सबरीमाला की पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर में हर आयुवर्ग की महिलाओं की एंट्री के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लगभग चार महीने बाद इस मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान केरल सरकार की तरफ से वकील जयदीप गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आपके सामने ऐसे तथ्य नहीं रखे गए हैं जो रिव्यू को न्यायसंगत साबित करें। केरल सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखा कि फैसले को रिव्यू करने का कोई आधार नहीं है। पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सबरीमाला मामला पहले 22 जनवरी के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन बेंच की एक जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा मेडिकल लीव पर थीं, जिसके कारण इस मामले की सुनवाई को टाल दिया गया था। हर आयुवर्ग की महिलाओं की सबरीमाला में एंट्री के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का केरल में भारी विरोध हुआ था। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने आज इस मामले में दाखिल रिव्यू और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई किया।
Supreme Court reserves the judgement on a batch of review petitions over the entry of women of all age groups in Sabarimala temple. pic.twitter.com/jluRxPm8fH
— ANI (@ANI) February 6, 2019
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर 28 सितंबर 2018 को शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ कई सारी समीक्षा याचिकाएं दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 9 अक्टूबर को इन याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई से मना कर दिया था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर में दाखिल होने की महिलाओं की कोशिश नाकाम रही थी और इसको लेकर केरल में भारी विरोध देखने को मिला था।
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बिंदू और कनकदुर्गा नाम की दो महिलाएं जनवरी में मंदिर में प्रवेश करने में कामयाब रही थी। लेकिन इसके बाद मंदिर को शुद्धिकरण के लिए बंद कर दिया गया था। वहीं, दोनों महिलाओं में से एक पर उसकी सास ने भी कथित रूप से हमला किया था और घर से बाहर निकाल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सालों पुराना प्रतिबंध हटाते हुए 10 से 50 साल की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी। पाबंदी को लैंगिक भेदभाव बताते हुए कोर्ट ने सभी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद कई संगठन और लोग इसका विरोध कर रहे हैं।