Sheila Dikshit: कांग्रेस ने ही नहीं बल्कि गांधी परिवार ने खोया है अपना खास दोस्त, तस्वीरें गवाह हैं
नई दिल्ली। गांधी परिवार के बेहद करीब और कांग्रेस ही नहीं बल्कि देश के बड़े नेताओं में शुमार शीला दीक्षित अब हमारे बीच में नहीं हैं, शनिवार को दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में दोपहर 3:55 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली, शीला दीक्षित का यूं अचानक चले जाना कांग्रेस के लिए किसी कुठाराघात से कम नहीं है, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही पार्टी के लिए ये एक अपूर्णननीय क्षति है जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता है, शीला दीक्षित के निधन के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया है।
गांधी परिवार के बेहद करीब थीं शीला दीक्षित
शीला दीक्षित को गांधी परिवार के बेहद करीब कहा जाता था, शीला ने पार्टी के संकट और गांधी परिवार पर आई हर मुसीबत में इस परिवार का साथ दिया था इसलिए गांधी परिवार के लिए शीला दीक्षित केवल एक नेता नहीं बल्कि सुख-दुख की साथी थीं और इसी वजह से राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए वो मां तु्ल्य ही थीं, शीला दीक्षित का यूं जाना ना केवल कांग्रेस के लिए बल्कि सोनिया-राहुल और प्रियंका गांधी के लिए बहुत बड़ा धक्का है, कांग्रेसी शीला दीक्षित को संकट मोचक कहा करते थे।
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राहुल-प्रियंका के लिए मां तुल्य थीं शीला दीक्षित
15 सालों तक लगातार दिल्ली की सत्ता पर बतौर मुख्यमंत्री राज करने वाली 81 वर्षीय शीला दीक्षित इन दिनों दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान संभाल रही थीं। गांधी परिवार के बेहद नजदीक कही जाने वाली शीला दीक्षित कांग्रेस की ही नहीं बल्कि सियासत का वो अहम चेहरा है, जिन्होंने हमेशा अपनी बातों और कामों से लोगों को हैरान किया है, अस्सी साल का आंकड़ा पार करने वाली शीला दीक्षित ने अपने काम और चुस्ती-फुर्ती से यह साबित कर दिया था कि उम्र तो सिर्फ एक नंबर है और इच्छा शक्ति प्रबल हो तो आप हमेशा फिट रह सकते हैं।
मुश्किल घड़ी में दिया था गांधी परिवार का साथ
राजनीति में आने से पहले वे कई संगठनों से जुड़ी रही हैं और उन्होंने कामकाजी महिलाओं के लिए दिल्ली में दो हॉस्टल भी बनवाए। 1984 से 89 तक वे कन्नौज (उप्र) से सांसद रहीं। इस दौरान वे लोकसभा की समितियों में रहने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत की प्रतिनिधि भी रहीं, इसके बाद में वो केन्द्रीय मंत्री भी बनीं, उनका दिल्ली शहर की महापौर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर काफी शानदार रहा है , दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए शीला दीक्षित ने वर्ष 1998 में कांग्रेस को दिल्ली में बड़ी जीत दिलवाई थी। शीला वर्ष 1998 से 2013 तक तीन कार्यकाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुकी हैं, दिल्ली में मेट्रो और फ्लाईओवर को लंबा जाल उन्हीं के कार्यकाल की देन माना जाता हैं।
अंतिम सांस तक पार्टी के लिए किया काम
हालांकि सीएम के रूप में दिल्ली के विकास का श्रेय मिलने के साथ-साथ शीला दीक्षित और उनकी सरकार भ्रष्ट्राचार के गंभीर आरोपों के घेरे में भी रही है , उन पर जेसिका लाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी मनु शर्मा को पैरोल पर रिहा करने को लेकर भी आरोप लगे थे। कामनवेल्थ गेम घोटाला और टैंकर स्कैम में उनका नाम आया जिसके बाद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और साल 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस और शीला दीक्षित को सत्ता से बेदखल कर दिया, हालांकि हार के बाद शीला दीक्षित को कांग्रेस हाईकमान ने केरल के राजभवन भेज दिया था लेकिन 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शीला दीक्षित ने 5 महीने बाद ही राज्यपाल का पद त्याग दिया और दिल्ली आ गईं और एक बार फिर से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान वयोवृद्द शीला दीक्षित के हाथ में दी गई, हालांकि इस बार उनका तजुर्बा मोदी की आंधी में पार्टी के काम नहीं आया लेकिन उन्होंने अंतिम सांस तक पार्टी के लिए काम करके पार्टी के प्रति अपने कर्तव्य को भरपूर रूप से चुकाया है और इसके लिए कांग्रेस पार्टी हमेशा उनके प्रति कृतज्ञ रहेगी।
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