मोहन भागवत बोले-हिंदू कभी भारत विरोधी नहीं हो सकता
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (rss chief mohan bhagwat) ने 1 जनवरी शुक्रवार को एक किताब के विमोचन के मौके पर कहा कि, महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) शायद "हमारे समय के सबसे बड़े हिंदू देशभक्त थे। उन्होंने कहा कि, अगर कोई हिन्दू है तब वह देशभक्त होगा और यह उसका बुनियादी चरित्र एवं प्रकृति है। उनकी देशभक्ति की उत्पत्ति उनके धर्म से हुई है।
जेके बजाज और एम डी श्रीनिवास लिखित पुस्तक 'मेकिंग आफ ए हिन्दू पैट्रियट : बैकग्राउंड आफ गांधीजी हिन्द स्वराज' का लोकार्पण करते हुए मोहन भागवत ने यह बात कही। भागवत ने कहा कि किताब के नाम और मेरा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है। मोहन भागवत ने में कहा कि, गांधी जी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकली है। तो हिन्दू पेट्रियट यानी हिन्दू है तो देशभक्त होना ही पड़ेगा। वो उसकी प्रकृति में है। 1,000 पन्नों से अधिक की पुस्तक गांधी जी द्वारा 1891 से 1909 के बीच खुद के द्वारा लिखे गए लेखों पर आधारित है।
भागवत ने कहा कि, 'महापुरुषों को कोई अपने हिसाब से परिभाषित नहीं कर सकता।' उन्होंने कहा कि यह किताब व्यापक शोध पर आधारित है और जिनका इससे विभिन्न मत है वह भी शोध कर लिख सकते हैं। संघ प्रमुख ने कहा, 'गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। मैं अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा। गांधीजी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा।'
भागवत ने कहा कि अलग होने का मतलब यह नहीं है कि हम एक समाज, एक धरती के पुत्र बनकर नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि एकता में अनेकता, अनेकता में एकता यही भारत की मूल सोच है। बहरहाल, पुस्तक में लेखक ने लियो टालस्टॉय को लिखी गांधीजी की बात को उद्धृत किया जिसमें उन्होंने भारत के प्रति अपने बढ़ते प्रेम और इससे जुड़ी बातों का जिक्र किया है । बजाज ने कहा कि इस पुस्तक में पोरबंदर से इंग्लैंड और फिर दक्षिण अफ्रीका की गांधीजी की यात्रा एवं जीवन का उल्लेख किया गया है।
यह किताब गांधी जी के 'हिंदू देशभक्त' के तौर पर विकास की कहानी को बताती है। किताब में गांधी के शुरुआती दिनों से अफ्रीका और इंग्लैंड की यात्रा और 1915 में भारत लौटने के दौरान; ईसाई मिशनरियों के लिए उनकी "नापसंदगी"; हिंदू-मुस्लिम एकता को प्राप्त करने में "अत्यधिक कठिनाई"; सत्याग्रह को धर्म के तौर पर मानना जैसे मुद्दों को उठाती है। पुस्तक के अनुसार, महात्मा गांधी को यह विश्वास था कि "कोई भी जो अपने धर्म को नहीं जानता है, उसमें सच्ची देशभक्ति हो ही नहीं सकती है।
पुस्तक के अनुसार, महात्मा गांधी में कम उम्र में ही मिशनरी गतिविधियों के प्रति नापसंदी विकसित हो गई थी। किताब में गांधी जी क्यों ईसाई मिशनरियों को नापसंद करते थे, इसे लेकर कई बातों को लिखा गया है। पुस्तक में कहा गया है कि महात्मा गांधी इस बात से अवगत और चिंतित थे कि अंग्रेज हिंदू और मुसलमानों को एक साथ नहीं आने देंगे, लेकिन उन्होंने एक ऐसा रूख अपनाया कि भारत मुसलमानों या पारसियों या ईसाइयों की मौजूदगी के बावजूद एक राष्ट्र बना रहेगा।
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