कर्मठ कर्मियों को मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा, कामचोरों की हमेशा मौज
नई दिल्ली। न्यूयॉर्क की सिराक्यूज यूनिवर्सिटी ने हाल ही में एक शोध किया है। शोध में कहा गया है कि एक साल में जो कर्मचारी जितनी अधिक छुट्टी लेता वह उतनी ही मौज में रहता है। शोध के मुखिया प्रोफेसर ब्रायस का कहना है कि साल में जो कर्मचारी जितनी ज्यादा छुट्टी लेते हैं उनको मेटाबॉलिक सिंड्रोम का उतना ही कम खतरा रहता है। दिल से जुड़ी जितनी भी बीमारियां होती हैं उनका कारण मेटाबॉलिक सिंड्रोम ही होता है। अब सवाल उठता है कि क्या भारत में इस शोध के निष्कर्ष सटीक बैठते हैं?
आराम बड़ी चीज है मुँह ढक कर सोइए
किसी शोध के निष्कर्षों का अध्ययन करते समय इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि शोध किन हालात को ध्यान में रख कर किया गया है। जब हम छुट्टी की बात करते हैं तो यहाँ तात्पर्य उन कर्मियों से है जो समय से आते और जाते हैं, ड्यूटी के समय लगन से काम करते हैं, बार-बार चाय पीने, पान खाने या टॉयलेट नहीं जाते पूरे समय सीट पर मौजूद रहते और काम के समय गप नहीं लड़ाते। यह शोध कामचोर कर्मियों पर लागू नहीं होती जिन पर यह कहावत सौ फीसदी सही बैठती है.. आराम बड़ी चीज है मुँह ढक कर सोइए, किस किस को याद कीजिये किस किस को रोइए।
रिसर्च के निष्कर्ष समान परिस्थितियों में लागू होते
ऑफिस का माहौल अच्छा हो, काम मन का हो तो ज्यादा भी करना पड़े तो चलता है, काम लगातार करना पड़े तो भी चलेगा। लेकिन माहौल अगर मन का नहीं है तो काम के बाद ब्रेक लेना जरूरी है भले ही आप कितने भी काबिल और कर्मठ हों। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो चिडचिड़े हो जायेंगे। चिडचिड़ेपन से कई बीमारियां हो जाती हैं। ऐसा ही अमेरिका में हुई रिसर्च में सामने आया है। गुणवत्ता बढाने के लिए रिसर्च जरूरी है लेकिन रिसर्च के निष्कर्ष एक जैसी परिस्थितियों में ही प्रभावशाली होते हैं। जैसे कामचोर कर्मचारियों पर यह फार्मूला लागू नहीं होता। कामचोर बिना छुट्टी लिए ही मौज में रहते हैं और छुट्टा घुमते हैं। वो छोटी छोटी बातों पर छुट्टी लेते हैं। इनके चलते कर्मठ कर्मचारी पर काम का अतिरिक्त बोझ आ जाता है और छुट्टी भी नहीं मिलती। कर्मठ कर्मियों को मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा अधिक रहता है। यानी आप वर्कोहलिक हैं तो आपको दिल की बीमारी, मधुमेह, पाइल्स का खतरा अधिक है। अमेरिकी रिसर्च को अगर भारत में लागू किया गया तो कामचोरों की बल्ले बल्ले हो जाएगी। खासकर सरकारी कार्यालयों के कर्मचारियों में ढेर सारे ऐसे हैं जो काम से ज्यादा छुट्टी के बहाने खीजने में अपनी ऊर्जा ज्यादा लगते हैं।
जो ज्यादा काम करता उसे उतनी ही कम छुट्टी
उत्तर प्रदेश में भी अन्य राज्यों की तरह सरकारी और निजी, छोटे बड़े सभी कार्यालयों में छुट्टी की नियमावली और फॉर्मेट होता है। इसके तहत कर्मचारी छुट्टी ले सकते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि काम करने वाला बन्दा सबसे ज्यादा काम करता और उसको सबसे कम छुट्टी मिलती है। जबकि कामचोर कर्मचारी किसी न किसी बहाने से छुट्टी लेकर मौज में रहता। ये कामचोर छुट्टी न भी लें तो भी इनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं होती, न ही इनको मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा होता। उत्तर प्रदेश में फाइव डे वीक वाले कार्यालयों में भी लोग पांच दिन ठीक से काम नहीं करते फिर दो दिन की छुट्टी मनाते और सोमवार को ऑफिस आने पर कराह उठते। ऐसे लोग मंडे सिंड्रोम से ग्रस्त होते हैं। और अधिक छुट्टी से लाभ की कोई रिसर्च इनपर लागू नहीं होती है।
छुट्टी लेने के एक से एक बहाने
उत्तर
प्रदेश
के
कार्यालयों
में
ऐसे
लोग
लोग
छुट्टी
के
लिए
क्या
क्या
बहाने
बनाते
हैं
उसके
कुछ
उदाहरण
देखिये...
