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सबरीमाला मामले को बड़ी बेंच को भेजने वाले जजों में जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल, 2018 के फैसले में दी थी अलग राय

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नई दिल्ली। केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की औरतों को प्रवेश की इजाजत दिए जाने के अपने फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को भेज दिया है। साल 2018 में सबरीमाला मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए कई याचिकाएं दायर की गई थीं। सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने 3-2 के फैसले से इस मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया। सबरीमाला मामले को बड़ी बेंच को भेजने के पक्ष में फैसला देने वाले जजों में जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल थीं, जिन्होंने 2018 के फैसले में अन्य चार जजों से अलग राय रखी थी।

Sabarimala verdict: Justice Indu Malhotra who gave original dissenting verdict, now part of majority judgment

2018 में सबरीमाला मामले में फैसला सुनाने वाले पांच जजों की पीठ में केवल इंदू मल्होत्रा ही अकेली जज थीं, जिन्होंने मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को सही ठहराया था। पीठ में शामिल अकेली महिला जज ने कहा था कि देश में धर्मनिरपेक्ष माहौल को बनाए रखने के लिए गहरे धार्मिक मामलों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि देश में विविध धार्मिक प्रथाएं हैं।

2018 के फैसले में दी थी अलग राय

इंदु मल्होत्रा ने कहा था कि संविधान सभी को अपने धर्म के प्रचार करने और उसका अभ्यास करने की अनुमति देता है। ऐसे में अदालतों को इस तरह की धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए भले ही फिर यह भेदभावपूर्ण क्यों न हो। जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा था कि भगवान अयप्पा के भक्तों ने अलग तरह का धार्मिक मूल्य बना लिया है। उन्होंने कहा था कि 10-50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश न करने देना उनकी खास धार्मिक परंपरा है जिसे संविधान के तहत रक्षा मिली हुई है।

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अदालत किसी देवता की पूजा पर अपनी नैतिकता या तार्किकता को नहीं थोप सकती है। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा था कि ऐसा करना किसी को उसकी धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित करने जैसा होगा। अगर किसी खास मंदिर में लंबे समय से कोई परंपरा चली आ रही है तो इसे उस मंदिर की अनिवार्य धार्मिक परंपरा के रूप में लेना चाहिए। कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

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English summary
Sabarimala verdict: Justice Indu Malhotra who gave original dissenting verdict, now part of majority judgment
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