मुसलमानों पर बयान के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने LGBTQ पर भी कही बड़ी बात
नई दिल्ली। जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को हटाकर दो वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक यौन संबंधों को इजाजत दी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस फैसले पर तो अपनी सहमति जताई। लेकिन संघ इस तरह के रिश्ते के होने पर अपने उस दृष्टिकोण पर कायम रहा कि समलैंगिक संबंध प्रकृति के अनूरुप नहीं हैं। अब दिल्ली में हुई अपने कार्यक्रम में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि LGBTQ समुदाय समाज का ही हिस्सा है और उन्हें अलग नहीं किया जाना चाहिए। संघ प्रमुख के इस बयान की कई लोग तारीफ कर रहे हैं।
भविष्य का भारत- आरएसएस का दृष्टिकोण कार्यक्रम में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि वक्त बदल रहा और समाज को भी ऐसे मुद्दों पर विचार करना होगा। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि समलैंगिक अधिकार ही एकमात्र मुद्दा नहीं है जिस पर बहस होनी चाहिए अन्य भी कई चीजें हैं।
समलैंगिकता के खिलाफ रहा है संघ
आरएसएस
पारंपरिक
रूप
से
समलैंगिकता
के
खिलाफ
रहा
है,
लेकिन
सर्वोच्च
न्यायालय
के
फैसले
के
साथ
उसकी
सहमति
को
एक
महत्वपूर्ण
बदलाव
के
रूप
में
देखा
जा
रहा
है।
2016
में
एक
कार्यक्रम
में
वरिष्ठ
आरएसएस
नेता
दत्तात्रेय
होसबोले
को
समलैंगिकता
पर
दिए
अपने
बयान
के
बाद
इस
पर
सफाई
देनी
पड़
गई
थी।
होसबोले
ने
कहा
था
कि
सेक्स
का
चुनाव
करना
हर
किसी
का
अपना
पर्सनल
मामला
है
और
ये
अपराध
नहीं
है।
ये
लोगों
का
निजी
मामला
है।
लेकिन
अगले
ही
दिन
दत्तात्रेय
ने
कहा
कि
समलैंगिकों
को
सजा
देने
की
जरूरत
नहीं
है,
लेकिन
ये
मानसिक
विकृति
का
मामला
है।
समलैंगिक
शादियों
को
मान्यता
नहीं
दी
जानी
चाहिए।
इस
पर
रोक
लगानी
चाहिए।
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बदलाव के कई मायने
भविष्य का भारत- आरएसएस का दृष्टिकोण कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई ऐसे बयान दिए जिसके चलते ये कहा जा रहा है कि अब संघ भी वक्त के साथ कुछ बदलाव की तरफ जा रहा है। मोहन भागवत के उस बयान की भी चर्चा है जिसमें उन्होंने भारत में मुसलमानों के बिना हिंदुत्व को अधूरा बताया है। अब समलैंगिकता पर उनके बयान को भी लोग सकारात्मक ले रहे हैं। वहीं लोगों का ये भी कहना है कि संघ के ये बयान सिर्फ चुनाव के मद्देनजर दिए गए हैं और अगर सही मायने में आरएसएस बदलाब चाहता है तो उसे अपने तमाम संगठनों में बदलाव करना होगा जिनके लोग आए दिन भड़काऊ बयान देते रहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा तर्कहीन
समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2013 के फैसले को खारिज करते हुए कहा था कि धारा 377 ब्रिटिश काल का कानून है और इसके तहत समलैंगिक यौन संबंधों पर प्रतिबंध तर्कहीन और मनमाना था। फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा था कि "कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता, हर एक बादल में इंद्रधनुष की तलाश होनी चाहिए। धारा 377 मनमाना कानून है"। फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा था ‘मैं जैसा हूं मुझे वैसे ही स्वीकार करो"।
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