...सोमवार
यानी
हफ्ते
का
पहला
वर्किंग
डे.
बड़े-बड़े
कामचोर
और
आलसी
लोग
मंडे
सिंड्रोम
से
सर्वाधिक
प्रभावित
हैं।
ऑफिस
आने
के
तुरंत
पहले
जो
पांच
सन्देश
आते
हैं
उनमे
से
दो
या
तीन
देर
से
आने
या
छुट्टी
के
लिए
होते
हैं।
किसी
दफ्तर
का
एक
महीने
का
रिकार्ड
चेक
किया
जाये
तो
लूज
मोशन
या
दस्त
और
फीवर
का
बहाना
बना
कर
लोग
सबसे
ज्यादा
छुट्टी
लेते
हैं।
लेट
आने
के
बहानों
में
जाम
और
रास्ते
में
गाड़ी
खराब
हो
जाना
या
पक्ंचर
सबसे
कॉमन
बहाना
है।
सुबह
की
मीटिंग
स्किप
करने
का
सबसे
तगड़ा
बहन
है
लूजमोशंस
जबकि
बन्दा
शाम
को
भला
चंगा
ऑफिस
घर
गया
होता
है
लेकिन
रात
में
कुछ
ऐसा
करता
है
कि
मीटिंग
के
तुरंत
पहले
उसको
दस्त
आने
लगते
हैं।
लेकिन
अगले
दिन
फिर
भले-चंगे
हाजिर
हो
जाते
हैं.
इस
पेचीदगी
को
आजतक
कोई
रिसर्च
नहीं
समझ
सकी।
और
भी
कुछ
फुटकरिया
बहाने
हैं
जो
ऐन
वक्त
पर
याद
आते
जैसे
वाइफ
को
डाक्टर
को
दिखाना
है,
पैरेंट-टीचर
मीटिंग
है,
बिल
ठीक
करवाना
या
जमा
करना
है...
वगैरह
वगैरह।
निसंदेह छुट्टियां स्वास्थ के लिए फायदेमंद होती हैं। वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इंसान अपने काम से छुट्टियां लेता है तो उसको मेटाबॉलिज्म सिंड्रोम का खतरा उतना ही कम रहेगा।
क्या है मेटाबॉलिक सिंड्रोम?
मेटाबॉलिक सिंड्रोम, ऐसी परिस्थितियों को कहते हैं जो उच्च रक्त चाप, कोलेस्ट्रोल, ब्लड शुगर लेवल और दिल से जुड़ी बीमारियों के खतरे को बढ़ाती है। इसकी वजह से हमारे कमर के आस-पास फैट जमा होता है। कई शोधों में यह साबित हो चुका है कि जो लोग सप्ताह में एक दिन पूरी तरह कामकाज से खुद को मुक्त रखते हैं और जीवन का आनंद लेते हैं, उनमें ब्रेन स्ट्रोक व हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है। लेकिन ऐसे लोगों पर कोई शोध सामने नहीं आया है जो सप्ताह भर आराम करने के बाद भी मंडे सिंड्रोम से ग्रस्त होते हैं उनको किस तरह का खतरा होता है।