ई रणवीर कपूर काहे जप रहे हैं बिहार के नाम का माला?
नई दिल्ली। पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर और शशि कपूर का बिहार से बहुत गहरा संबंध है। साहित्य रचनाओं में इस रिश्ते का विस्तार से जिक्र है लेकिन युवा पीढ़ी को इस सत्य से परिचित कराया है डैशिंग हीरो रणवीर कपूर ने। बनारस में फिल्म ब्रह्मास्त्र की शूटिंग के दौरान रणवीर कपूर ने बताया कि कैसे उनके परदादा पृथ्वीराज कपूर बिहार में महान साहित्यकार जानकी वल्ल्भ शास्त्री के घर पर करीब तीन महीने तक रुके थे। रणवीर कपूर ने बताया कि मेरे पिता ऋषि कपूर अक्सर परदादा जी और दादा जी के बिहार से जुड़े किस्से बताते हैं। आज के दौर में ये जान कर बहुत अच्छा लगता है कि मेरे परिवार की जड़ें बिहार तक फैली हुई हैं।
पृथ्वीराज कपूर की जानकी वल्ल्भ शास्त्री से दोस्ती
पृथ्वीराज कपूर को भारतीय सिनेमा का पितामह कहा जाता है। वे रंगमंच के लिए भी समर्पित थे। अच्छे नाटकों की खोज में उनकी कई साहित्यकारों से दोस्ती हुई। इसी क्रम में वे बिहार के जानकी वल्ल्भ शास्त्री और रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्पर्क में आये। जानकी वल्ल्भ शास्त्री ने एक गीत लिखा था- किसने बांसुरी बजायी। ये गीत इतना मशहूर हुआ था कि पृथ्वीराज कपूर उनसे मिलने मुजफ्फरपुर पहुंच गये। फिर दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी। जानकी वल्ल्भ शास्त्री मुजफ्फरपुर के रामदयालु सिंह कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर थे। वे संस्कृत के भी प्रकांड विद्वान थे। शास्त्री जी ने महाकवि निराला के नाम पर अपने घर का नाम निराला निकेतन रखा था। जब पृथ्वीराज कपूर की जानकी वल्ल्भ शास्त्री से दोस्ती हुई तो वे अक्सर जानकी वल्ल्भ शास्त्री के घर आते और नाटकों के प्लॉट पर चर्चा करते। शास्त्री जी को पृथ्वीराज कपूर के इतना लगाव हो गया कि उन्होंने अपने घर के एक कमरे का नाम ही पृथ्वीराज कक्ष रख दिया था। पृथ्वीराज कपूर जब भी मुम्बई से मुजफ्फरपुर आते तो इसी कमरे में रुकते थे। पृथ्वीराज कपूर ने भी मुम्बई के अपने बंगले में एक जानकी कुटिर बनायी थी जिसमें जानकी वल्ल्भ शास्त्री रुकते थे।
जब शास्त्री जी ने संवारी शशि कपूर की किस्मत
जानकी वल्ल्भ शास्त्री संस्कृत के ज्ञाता होने की वजह से ज्योतिष की भी अच्छी जानकारी रखते थे। पृथ्वीराज कपूर अपने छोटे बेटे शशि कपूर के भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे। शशि कपूर ने बाल कलाकार के रूप में कई फिल्मों में काम किया था। हीरो के रूप में उनकी फिल्में चल नहीं पा रही थीं। एक दिन पृथ्वीराज कपूर ने अपनी चिंता से शास्त्री जी को अवगत कराया। तब शास्त्री जी ने कुछ सोच कर कहा कि अगर शशि कपूर गौसेवा करेंगे तो उनका भाग्य पलट सकता है। पृथ्वीराज ये उपाय सुन कर हंस पड़े, बोले, पंडित ! तुम भी कमाल करते हो। मुम्बई में भला मैं गाय कैसे पाल सकता हूं। क्या इससे शशि एक्टिंग में माहिर हो जाएगा ? शास्त्री जी ने संजीदगी से कहा, आप इस पर अमल कर के तो देखिए। फिर तय हुआ कि पृथ्वी राज गाय खरीद कर शास्त्री जी को देंगे। शास्त्री जी के घर पर गाय पालने के लिए एक आदमी रहेगा और इसके लिए हर महीने पृथ्वीराज एक तय रकम देंगे। गौपालन शुरू हो गया। उस समय फिल्म 'जब जब फूल खिले' की शूटिंग चल रही थी। शशि कपूर इसके हीरो थे। नंदा इसकी हीरोइन थीं। 1965 में जब ये फिल्म रिलीज हुई तो बॉक्स ऑफिस पर तहलका मच गया। फिल्म सुपर डुपर हिट हुई। इसके सुरीले गाने लोगों की जुबान पर चढ़ गये। हीरो के रूप में शशि कपूर की गाड़ी चल पड़ी। पृथ्वीराज कपूर दकियानुसी में यकीन नहीं रखते थे। लेकिन इस चमत्कार के बाद वे शास्त्री जी के मुरीद हो गये। इतना ही नहीं जब राज कपूर मेरा नाम जोकर के फ्लॉप होने से बुरी तरह टूट गये थे तब वे भी कुछ दिनों तक छिप कर शास्त्री जी के घर पर रहे थे।
पृथ्वीराज कपूर की मार्मिक चिट्ठी
पृथ्वीराज कपूर ने अपनी मौत से करीब एक महीना पहले जानकी वल्ल्भ शास्त्री को एक मार्मिक चिट्ठी लिखी थी। 22 अप्रैल 1971 को पृथ्वीराज कपूर ने शास्त्री जी को एक जवाबी खत लिखा था। उस समय वे गंभीर रूप से बीमार थे। बीमारी की खबर सुन कर शास्त्री जी ने उनको आराम करने की सलाह दी थी। इस पर पृथ्वीराज कपूर ने लिखा था- मेरी जिंदगी एक मुसलसल सफर है जो मंजिल पे पहुंचा तो मंजिल बढ़ा दी। उन्होंने लिखा था कि आराम करना मुजे मंजूर नहीं। काम के बिना मैं रह नहीं सकता। क्या तुम चाहते हो कि एक मोटा आदमी और आलसी हो जाए। मैंने कभी बुखार की परवाह नहीं की। तुम्हें याद होगा जब मैंने मुजफ्फरपुर में नाटक विद्य़ापति का मंचन किया था। राजदरबार के जिस दृश्य की सारे लोग तारीफ कर रहे थे उस समय मैं बुखार में तप रहा था। शरीर कांप रहा था लेकिन मैंने खुद को संभाला। जितनी क्षमता थी उतना अभिनय किया। नाटक के बाद जब निर्देशक देवकी कुमार बोस को ये बात मालूम हुई तो वे हैरान रह गये। इस चिट्ठी को लिखने के कुछ दिन बाद ही पृथ्वीराज कपूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका निधन 29 मई 1971 को हुआ था।