VIDEO: उत्तराखंड के चमोली में खिले दुर्लभ ब्रह्म कमल के फूल, जानिए इन फूलों की खासियत
नई दिल्ली। देश के पहाड़ी इलाकों में सर्दी ने दस्तक दे दी है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ इलाकों में पिछले दिनों बर्फबारी देखने को मिली है। उत्तराखंड के चमोली जिले में बर्फबारी के साथ ब्रह्मकमल भी खिलना शुरू हो गए हैं। उच्च हिमालय क्षेत्रों में 15 सितंबर तक खिलने वाला ब्रह्मकमल इस बार अक्तूबर में भी अपनी खुशबू बिखेर रहा है। जमीन पर खिलने वाले इस फूल की धार्मिक और औषधीय विशेषता है।
कोरोना महामारी ब्रह्मकमल के लिए बनी जीवनदान
कोरोना महामारी के दौर में घी विनायक, नंदीकुंड पांडवसेरा में लोगों की आवाजाही ना होने के कारण हजारों की संख्या में ब्रह्मकमल खिले हैं। ट्रेकिंग पर गए पर्यटक ब्रह्मकमल को परिपक्व होने से पहले ही तोड़ देते थे, जिससे उसका बीज नहीं फैल पाता था। इस बार फूल पूरी तरह से पक चुके हैं, और इसका बीज गिरने पर अगले वर्ष ब्रह्मकमल की पैदावार बढ़ने की उम्मीद है। तीर्थयात्रीयों के अधिक दोहन के चलते यह लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।
4 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर खिलता है ब्रह्म कमल
ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा है। अल्सर और कैंसर रोग के उपचार में इसकी जड़ों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग होने से यह औषधीय पौधा होने के साथ ही विशेष धार्मिक महत्व भी रखता है। शिव पूजन के साथ ही सामान्य कमल की तरह यह पानी में नहीं उगता, बल्कि जमीन पर 4 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर खिलता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, ब्रह्म कमल को इसका नाम ब्रह्मदेव के नाम पर मिला है।
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इन रोगों में काम आता है ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल फूल अगस्त के महीने में खिलता है। सितम्बर, अक्टूबर में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5 या 6 महीने का होता है। ब्रह्मकमल माँ नंदा का प्रिय पुष्प हैं, इसलिए इसे नंदा अष्टमी में तोड़ा जाता है। ब्रह्मकमल साल में एक बार खिलता है जोकि सिर्फ रात के समय खिलता है। जले-कटे में, सर्दी-जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में इसका उपयोग किया जाता है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है।