मोहन भागवत बोले- गो-रक्षा में शामिल लोगों को मॉब लिंचिंग से नहीं जोड़ना चाहिए
नई दिल्ली। दिल्ली के विज्ञान भवन में चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सभागार में मौजूद कार्यकर्ताओं के सवालों के जवाब दिए। गोरक्षा और इससे जुड़ी हिंसा पर एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि 'कानून को अपने हाथ में लेना गलत है। इसपर कानून का पालन करते हुए सख्त सजा होनी चाहिए। गौ रक्षा होनी चाहिए लेकिन गौ संवर्धन के माध्यम से होना चाहिए। गौ रक्षा के लिए अनेक लोग हैं जो गायों के सदुपयोग को लेकर जनजागरण का काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को लिंचिंग से नहीं जोड़ना चाहिए।'
हिंदुत्व, Hinduness, Hinduism गलत शब्द हैं
वहीं भागवत ने कहा कि, हिंदुत्व, Hinduness, Hinduism गलत शब्द हैं, ism (इज्म) एक बंद चीज मानी जाती है, यह कोई इस्म नहीं है, एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है, गांधी जी ने कहा है कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिंदुत्व है, एस राधाकृष्णन जी का कथन है कि हिंदुत्व एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। उन्होंने कहा, हिंदू समाज जातियों में नहीं बंटेगा क्योंकि हर हिंदू की आत्मा एकता में ही विश्वास करती है। संघ के स्वयंसेवक भी कभी भेदभाव नहीं करते। भागवत ने कहा कि हम सभी हिंदुओं को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं और हमने यह करके दिखाया भी है। भागवत ने कहा, हम विषमता में विश्वास नहीं करते। हम किसी से उसकी जाति नहीं पूछते।
जनसंख्या और हिंदु-जनसंख्यायिकी के बदलते स्वरूप पर संघ प्रमुख, जनसंख्या के साथ-साथ रोटी, कपड़ा, मकान का मामला है और रोजगार के साथ ही काम करने वाले हाथ बढ़ेंगे ये भी एक पहलू है। जन्म देने वाली माता से लेकर कुपोषण का ध्यान रखना होगा। हमें डेमोग्राफिक का भी ध्यान रखना चाहिए। हमें इसको लेकर आने वाले 50 सालों कर की नीति बनानी चाहिए और इसमें सबको समान रूप से लागू हो यह सुनिश्चित करना चाहिए।
संप्रदाय के आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में नहीं
मोहन भागवत ने सामाजिक आधार पर संविधान में आरक्षण की बात कही गई है। कहा कि, संप्रदाय के आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में नहीं। आज ये जाति आरक्षण मांगती है तो इसके फैसले के लिए भी संविधान में प्रावधान है।आरक्षण समस्या नहीं है, आरक्षण की राजनीति समस्या है। एससी-एसटी एक्ट पर सर्वणों की प्रतिक्रिया पर बोले मोहन भागवत, संघ की इच्छा ये है कि कानून का संगक्षण रहे, कानून का दुरुपयोग न हो और इस समस्या का समाधान समाज आपस में मिलजुल कर हो।
संघ को लेकर मुस्लिम समाज में जो भय है उसे संघ कैसे दूर करेगा, अल्पसंख्यकों पर संघ के क्या विचार हैं के सवाल का जवाब देते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि, अल्पसंख्यक शब्द के संघ नहीं मानता। हम सबको एक मानकर चलते हैं। हम अलग नहीं है दूरी बढ़ी है जिसे दूर करने का प्रयास करना होगा। मुस्लिम समाज को अगर भय है तो कल मैंने बोला आप आईये और देखिए, जहां-जहां संघ की शाखा लगती है वहां अगर आसपास मुस्लिम बस्ती है तो वे सुरक्षित महसूस करते हैं।
धारा 370, 35A पर भागवत ने कही ये बड़ी बात
वहीं धारा 370, 35A और जम्मू कश्मीर की परिस्थिति पर सवालों के जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा, धारा 377 और 35A नहीं रहना चाहिए यह हमारा मत है। राज्य के निर्माण के पीछे देश की अखंडता, एकात्मता सुरक्षा और प्रशासन की सुलभता जैसी चीजों को देखा जाता है। इसको लेकर जब लगेगा कि तीन राज्य होना चाहिए तो यह उस समय का प्रशासन निर्णय लेगा। राज्य में भटके हुए लोगों के लिए संघ के स्वंयसेवकों ने प्रशिक्षम के लिए कार्यशालाएं चलाई हैं। इसको लेकर परिणाम जल्द सामने आएंगे। वहीं धारा 377 के मुद्दे पर बोलते हुए भागवत ने कहा का, समाज स्वस्थ रहे इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिए। समय काफी बदला है और हमें बदलाव को स्वीकारना चाहिए।
50 के दशक में आपको संघ में ब्राह्मण नजर आते थे
जाति व्यवस्था पर संघ क्या सोचता है? घुमंतू जाति के लिए संघ ने क्या किया है? का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि, हम संघ में जाति नहीं पूछते। संघ में यही वातावरण हैं। कोटा सिस्टम करेंगे को जाति का भान रहेगा, सहज प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ेंगे को ऐसा नहीं होगा। 50 के दशक में संघ में आपको ब्राह्मण नजर आते होंगे लेकिन आज सभी वर्ग संघ में हैं। घुमतू जाति के लिए आजादी के बाद संघ ने सबसे पहले काम किया। हमने उनकी कुरितियां दूर की है, शिक्षा का माहौल बनाया। आप जरूर देखें, कार्यकर्ताओं ने काफी कठिनाई के साथ उनके लिए काम किया है।
उन्होंने कहा, बच्चों को उनकी रुचि के मुताबित काम और पढ़ाई करने देना चाहिए। बच्चों को केवल पैसा कमाने के लिए दवाब नहीं डालना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि छात्रों को डिग्री मिल रही है लेकिन रोजगार नहीं मिल रहा। इसलिए शिक्षा व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए। भागवत ने कहा कि हमें अपनी भाषाओं को सम्मान देना चाहिए। किसी भाषा से शत्रुता की जरूरत नहीं है लेकिन अंग्रेजी के हौवे को मन से निकाल देना चाहिए। हर देश अपनी भाषा का सम्मान करता है। फ्रांस, चीन, इजरायल और अमेरिका इसका उदाहरण है।
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