उमर खालिद को रिहा करें, मीरा नायर-अरुंधति रॉय-रोमिला थापर समेत 208 हस्तियों ने उठाई आवाज
नई दिल्ली- 200 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विद्वानों, शिक्षाविदों और कलाकारों ने गुरुवार को जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद के समर्थन में बयान जारी किया है। उमर खालिद अभी दिल्ली दंगों के आरोपों में गिरफ्तार है। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों का कहना है कि इस केस में जांच के नाम पर दिल्ली पुलिस खालिद को 'पहले से सोच-समझकर टारगेट कर रही है' और अनलॉफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट के तहत उसे गलत तरीके से फंसाया है। सिर्फ खालिद ही नहीं, दिल्ली पुलिस ने जितने भी साजिशकर्ताओं को पकड़ा है, इन विद्वाओं का आरोप है कि उनमें से ज्यादातर को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि वे मुस्लिम हैं।
208 जानी-मानी हस्तियां चाहती हैं रिहा हो उमर खालिद
उमर खालिद की रिहाई को लेकर जारी बयान पर हस्ताक्षर करने वालों ने सरकार से कहा है कि 'हम भारत सरकार से उमर खालिद और उन सभी को रिहा करने की मांग करते हैं जिन्हें सीएए-एनआरसी का विरोध करने के कारण गलत और अनुचित तरीके से फंसाया गया है।' इसमें यह भी कहा गया है कि, 'यह सुनिश्चित किया जाए कि दिल्ली पुलिस संविधान के अनुरूप ली गई शपथ का पालन करते हुए दिल्ली दंगों की निष्पक्ष जांच करे।' इस बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 208 लोगों में भाषाविद् नोआम चोम्स्की, फिल्म निर्माता मीरा नायर और आनंद पटवर्धन, अदाकारा रत्ना पाठक शाह, लेखक अमिताव घोष, सलमान रश्दी, अरुंधति रॉय,रामचंद्र गुहा और राजमोहन गांधी, इतिहासकार रोमिला थापर और इरफान हबीब और ऐक्टिविस्ट मेधा पाटकर और अरुणा रॉय शामिल हैं।
'हम उमर खालिद के साथ खड़े हैं'
इन लोगों ने कहा है कि 'हम फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के मामले में मनगढ़ंत आरोपों में गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ता उमर खालिद के साथ खड़े हैं। उस पर देशद्रोह, हत्या की साजिश और भारत के सख्त आतंकवाद-विरोधी कानून, यूएपीए की धाराएं लगाई गई हैं।' इसमें मोदी सरकार की ओर इशारा करते हुए ये भी आरोप लगाया गया है कि 'पिछले कुछ साल से असंतोष जाहिर करने वालों को अपराधी ठहराने की प्रक्रिया चल रही है और यह कोविड-19 महामारी के वक्त भी जारी है। झूठे आरोपों में बेरोक-टोक राजनीतिक गिरफ्तारियों से ट्रायल शुरू होने तक बेकसूरों को सजा दी जा रही है।'
मीडिया के एक वर्ग पर भी निकाली भड़ास
इन लोगों ने सीएए-विरोधी प्रदर्शनों को 'आजाद भारत का सबसे शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलन' करार दिया है, जो उनके मुताबिक 'महात्मा गांधी के विचारों से चलाया गया और डॉक्टर अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की मर्यादा' के मुताबिक था। इनके मुताबिक दिल्ली दंगों के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार उमर खालिद इस आंदोलन की 'सच्ची और ताकतवर युवा आवाज' बन गए थे। इनका यह भी दावा है कि उमर ने हमेशा 'गरीबों की बात' उठाई और सिर्फ 'शांति की बात' कही। इन लोगों ने भारतीय मीडिया के एक वर्ग पर भी सवाल खड़े किए हैं, जिसके मुताबिक, 'उसे (उमर खालिद) भारतीय मीडिया के समझौता कर चुके एक वर्ग के द्वारा जिहादी और नफरत के चेहरे के तौर पर पेश किया गया है, सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि वह सरकारी नीतियों के खिलाफ दृढ़ता से बोलता है जो उसे अन्यायपूर्ण लगता है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि वह मुस्लिम है।'
'मुसलमान होने की वजह से टारगेट'
सिर्फ खालिद ही नहीं दिल्ली दंगों की साजिश के आरोपों में यूएपीए के तहत गिरफ्तार पिंजरा तोड़ ऐक्टिविस्ट देवांगना कलिता और नताशा नरवाल का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इससे आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश की गई है। दंगों के इन गंभीर आरोपियों को बयान पर हस्ताक्षर करने वालों ने भारत के 'बेहतरीन और ओजस्वी युवाओं' के तौर पर पेश किया है। बयान में कहा गया है कि 'इस समय आतंकी कानून के तहत जिन 21 लोगों को झूठा आरोपी बनाया गया है उनमें 19 मुसलमान हैं। अगर हम उनकी पहचान को उनका अपराध बनने देंगे तो विश्व समुदाय के समक्ष धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रों के सामने भारत को शर्मसार होना पड़ेगा। ये लोग आतंकवादी नहीं हैं और दिल्ली पुलिस दिल्ली दंगों की जो जांच कर रही है, वह जांच नहीं है। यह पहले से सोच-समझकर टारगेट करना है। ' इसमें यह भी कहा गया कि ' भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने 'गद्दारों को गोली मारो' कहा था, लेकिन उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं हुआ।' 'कपिल मिश्रा के खिलाफ जांच नहीं होना और भी हैरान करने वाला है, जो कि डीसीपी के पास खड़े होकर कह रहे थे कि अगर प्रदर्शनकारियों को नहीं हटाया गया तो 'मामले को अपने हाथों में लेना पड़ेगा।' आरोप है कि इसी की वजह से हिंसा भड़की। लेकिन, युवा प्रदर्शनकारियों को जेल में डाला जा रहा है।'
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