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यूक्रेन संकट: जब फ़ैसल ने कमल के लिए छोड़ दी फ्लाइट - यूपी के दो दोस्तों की कहानी

फ़ैसल को यूक्रेन पर हमले से पहले भारत लौटने का एक मौक़ा मिला था, मगर उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाले दोस्त कमल के लिए फ्लाइट छोड़ दी

By BBC News हिन्दी
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कमल और फैसल
Kamal And Faisal
कमल और फैसल

यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच मानवीय त्रासदी के साथ-साथ मानवता की भी कहानियाँ सामने आ रही हैं. ऐसी ही एक कहानी है उत्तर प्रदेश के हापुड़ ज़िले के मोहम्मद फ़ैसल और वाराणसी के कमल सिंह राजपूत की.

फ़ैसल को यूक्रेन पर हमले से पहले भारत लौटने का एक मौक़ा मिला था, मगर उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाले दोस्त कमल के लिए फ्लाइट छोड़ दी, और अब दोनों दोस्त रोमानिया के शरणार्थी शिविर में देश लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं.

दोनों ही यूक्रेन के इवानो स्थित फ्रेंकविस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हैं.

क्या है ये वाक़या

फ़ैसल को भारत लौटने के लिए 22 फ़रवरी को अगले दिन की फ़्लाइट के लिए टिकट मिल गई, मगर कमल सिंह को टिकट नहीं मिल सका जिससे वो निराश थे.

अपने दोस्त को मायूस देख फ़ैसल ने फ़ैसला किया कि वो फ्लाइट पर नहीं बैठेंगे.

बीबीसी ने दोनों दोस्तों से रोमानिया के शरणार्थी शिविर में फोन पर संपर्क किया.

कमल सिंह ने कहा, "ऐसे वक्त में जब सभी लोगों को यहां से भागने की पड़ी थी, फ़ैसल ने अपनी फ्लाइट छोड़ दी. उनकी मां और परिवार के अन्य लोगों की कॉल आई थी कि 23 फरवरी को फ्लाइट है, लेकिन फ़ैसल ने घरवालों से साफ कह दिया कि वह भारत नहीं आ रहा है. फ़ैसल से मैंने बहुत कहा कि वह चला जाए, मैं आ जाऊंगा, लेकिन वह मुझे छोड़ कर नहीं गया."

फ़ैसल अपने फ्लाइट छोड़ने के फैसले को सही ठहराते हैं. वह कहते हैं, "कमल और मैं 11 दिसंबर 2021 को यूक्रेन के कीएव में सबसे पहले मिले थे. मैं क़तर एयरलाइंस से गया था, जबकि कमल फ्लाई दुबई से गए थे. हमारा परिचय हुआ और फिर हम एक ही ट्रेन से इवानो पहुंचे और यहां एक ही हॉस्टल में रहने लगे. हमारे विचार काफी मिलते हैं."

युद्ध के हालात में भी फ्लाइट छोड़ने के फैसले पर फ़ैसल कहते हैं, "मेरी फ्लाइट 23 फरवरी को थी. मां ने फोन कर इत्तला भी कर दी थी, लेकिन मैंने साफ़ इंकार कर दिया. मेरी जगह मेरे कॉन्ट्रैक्टर ने किसी अन्य को फ्लाइट से भारत भेज दिया. मेरे ज़ेहन में एक बात आई कि जब अच्छे में दोस्त हैं तो बुरे वक्त में भी मुझे अपने दोस्त का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. कमल का टिकट बुक नहीं हो पाया था इसलिए मैंने भी दोस्त को छोड़ कर आना बेहतर नहीं समझा."

परिवारों की प्रतिक्रिया

कमल सिंह राजपूत का परिवार वाराणसी में पांडेपुर में रहता है. उनके पिता उदय नारायण सिंह का वहां अस्पताल है, जबकि मां गृहिणी हैं. कमल की बहन वर्तिका आईआईटी भोपाल में पढ़ती हैं.

उधर, फ़ैसल का परिवार उत्तर प्रदेश के हापुड़ में बुलंदशहर रोड पर रहता है. उनके पिता सऊदी अरब में एक कंपनी में नौकरी करते हैं.

फ़ैसल की मां सायरा ने बीबीसी से कहा, "बेटे की फ्लाइट 23 फरवरी को थी, लेकिन अचानक उसके फ्लाइट छोड़ने के फ़ैसले से हम सभी काफ़ी हैरान थे. सच मानिए मैं बेटे की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित थी और ऐसे समय में उसका ये फ़ैसला बिल्कुल भी सही नहीं लगा, लेकिन जब फ़ैसल ने कमल के बारे में बताया तो हमें लगा कि उसने शायद ठीक किया. अब हमारी दुआओं में दोनों बच्चे शरीक हो गए हैं."

