Lok Sabha Elections 2019: बेगूसराय में गिरिराज के डर की ये है असल वजह
पटना। इस लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में सबसे 'हॉट' सीट फिलवक्त कोई है तो वह बेगूसराय है. इसकी वजह भी साफ है. यह सीट वर्तमान लोक सभा चुनाव में, एक तरफ भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह जो अपने विवादित बोल के लिए चर्चित रहते हैं तो दूसरी तरफ अपने शानदार तर्क से जवाब रखने वाले और जे एन यू प्रकरण से पूरे देश में प्रसिद्ध हुए युवा कॉमरेड नेता कन्हैया कुमार से सम्बद्ध है. जहाँ गिरिराज सिंह की पहली प्राथमिकता उनके पहले की सीट नवादा थी, वहीं कन्हैया कुमार शुरू से अंत तक सवर्ण बहुल बेगूसराय सीट से ही अपनी उम्मीदवारी चाहते थे और वो पार्टी की तरफ से उन्हें मिली भी। वैसे कन्हैया कुमार को उम्मीद थी कि महागठबंधन से उनकी राह निकल आएगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
बिहार में महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद ने अपनी उम्मीदवारी बेगूसराय में देने के संकेत दिए हैं। और यह उम्मीदवारी संभवतः तनवीर हसन की होगी जिन्होंने पिछले आम चुनाव के मोदी लहर में भी बेगूसराय के कद्दावर भाजपा नेता स्वर्गीय भोला सिंह को कड़ी टक्कर दी थी। ज्बेगूसराय स्वर्गीय भोला सिंह का गृह क्षेत्र था। और काफी हद तक इन्हें पार्टी से इतर वोट मिलता था। इन्होंने अमूमन हर पार्टी के चिह्न पर अपनी सीट कायम रखी. स्वर्गीय भोला सिंह का पार्टी से इतर क्षेत्र में अपना सोशल इंजीनियरिंग भी कमाल का था।
अब नए घटनाक्रम में यह खबर आ रही है की गिरिराज सिंह अब इस सीट से चुनाव में उतरना नहीं चाह रहे हैं। उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से इस सम्बन्ध में मुलाकात करनी चाही है। हालाँकि 2014 के आम चुनाव में गिरिराज सिंह अपने लिए सवर्ण बहुल बेगुसराय की सीट ही चाहते थे. सवाल है कि आखिर इस लोकसभा चुनाव में ऐसा क्या हुआ जो गिरिराज सिंह इस सीट से अब लड़ना नही चाहते हैं। बेगुसराय की भाजपा इकाई यहाँ लोकल उम्मीदवार चाहती थी.
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कांग्रेस
से
हारने
के
बावजूद
भी
इन
राज्यों
में
कम
नहीं
हुई
पीएम
मोदी
की
लोकप्रियता
शहर
से
गांव
तक
बकायदा
यह
चर्चा
सरे-आम
थी
और
वहां
के
भाजपा
विधान
पार्षद
रजनीश
कुमार
के
समर्थन
में
बैनर
तक
लगे
थे.
अब
राष्ट्रीय
नेतृत्व
के
आगे
सब
भले
एक
सुर
में
सुर
मिलाएं
लेकिन
भितरघात
की
आशंका
से
इनकार
नहीं
किया
जा
सकता।
गिरिराज
सिंह
बेगुसराय
के
लिए
नए
और
आयातित
उम्मीदवार
हैं,
और
इसका
इल्म
उन्हें
है.
दूसरी
तरफ
कन्हैया
कुमार
का
गृह
जिला
बेगुसराय
है
और
वे
पिछले
डेढ़
साल
से
इस
क्षेत्र
में
सक्रिय
हैं.
पिछले चुनाव में वोट विभाजन देखा जाय तो भाजपा के उम्मीदवार भोला सिंह को करीब 4.28 लाख वोट मिले थे जबकि सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1.92 लाख वोट ही मिले थे. अमूमन सीपीआई को पिछले एक दशक से इतने ही वोट मिल रहे हैं. इन्हें कोर वोट कह सकते हैं जोकि अधिकांशतः सवर्ण वोट ही है. अबकी युवा कन्हैया कुमार के आने से ये उम्मीद की जा सकती है की सवर्ण और कुछ युवा वोट बटेंगें जो कन्हैया की तरफ आएगा.
गिरिराज सिंह इस बात को समझ रहे हैं. कन्हैया का सवर्ण युवा नेता एवं लोकल होना और फिर महागठबंधन के तहत तनवीर हसन की उम्मीदवारी, एक तो करेला दूजा नीम सा है. पिछले चुनाव में राजद के तनवीर हसन 3.70 लाख वोट पाए थे. जिसमे मुस्लिम (13.71%) यादव और अन्य कुछ छोटी जातियों के छिटपुट वोट जुड़े हुए थे. अबकी महागठबंधन में उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के साथ से कुर्मी, मुसहर और मल्लाह वोट राजद को मिलने की प्रबल संभावना है.
इन नेताओं की पकड़ अपनी जाति में अच्छी खासी है. वोट बिखराव के माहौल में इन जातियों की वोट संख्या निर्णायक है. गिरिराज सिंह को असली चुनौती राजद के इस बार के सोशल इंजीनियरिंग से है. लेकिन कन्हैया कुमार की उपस्थिति मात्र भाजपा को बेगुसराय में बैकफुट पर कर दे रही है इस बात को गिरिराज सिंह समझ रहे हैं.
हालाँकि बेगूसराय सीट आज़ादी के बाद से लगातार ब्राह्मणों एवं भूमिहारों के क़ब्ज़े में ही रही है.वामपंथी हों या दक्षिणपंथी, भूमिहार ब्राह्मण जीतते रहे हैं. पहली बार इस जातिवादी क़िले को 1999 में लालू यादव ने तोड़ा था, वहाँ ओबीसी का कैंडिडेट जीत गया था फिर एक चुनाव बाद वहाँ नीतीश कुमार के मुसलमान कैंडिडेट जीत गए थे. लालू यादव फिर से नए समीकरण के साथ इस सीट को साधने की जुगत में हैं और उनकी दावेदारी उनके नए समीकरण के साथ सबसे मजबूत बनती भी है.
गिरिराज सिंह किसी भी कीमत पर हार कर अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पीछे धकेलना नहीं चाहेंगे. इसलिए वे फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं और बेगूसराय की सीट पर अपनी उम्मीदवारी को लेकर अब तक किंकर्तव्यविमूढ़ हैं. अंत तक कोशिश में हैं कि नवादा सीट फिर से उन्हें मिल जाए.