आरएसएस प्रमुख के NOTA पर वोट नहीं देने की अपील के हैं कई मायने
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने वार्षिक विजयदशमी के संबोधन में NOTA दबाने या फिर किसी को भी वोट न देने के मुद्दे पर बात की। वास्तव में आरएसएस प्रमुख द्वारा दिया गया बयान भाजपा के खिलाफ एक बड़े वर्ग की नाराजगी के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है।
मोहन भागवत ने कहा, लोकतांत्रिक राजनीति की विशेषता ये है कि किसी को भी पूरी तरह से सही या गलत नहीं माना जा सकता है। ऐसी स्थिति में, किसी को भी वोट न देना या NOTA का इस्तेमाल, उसके पक्ष में जाएगा जो सबसे कम प्रभावी हैं। इसलिए देशहित में 100 फीसदी वोटिंग जरूरी है। चुनाव आयोग भी सौ फीसदी वोटिंग की अपील करता है। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक हमेशा इस कर्तव्य का पालन करते रहे हैं और इस बार भी वे ऐसा करेंगे।
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कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये अपील उन राज्यों, खासकर मध्य प्रदेश के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं जहां आरएसएस का बेस बहुत मजबूत है और यहां लोगों ने बीजेपी को वोट न देकर NOTA का इस्तेमाल करने की तख्तियां दिखाई हैं। देश में ऐसे कई निर्वाचन क्षेत्र रहे हैं जहां हाल के चुनावों के दौरान जीत के अंतर से अधिक NOTA पर वोट दिए गए। इसलिए दिन प्रति दिन नोटा निर्णायक साबित होता जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि नोटा दबाने की अपील करने वाले सभी लोग आरएसएस से संबंधित हैं बल्कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा से एक बड़ा वर्ग नाराज है, इसलिए सरसंघचालक की अपील का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा जहां एक बड़ा वर्ग मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों को सबक सिखाने की बात कर रहा है।
सूत्रों ने कहा कि मोहन भागवत द्वारा की गई अपील सवर्णों के लिए है जिनका मतदान प्रतिशत कुछ खास अच्छा नहीं है। इसलिए इस अपील का असर पड़ेगा। आरएसएस का एक वर्ग मानता है कि नरेंद्र मोदी के लिए दूसरा कार्यकाल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सरकार द्वारा किए गए कुछ कार्य दूसरे कार्यकाल में दिखाई देने लगेंगे, इसलिए बीजेपी द्वारा किए गए अच्छे कामों का क्रेडिट किसी और को क्यों देना। ऐसे में आरएसएस ने बीजेपी से लोगों के दूरी बनाने के खतरे को भांपते हुए ये अपील की है।