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कमल और फैसल
Kamal and Faisal
कमल और फैसल

एक दूसरे का हाथ पकड़ पार किया बॉर्डर

फ़ैसल के मुताबिक़, उन्होंने बीते शनिवार को सुबह 11 बजे इवानो छोड़ा. यहां बस के माध्यम से वे रोमानिया बॉर्डर से क़रीब 10 किलोमीटर पहले ही उतार दिए गए. यहां से उन्हें पैदल ही बॉर्डर क्रॉस करना था.

फ़ैसल ने कहा, "हम लोग शाम साढ़े तीन बजे के लगभग बॉर्डर से लगभग 10 किलोमीटर पहले ही पहुंच गए थे. इसके बाद कमल सिंह और मैंने एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया. हमने कहा कि हम एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ेंगे."

घंटों की मशक्कत और भारी भीड़ के बीच भी फ़ैसल और कमल ने एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ा.

कमल सिंह ने कहा, "वहां बॉर्डर को पार करना आसान नहीं था. भारी भीड़ थी. सभी को सिर्फ़ अपनी पड़ी थी. हम घंटों धक्का-मुक्की के बीच रहे. रविवार तड़के साढ़े तीन बजे हम लोग बॉर्डर गेट से जा सटे. भीड़ के धक्के में हम गेट पर मानो चिपक से गए. इसी बीच धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे.

जब गेट से निकलने को हुए तो यूक्रेनी सैनिकों ने हमारे कंधों पर बंदूकों की बट मारी. वे हमारे एक दूसरे का हाथ पकड़ने को लेकर नाराज़ थे, लेकिन हमने एक दूसरे को नहीं छोड़ा. सुबह छह बजे हम रोमानिया बॉर्डर में प्रवेश कर गए. इसी सुबह क़रीब साढ़े नौ बजे तमाम औपचारिकताओं के बाद हम शरणार्थी शिविर रोमानिया पहुंच चुके थे.अब यहां फ्लाइट की प्रतीक्षा में हैं."

कमल और फैसल
Kamal and Faisal
कमल और फैसल

भारत में पढ़ाईमहंगी, तभी गए यूक्रेन

फ़ैसल और कमल सिंह ने बारहवीं कक्षा के बाद दो-दो बार नीट की परीक्षा दी है.

बक़ौल मोहम्मद फ़ैसल, 2020-21 में नीट में 512 अंक प्राप्त किए थे, लेकिन इन अंकों में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में ही प्रवेश मिल सकता था.

यहां पूरी पढ़ाई का ख़र्च तक़रीबन 65-70 लाख रुपए देना पड़ता, जो उनके परिवार के बजट से बाहर था.

कमल सिंह के भी इसी वर्ष में नीट में 527 अंक थे, उन्होंने भी यही कारण बताते हुए यूक्रेन में मेडिकल पढ़ाई करने की बात कही.

फंसे छात्रों की मदद करे सरकार

दोनों ही दोस्त बातचीत के दौरान बार-बार यह ज़ोर दे रहे थे कि सरकार को यूक्रेन में फंसे छात्र-छत्राओं की मदद करनी चाहिए.

कमल कुमार ने कहा, "हमें मालूम है कि छात्र छात्राएं वहां किस परेशानी में हैं. मैंने अपनी आंखों से देखा है कि किस तरह भूखे-प्यासे बच्चे भीषण ठंड में खुले आसमान के नीचे बॉर्डर क्रॉस करने की कोशिश में है. कई लड़कियां तो बेहोश होकर गिर गईं. सरकार को चाहिए कि उनकी मदद करे."

यूरेशिया एजुकेशन लिंक के संस्थापक डॉक्टर मसरूर अहमद यूक्रेन में फंसे बच्चों को वहां से बाहर निकालने में कोशिशों में लगे हैं. उनकी संस्था के माध्यम से हर वर्ष ही सैकड़ों बच्चे यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए पहुंचते हैं.

डॉक्टर मसरूर बीबीसी से कहते हैं, "हापुड़ के मोहम्मद फ़ैसल मेरे स्टूडेंट हैं. उनकी 23 फरवरी को फ्लाइट थी, लेकिन वह उस फ्लाइट से नहीं गए थे. उनके स्थान पर अन्य छात्र को भेजा गया था."

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English summary
russia ukraine crisis: Story of two friends from UP
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