RSS का इतिहास और राष्ट्र निर्माण में भूमिका पढ़ेंगे छात्र, यूनिवर्सिटी के सिलेबस में शामिल
मुंबई: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का इतिहास और-राष्ट्र निर्माण में इसकी भूमिका नागपुर स्थित एक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। नागपुर में ही संघ का मुख्यालय है। राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय ने बीए (इतिहास) के द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में आरएसएस के इतिहास को शामिल किया है। जबकि सिलेबस के तीसरे खंड में राष्ट्र-निर्माण में आरएसएस की भूमिका के बारे में ब्यौरा है।
आरएसएस की राष्ट्र निर्माण में भूमिका पढ़ेंगे छात्र
सिलेबस का पहला खंड कांग्रेस पार्टी की स्थापना और जवाहरलाल नेहरू के उभार में बारे में बताया है और दूसरा खंड नागरिक सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे मुद्दों पर आधारित है। इस घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि यह कदम छात्रों को इतिहास में 'नए रुझानों' के बारे में जागरूक करने के प्रयासों का हिस्सा है। विश्वविद्यालय अध्ययन बोर्ड के सदस्य सतीश चैफल ने मंगलवार को पीटीआई को बताया कि भारत का इतिहास (1885-1947) इकाई में एक अध्याय राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका का जोड़ा गया है, जो बीए (इतिहास) द्वितीय वर्ष पाठ्यक्रम के चौथे सेमेस्टर का हिस्सा है।
2003-04 में आरएसएस पाठ्यक्रम में था शामिल
सतीश चैफल ने आगे बताया कि 2003-2004 में यूनिवर्सिटी के एमए (इतिहास) पाठ्यक्रम में एक अध्याय 'आरएसएस का परिचय' था। इस साल हमने इतिहास के छात्रों के लिए राष्ट्र निर्माण में आरएसएस के योगदान का अध्याय रखा है जिससे कि वे इतिहास में नए रूझानों के बारे में जान सकें। विश्वविद्यालय के कदम को उचित ठहराते हुए चैफल ने कहा कि इतिहास के पुनर्लेखन से समाज के समक्ष नए तथ्य आते हैं। नए रुझान जैसे मार्क्सवाद, न्यू मार्क्सवाद या नया आधुनिकतावाद नए रुझानों के रूप में इतिहास का हिस्सा बन गए है।
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कांग्रेस ने जताया विरोध
महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने ट्वीट कर कहा कि नागपुर विश्वविद्यालय आरएसएस और राष्ट्र निर्माण का संदर्भ कहां से मिलेगा। ये सबसे ज्यादा विभाजनकारी ताकत है जिसने ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया, स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया, 52 साल तक तिंरगा नहीं फहराया, इसे अशुभ कहा, ये संविधान की जगह मनुस्मृति चाहता है और नफरत फैलाता है।
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