनौती खड़ी हो जाएगी। इसकी तस्दीक कांग्रेस के निष्ठावान नेताओं में शुमार वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के हालिया बयान से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सचिन पायलट को अभी और धैर्य रखना चाहिए।

इसीलिए दिग्विजय सिंह ने कहा सचिन पायलट को धैर्य रखना चाहिए था

इसीलिए दिग्विजय सिंह ने कहा सचिन पायलट को धैर्य रखना चाहिए था

दिग्विजय सिंह का यह बयान सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्तगी के बाद आया था। बयान का सीधा मतलब था कि सचिन पायलट अभी कांग्रेस के निष्ठावान नेताओं की सूची में शुमार नहीं हो पाए थे। भले ही सचिन पायलट यह कहते हुए फिर रहे हैं कि वो अभी भी कांग्रेसी हैं और बीजेपी ज्वाइन नहीं करेंगे। यह सचिन पायलट की कमजोरी ही कह सकते हैं कि वो पार्टी में रहकर यह अभी तक नहीं समझ पाए हैं।

कांग्रेस में कैडर बेस्ड नेताओं का अकाल साफ-साफ देखा जा सकता है

कांग्रेस में कैडर बेस्ड नेताओं का अकाल साफ-साफ देखा जा सकता है

हालांकि गांधी परिवार की इस नीति से कांग्रेस ने पार्टी में निष्ठावान नेताओं की भीड़ भले ही खड़ी कर ली है, लेकिन कैडर बेस्ड नेताओं का अकाल साफ-साफ देखा जा सकता है। कांग्रेस पार्टी जानती है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी केंद्र में सरकार बनाने में सफल नहीं होगी, क्योंकि बूढ़ी हो चुकी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी पहले जैसा नेतृत्व कर पाएंगी, इसमें भी शक की पूरी गुंजाइश है।

कामराज प्लान से गांधी परिवार की कई पीढ़ी को सत्ता सुख में मिली मदद

कामराज प्लान से गांधी परिवार की कई पीढ़ी को सत्ता सुख में मिली मदद

कामराज प्लान ने गांधी परिवार की कई पीढ़ी को सत्ता सुख दिलाने में काफी मदद की, जिसमें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और खुद सोनिया गांधी का नाम लिया जा सकता है, लेकिन इससे कांग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र के ढांचे को पूरी तरह से कमजोर कर दिया है। इससे पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ भले ही मजबूत हो, लेकिन कैडर बेस्ड नेताओं का अकाल पड़ता गया है और सचिन पायलट आखिरी नहीं हैं, इसमें जितिन प्रसाद का भी नंबर आना तय है।

गांधी परिवार से इतर कांग्रेस अध्यक्ष पर ताजपोशी कम ही लोगों की हुई

गांधी परिवार से इतर कांग्रेस अध्यक्ष पर ताजपोशी कम ही लोगों की हुई

गांधी परिवार से इतर कांग्रेस अध्यक्ष पर ताजपोशी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कांग्रेस अध्यक्ष पद पर तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के कामराज की ताजपोशी के बाद धुंधला सी याद सीताराम केसरी का नाम याद आता है, जबकि नेहरू-गांधी परिवार से अब तक कुल 7 लोग यह जिम्मेदारी को संभाल चुके हैं, इनमें पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम भी शामिल है।

कांग्रेस हमेशा से ही निष्ठावान कांग्रेसियों पर दांव लगाती आई है

कांग्रेस हमेशा से ही निष्ठावान कांग्रेसियों पर दांव लगाती आई है

कांग्रेस हमेशा से ही निष्ठावान कांग्रेसियों पर दांव लगाती आई है, जो बिना सवाल किए पार्टी के लिए काम करता रहे। पार्टी ऐसे निष्ठावान कांग्रेसियों को अच्छे पदों से नवाजती भी है, लेकिन तब जब उन्हें पूरा भरोसा हो जाता है कि अमुक कांग्रेसी नेता गांधी परिवार के सत्ता के लिए कभी चुनौती नहीं बनेगा। वरना पूर्वोत्तर के बड़े कांग्रेसी नेता हेमंत विस्वा शर्मा और अरुणाचल प्रदेश के कांग्रेसी नेता पेमा कांडू जैसे कद्दावर नेताओं को कांग्रेस नहीं छोड़ना पड़ता।

कांग्रेस द्वारा किनारे लगाए गए कैडर वाले नेताओं की एक पूरी फेहरिस्त हैं

कांग्रेस द्वारा किनारे लगाए गए कैडर वाले नेताओं की एक पूरी फेहरिस्त हैं

कांग्रेस से और कांग्रेस द्वारा किनारे लगाए गए कैडर वाले नेताओं की एक पूरी फेहरिस्त हैं। इस क्लब में ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट नए-नए जुड़े हैं। इससे पूर्व कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गई रीता बहुगुणा जोशी और शिवसेना में जु़ड़ी प्रियंका चतुर्वेदी को कौन भूल सकता है। उसके पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी से जुड़े कांग्रेसी नेता जगदंबिका पाल और गांधी परिवार के नजदीकी संजय सिंह प्रमुख है। कद्दावर NCP चीफ शरद पवार भी भुक्तभोगी रहे हैं।

जब-जब केंद्र की सत्ता छूटती है, तब तब कांग्रेस टूटती है: सुधांशु त्रिवेदी

जब-जब केंद्र की सत्ता छूटती है, तब तब कांग्रेस टूटती है: सुधांशु त्रिवेदी

यही कारण है जब-जब कांग्रेस छोड़कर जाने वाले नेताओं पर हमला करते हुए कांग्रेस बयान देती है, तो कांग्रेस उसके ऊपर सवाल उठाती है। अभी सचिन पायलट के बगावत पर जब कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला किया तो बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु चतुर्वेदी ने कांग्रेस के क्रिया कलापों पर ही सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा, जब-जब केंद्र की सत्ता छूटती है, तब तब कांग्रेस टूटती है, क्योंकि कांग्रेस विचारधारा विहीन, सत्ता आधारित, नेता प्रेरित दल है।

English summary
In March 2020, Congress sidelined Jyotiraditya Scindia, the Congress's future Chief Minister and youth leader in Madhya Pradesh, and has now outshone youth leader Sachin Pilot in Rajasthan. It simply means that the Congress prefers a loyal leader to the Gandhi family rather than the cadre, and Jyotiraditya Scindia and his father Madhavrao Scindia and Sachin Pilot and his father Rajesh Pilot could never sit in this groove.
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