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Auto Industry: तो इसलिए मंदी की शिकार हो रही हैं ऑटो और टेक्सटाइल इंडस्ट्री

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बंगलुरू। भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। इसकी मपाई ऑटो इंडस्ट्री और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में आ रही गिरावट से की जा रही है, लेकिन मोर्गन स्टेनले कंपनी में मुख्य वैश्विक रणनीतिकार रुचिर शर्मा की मानें तो इसकी शुरूआत वर्ष 2015 में हो गई थी जब देश की 500 शीर्ष कंपनियों की बिक्री में हुई शून्य फ़ीसदी नकारात्मक वृद्धि देखी गई। इसके चलते ही आज देश की ऑटो और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में संकट के बादल छा गए हैं और कंपनियां में कार्यरत कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर खतरा आ पहुंचा है।

Auto Industry

दरअसल, लोगों की आय वृद्धि दर में आई कमी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, क्योंकि लोगों की आय वृद्धि दर में उत्तरोतर हुई कमी आने के चलते उन सेक्टर से जुड़े इंडस्ट्री को अधिक नुकसान पहुंचा है, जो सीधे तौर पर उपभोक्ता की उपभोग, निवेश और बचत शक्ति से जुड़े हुए हैं। मसलन, ऑटो इंडस्ट्री, जो लग्जरी प्रोडक्ट बनाती है और ऐसे प्रोडक्ट की खरीदारी कंज्यूमर तभी करता है जब उसके पास आय के स्रोत सुदृढ़ हों।

ऑटो सेक्टर में बिक्री दर कम होने का सीधा कनेक्शन लोगों की आय से जुड़ा हुआ और आय में लगातार हुई कमी के चलते लोगों के उपभोग, निवेश और बचत बाधित हुई है, जिससे कंपनियों की बिक्री घट गईं है और कंपनियों को प्रोडक्शन बंद करना पड़ रहा है। क्योंकि मांग घटने से पहले तैयार प्रोडक्ट शो रुम में सड़ रही हैं तो कंपनी और प्रोडक्शन का जोखिम क्यों लेगी। यही कारण हैं कि कंपनिया कास्ट कटौती के नाम पर कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं।

Ruchir Sharma

रुचिर शर्मा के मुताबिक शीर्ष कंपनियों की बिक्री में नकारात्मक वृद्धि के चलते वर्ष 2016 से भारतीय का निर्यात काफ़ी पर नकारात्मक प्रभाव देखा जा रहा है, जो कि शून्य से पांच फ़ीसदी तक सिमट कर रह गई है। यानी शून्य से पांच फ़ीसदी निर्यात के दम पर 8 फीसदी आर्थिक विकास दर की उम्मीद बेमानी है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी अश्वमभावी हो चली है। क्योंकि जब भारत की आर्थिक विकास दर 8 फ़ीसदी की रफ़्तार से बढ़ रही थी तब वार्षिक निर्यात 20 फ़ीसदी से ज़्यादा की दर से बढ़ रहा था।

उल्लेखनीय है वर्ष 2015 के दौरान वैश्विक कारोबार में शून्य प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी और अर्थ विशेषज्ञ का मानना है कि शून्य फीसदी बढ़ोत्तरी अमूमन मंदी के समय ही होती है। अर्थ विश्लेषकों की मानें तो अर्थव्यवस्था में मंदी अमूमन हर आठवें साल आती है और इसी तर्क के आधार पर मंदी का आना ही है, क्योंकि 8 वर्ष पहले भी वैश्विक मंदी से भारत ही नहीं, दुनिया भी जूझ चुकी है।

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन मौजूदा दौर की धीमी अर्थव्यवस्था चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार को ऊर्जा एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तत्काल सुलझाने और निजी निवेश प्रोत्साहित करने के लिए नये कदम उठाने चाहिए।

Raghuram Rajan

वर्ष 2013-16 के बीच गवर्नर रहे राजन ने संभावित मंदी से बचने के लिए भारत में जीडीपी की गणना के तरीके पर नये सिरे से गौर करने का भी सुझाव दिया है। इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम के शोध निबंध का हवाला दिया जिसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ा चढ़ाकर आंका गया है।

गौरतलब है वर्ष 2016-17 में भारत की जीडीपी विकास दर 8.2% थी, जो वर्ष 2018-19 में 5.8% पर पहुंच गई है। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की रिसर्च के मुताबिक आशंका है कि वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में यह और नीचे गिरकर 5.6% पर पहुंच सकती है। विकास की रीढ़ कहे जाने वाले निजी उपभोग का भारतीय जीडीपी में करीब 60 फीसदी योदान है, लेकिन इसमें दर्ज हो रही गिरावट चिंता का विषय है।

वर्ष 2018-19 की दूसरी तिमाही से इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई है, जो उत्तरोत्तर अर्थव्यवस्था को और नीचे ही ले जा रही है। चूंकि निम्न और मध्यम आय वाली कामकाजी आबादी के लिए उपभोग का खर्च सीधे आय से जुड़ा हुआ है और यह भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा है। इसलिए जरूरी है कि उपभोग की मांग को बढ़ाने के लिए लोगों की आय में सुधार किया जाए वरना जीडीपी की हालत धीरे-धीरे बद से बदतर होती चली जाएगी, क्योंकि जीडीपी विकास दर पूर्णतयाः आय में वृद्धि, बचत और निवेश से भी जुड़ी है।

PM MOdi

उल्लेखनीय है चीन की तरह भारत में पर्याप्त नौकरियां मुहैया कराने और न्यूनतम मजदूरी तय करने की बहस को अमलीजामा पहनाने की कोशिश हुई, जिससे बढ़ी उच्च स्तर की आय ने चीन में लोगों को बचत करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया था। आर्थिक सर्वे कहता कि वर्ष 2015-16 में कुल बचत, जीडीपी का 31.1% थी जो 2017-18 में गिरकर 30.5% हो गई। इसमें पूरी तरह से घरेलू क्षेत्र की बचत का योगदान होता है, जो 2011-12 में जीडीपी का 23.6% थी और 2017-18 में घटकर जीडीपी का 17.2% हो गई। बचत में इसी गिरावट के चलते निवेश दर भी नीचे चली गई है।

एक अध्ययन के मुताबिक शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में कुछ साल पहले तक आय डबल डिजिट्स में बढ़ रही थी, लेकिन 2010-11 में शहरी आय में वृद्धि 20.5% तक पहुंच गई थी, लेकिन यह 2018-19 में गिरकर सिंगल डिजिट पर आ गई है। इसी तरह ग्रामीण आय में वृद्धि 2013-14 में 27.7% थी, यह पिछले तीन वर्षों में गिरकर 5% से नीचे आ गई है। यह बताता है कि उच्च विकास का यह चरण अस्थिर था। अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि आय में ​इसी गिरावट के चलते निजी उपभोग और घरेलू बचत में भी गिरावट आई है, जिससे लोगों की क्रय शक्ति में कमी आई है और विभिन्न सेक्टर में बिक्री दर में कमी आई है।

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English summary
Indian economy facing hurdle due recession in various sector which is directory connected with the consumers income source,
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