फिर छाए मुरादाबादी कलाकार रामलीलाओं में
नई
दिल्ली(विवेक
शुक्ला)
पूरे
उत्तर
भारत
में
रामलीला
की
धूम
है।
भले
ही
समाज
कितना
बदला
हो
हाल
के
दौर
पर,
पर
रामलीला
को
देखने
का
क्रेज
बरकरार
है।
सबसे बड़ी बात यह है कि सभी अहम या कहें की बड़ी रामलीलाओं में मुरादाबादी कलाकार छाए हुए हैं हर बार की तरह से। राजधानी की परेड ग्राउंड रामलीला हो या चंडीगढ़ के सेक्टर 17 में चल रही रामलीला, सबमें पीतल नगरी के कलाकार काम कर रहे हैं।
परेड़ ग्राउंड रामलीला से जुड़े हुए लाला राम विलास गुप्ता कहते हैं कि मुरादाबाद के कलाकार पैसे से ज्यादा रामलीला में काम करना अपना धर्म समझते हैं।
विदेशों तक धूम
जानकार कहते हैं कि रंगकर्मी बलवीर पाठक ने मुख्य रूप से रामलीला मंचन में गजब का योगदान किया। जिस मुरादाबादी शैली की रामलीला की देश-विदेश तक धूम है, उस शैली को बलवीर बाबू ने ही विकसित किया।
उन्हें दिल्ली के सुभाष मैदान में पर्दे बनाने के दौरान ही उन्हें रामलीला मंचन की प्रेरणा मिली। उन्होंने सुभाष मैदान रामलीला के सर्वेसर्वा उग्रसेन सिंघल से कहा कि उन्हें मंचन का मौका दिया जाए।
उग्रसेन ने उन्हें स्क्रिप्ट तैयार करने को कहा। उसके बाद तो मुरादाबाद के कलाकार छा गए। 65 में युद्ध के चलते पूरे देश में रामलीला का मंचन नहीं हुआ।
आदर्श रामलीला
पहली बार दिल्ली में मुरादाबाद शैली की रामलीला आदर्श कला संगम की ओर से हुई थी। कहते हैं कि वर्ष 1967 से पूर्व मथुरा व ब्रज की शैली में रामलीला होती थी लेकिन मथुरा व ब्रज की भाषा में संवाद जटिल थे। इसका विकल्प निकालने में मुरादाबाद के कलाकारों को श्रेय जाता है।
इन तीनों में मुरादाबाद शैली में रामलीला की प्रभावशाली स्क्रिप्ट लिखी। मुरादाबादी शैली में प्ले बैक रामलीला होती है। संवाद भी सरल होते हैं। पर्दे के पीछे से संवाद बोले जाते हैं। कलाकार बस मंचन ही करते हैं।
1967 में ये विधा शुरू हुई। 1984 में इस विधा को मुरादाबादी शैली का नाम दे दिया गया। यकीन मानिए कि आपके शहर की बड़ी रामलीला में होंगे मुरादाबादी कलाकार।