रिसर्च: आवाज, सांस लेने के पैटर्न से भी पकड़ में आ सकता है Covid-19?
नई दिल्ली- कोरोना वायरस के संक्रमितों का जल्द से जल्द पता लगाने के लिए इस समय दुनिया भर में कई तरह के शोध चल रहे हैं। अब वैज्ञानिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उपयोग करके बड़े पैमाने पर और तत्काल कोविड-19 के मरीजों का पता लगाने के लिए कई तरह उपकरण विकसित करने में लगे हैं। इसमें संक्रमितों के खांसने की आवाज, उसके बोलने के तरीके और सांस लेने के दौरान निकलने वाली आवाजों के विश्लेषण से लक्षणों का फौरन पता लगाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। दरअसल,कानूनी कार्यों में इस्तेमाल के लिए दुनिया भर में इस तरह की कुछ तकनीकों का इस्तेमाल होता भी रहा है, लेकिन अब वैज्ञानिक उसके जरिए कोरोना मरीजों का पता लगाना चाहते हैं।
आवाज और सांस के पैटर्स से पता चलेगा कोरोना ?
कोरोना वायरस के संक्रमण का जल्द से जल्द पता लगाने के लिए अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं। शोधकर्ता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए ऐसे उपकरण विकसित करने में जुट गए हैं, जो किसी व्यक्ति के खांसने की आवाज, सांस लेने के पैटर्न या उसके बोलने मात्र से ही यह पता लगा सकता है कि वह कोविड-19 से संक्रमित है या नहीं। फिलहाल रिसर्च करने वाले संक्रमित लोगों की आवाजों का डेटा जुटा रहे हैं और उसके स्वस्थ्य व्यक्तियों के सैंपल से तुलनात्मक अध्यन के लिए मशीन विकसित करने में लगे हैं। अमेरिकी कार्नेगी मेलोन यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अपने कोविड वॉयस डिटेक्टर टूल के बारे में बताया कि 'हमारी आवाज की ध्वनि (किसी भी भाषा में) और जब हमारा रेसपिरेटरी सिस्टम प्रभावित होता है तब जो हम सांस लेते हैं या खांसते हैं तो वह बदल जाता है। यह बदलाव मोटा, साफ सुनाई देने वाला अंतर से लेकर बहुत कम अंतर तक हो सकता है- जिसे हम माइक्रो सिग्नेचर्स कहते हैं , जो प्रशिक्षित नहीं होते हैं उन्हें यह सुनाई नहीं देता, लेकिन ऐसा होता है।'
डॉक्टरों से मिली जानकारी के मुताबिक शोध
इस तरह के प्रयोग और जगहों पर भी चल रहे हैं। इस तरह के उपकरणों में एक कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल होता है, जिसे पीट्सबर्ग स्थित यूनिवर्सिटी के एलटीआई स्कूल ऑफ कंप्यूटर साइंस ने पेटेंट कर रखा है। कानून का पालन करने वाली एजेंसियां वॉयस प्रोफाइलिंग के लिए इसे उपयोग में लाती रही हैं। कैब्रिंज यूनिवर्सिटी में भी एक ऐसी ही कवायद शुरू हो चुकी है। कोविड-19 साउंड ऐप, जो कि क्रोम और फायरफॉक्स प्लगइन में अभी उपलब्ध है, वह भी इसका बड़ा स्वरूप तैयार कर रहा है, ताकि बड़े पैमाने पर डेटा जुटाया जा सके। कैंब्रिज के एक प्रोफेसर सिसिलिया मैसकोलो के मुताबिक, 'डॉक्टरों से जो बात हुई है, उसके अनुसार वायरस से पीड़ित मरीजों में एक सामान्य चीज नोटिस की गई है, जिस तरह से वह बोलने के दौरान सांस लेते हैं या सूखी खांसी के दौरान या उनके सांस लेने के पैटर्न के अंतराल के आधार पर.....अंतर महसूस किया जा सकता है...' उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर सांस लेने की आवाज का डेटाबेस बहुत ही कम है, इसलिए इसका जल्द पता लगाने के लिए अभी और बेहतर डेटा जुटाने हैं। हमें ज्यादा से ज्यादा लोगों के सैंपल चाहिए। अगर हमें कोरोना वायरस के ज्यादा पॉजिटिव केस का पता नहीं भी चलता है तो हम कुछ और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी तो जुटा ही सकते हैं।
भारत में भी हो रहा है रिसर्च
इस तरह की एक पहल भारत में भी शुरू कर दी गई है। मुंबई स्थित वाधवानी इंस्टीट्यूट फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इस पर काम कर रहा है। वाधवानी कफ अगेंस्ट कोविड मोबाइल ऐप लोगों से अपने खांसने की आवाज और अगर कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए हैं तो उसके नतीजे की तस्वीर भेजने को कह रहा है। इसकी लॉन्चिंग 7 अप्रैल को हुई है। इस संस्थान ने एक बयान में इस सैंपल कनेक्शन का अपना लक्ष्य ये बताया है, 'खांसने की आवाजों को जुटाना और उसके विश्लेषण की कोशिश करना और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए कोविड-19 के लक्षणों का जल्द पता लगाना।'
कई और तरह की तकनीकों का भी हो रहा है इस्तेमाल
तकनीक से जुड़ी दुनिया भर की कंपनियां और एजेंसियां इस समय कोविड-19 के संक्रमितों की तादाद का सही पता लगाने के लिए तरह-तरह के प्रयोगों में लगी हुई हैं। सॉफ्टवेयर क्षेत्र की अगुवा एप्पल और गूगल भी मोबाइल फोन आधारित कॉन्टैक्ट के टूल पर काम कर रही हैं। वहीं भारत सरकार का आरोग्य सेतु ऐप दुनिया भर में धमाका मचा रहा है। इसी कड़ी में कुछ कंपनियां इंटरनेट ऑफ थिंग्स से उपकरण विकसित करने में लगी हैं, जैसे कि स्मार्ट थर्मामीटर। मिशिगन यूनिवर्सिट के एक वैज्ञानिक ने बताया कि किंसा नाम की एक कंपनी ने बुखार के दौरान शरीर के तापमान से जुड़ा एक टूल विकसित किया है, जो बड़े पैमाने पर वायरस के प्रकोप का पता लगाने में मददगार साबित हो सकता है।
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