शिवसेना ने ऑक्सफैम की रिपोर्ट पर कसा तंज, 'सबका साथ सबका विकास' मोदी सरकार की नौटंकी है'
नई दिल्ली। भारत में अमीर और गरीब लोगों के बीच बढ़ती खाई को उजागर करने वाले एक आर्थिक सर्वेक्षण(ऑक्सफैम की रिपोर्ट) का उदाहरण देते हुए शिवसेना ने मंगलवार को केंद्र सरकार पर कटाक्ष किया। शिवसेना ने मोदी सरकार के 'सबका साथ सबका विकास' नारे एक नौटंकी बता दिया है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा कि हिंदुस्तान जल्द ही आर्थिक महासत्ता बनने वाला है। इस तरह की अफवाहें पहले भी बीच-बीच में उड़ाई जाती रही हैं।
देश के अमीर और गरीब के बीच की दूरी तेजी से बढ़ रही है
शिवसेना ने कहा कि आर्थिक क्षेत्र में कार्य करने वाली प्रतिष्ठित संस्था 'ऑक्सफैम' की वार्षिक रिपोर्ट ने 'सबका विकास' के दावे की पोल खोल दी है। देश के अमीर और गरीब के बीच की दूरी तेजी से बढ़ रही है, यह सच्चाई दुनिया के सामने इस रिपोर्ट ने रख दी है। यह रिपोर्ट हर संवेदनशील इंसान को बेचैन करने वाली है। बता दें कि इस रिपोर्ट में कहा गया था, देश के अरबपतियों की संपत्ति में पिछले साल हर दिन 2200 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ। टॉप 1% में शामिल अमीरों की संपत्ति में 39% बढ़ोतरी हुई। जबकि, कम से कम दौलत वाली देश की 50% आबादी की संपत्ति सिर्फ 3फीसदी बढ़ी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि देश की कुल संपत्ति में से 51.53 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास है।
सालभर में हिंदुस्तान के ये कुबेर 39 प्रतिशत और अमीर बन गए
सामना के संपादकीय में कहा गया कि देश के 10 प्रतिशत लोगों के पास हिंदुस्तान की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा है। देश के सिर्फ एक प्रतिशत अमीर लोगों की तिजोरी में देश के आधे से अधिक लोगों की संपत्ति पड़ी है। यह विषमता यहीं पर नहीं थमती। जो एक प्रतिशत अमीर वर्ग है, उनकी संपत्ति में पिछले एक वर्ष में प्रतिदिन 2 हजार 200 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है, जिसके चलते सालभर में हिंदुस्तान के ये कुबेर 39 प्रतिशत और अमीर बन गए।
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यह खाई कम होने की बजाय दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है
शिवसेना ने कहा कि एक ओर एक प्रतिशत अमीर और दूसरी ओर बाकी गरीब जनता की भयंकर विषमता हिंदुस्तान की सामाजिक रचना और लोकतंत्र की नींव को खोखला करने वाली है। दुनियाभर की अर्थव्यवस्था का अध्ययन कर गरीब और अमीर की विषमता पर ऑक्सफैम हर साल अपनी रिपोर्ट पेश करती है। इसके पहले भी इसी तरह की विषमता सामने आई है। गरीबों को आर्थिक रूप से अधिक सक्षम करने के लिए किसी तरह की कोई ठोस योजना दिखाई नहीं देती है। इसीलिए विषमता की यह खाई कम होने की बजाय दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
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