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रुख्सत हुए करुणानिधि: 13 की उम्र से तमिल जनता के लिए लड़ने वाला थलाइवा अब करेगा आराम

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M Karunanidhi के निधन के बाद उनके बेटे Stalin ने लिखा पिता को Emotional letter | वनइंडिया हिंदी

चेन्नई। जयललिता का निधन और उनके डेढ़ साल बाद उन्हीं के धुर राजनीतिक विरोधी करुणानिधि भी अब तमिलनाडु की जनता को छोड़ कर चल बसे हैं। तमिलनाडु में इन दोनों नेताओं के लिए जो जन सैलाब और प्यार देखने को मिला है, वह हमें दिखाता है कि आधुनिक भारत की राजनीति में देश ने जाना कि जनता का नेता कैसा होता है। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख करुणानिधि का अंतिम संस्कार आज शाम मरीना बीच पर हो गया, वहीं जहां जयलिलता का भी समाधि स्थल भी बनी हुई है। तमिलनाडु की राजनीति में अहम छाप छोड़ने वाले करुणानिधि को आज उनके तमिलनाडु की जनता ने दुनिया से रुख्सत कर दिया है।

13 साल की उम्र में जनआंदोलन का हिस्सा

13 साल की उम्र में जनआंदोलन का हिस्सा

सिर्फ 13 साल की उम्र में करुणानिधि जन आंदोलन का हिस्सा बन गए थे, जब वे 1937 में स्कूलों में अनिवार्य रूप से लागू हुई हिंदी भाषा का विरोध में सड़कों पर उतरे थे। इस आंदोलन के दौरान करुणानिधि ने अपना हाथ काटकर खून से दीवार पर 'तामिझ वाझगा' (तमिल हमेशा जिंदा रहे) लिखा दिया था। एक सामान्य परिवार में पैदा होने वाले करुणानिधि को थलाइवा (ग्रेट लीडर) बनने के लिए बहुत कुछ देखा और अनगिनत कठिनाइयों को सहा। घर के हालात उन्हें 10वीं कक्षा से ज्यादा पढ़ने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन तमिल भाषा को उन्होंने अपने सबसे करीब माना और उसी में अपनी तकदीर लिखने में जुट गए।

डीके से डीएमके तक

डीके से डीएमके तक

तमिलनाडु में जातिवाद के विरोध में आवाज उठाने वाले और दलितों व पिछड़ों के जननायक पेरियार ने उस वक्त डीके (द्रविड़ कझगम) नाम से एक स्टूडेंट विंग खड़ा किया था। उसी दौरान सी अन्नादुराय पेरियार के शिष्य हुआ करते थे, जिन्होंने सबसे पहले इलेक्ट्रॉल पॉलिटिक्स की आवाज उठाई, जो परियार के आइडिया के खिलाफ उठाया गया कदम था। हालांकि, करुणानिधि ने अपने सीनियर अन्नादुराई का समर्थन किया और डीके को डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कझगम) बना दिया। देखते ही देखते तमिलनाडु की राजनीति में कांग्रेस के खिलाफ डीएमके के नाम से एक बड़ा विकल्प खड़ा हो गया। अन्ना की तरह करुणानिधि भी एक जबरदस्त लेखक होने के साथ-साथ अद्भुत वक्ता थे।

तमिल की सिल्वर स्क्रीन पर करुणानिधि का दबदबा

तमिल की सिल्वर स्क्रीन पर करुणानिधि का दबदबा


तमिलनाडु में सबसे पहले ब्राम्हणवाद के खिलाफ आवाज डीएमके से ही उठी थी और उसमें करुणानिधि और एमजी रामाचंद्रन (एमजीआर) से ने बहुत बड़ा रोल प्ले किया था। 1950 के दौर में एमजीआर को रोमांस और एक्शन के लिए एक शानदार अभिनय के रूप में जाना जाता था। उसी दौरान एमजीआर ने डीएमके ज्वॉइन कर दी थी। उस वक्त करुणानिधि अभिनय की रूपरेखा तैयार करते थे, फिर उसी स्क्रिप्ट को एमजीआर अपने अंदाज में पर्दे पर उतारते थे। तमिल की सिल्वर स्क्रीन में इन दोनों का दबदबा था, जो आगे जाकर उनकी पार्टी डीएमके को भी काफी फायदा कर गया।

'शरीर जमीन के लिए और जीवन तमिल के लिए'

'शरीर जमीन के लिए और जीवन तमिल के लिए'

करुणानिधि तमिल से कितना प्यार करते थे, यह उनकी छोटी सी उम्र में ही पता चल गया था। लेकिन, तमिल के लिए मर मिटने वाला पहला विशाल जनआंदोलन करुणानिधि ने जुलाई 1953 में किया था। सरकार ने उस दौरान तिरुचिरापल्ली से करीब 40 किमी दूर कल्लाक्कुड़ी का नाम बदलकर डालमियापूरम रखने का प्रस्ताव रखा, तो डीएमके ने इसका विरोध किया। उस दौरान रेल की पटरियों पर करुणानिधि लेट गए थे और नारा दिया था- 'उडल मन्नूकू, उईर तमिझूकू' (शरीर जमीन के लिए और जीवन तमिल के लिए)। इसी आंदोलन के जरिए करुणानिधि का राजनीतिक जीवन बहुत बड़ा परिवर्तन आया और पूरे तमिलनाडु के लोगों ने करुणानिधि को 'तमिल जननेता' के रूप में देखा।

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English summary
Rest In Peace Karunanidhi: Mass leader will rest forever after giving his entire life to people of Tamilnadu
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