रामविलास पासवान बोले- किसी को धर्म के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता
नई दिल्ली। देश में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर विरोध जारी है। इसी बीच मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री और भाजपा के सहयोगी रामविलास पासवान ने शुक्रवार को कहा कि, कोई भी सरकार किसी भी भारतीय से नागरिकता नहीं छीन सकती है। रामविलास पासवान ने शुक्रवार को कहा कि, उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में कई नागरिकता उपायों पर लोगों को आश्वस्त करने का प्रयास किया है।
लोक जनशक्ति पार्टी के नेता ने कहा कि, चाहे वे दलित हों, आदिवासी हों, पिछड़े हों, ऊंची जातियों के अल्पसंख्यक हों, वे सभी देश के मूल नागरिक हैं। नागरिकता उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। कोई भी सरकार इसे छीन नहीं सकती। किसी भी भारतीय नागरिक को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाएगा। जहां तक एनआरसी का सवाल है, इस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। लेकिन इसका किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा, किसी को भी धर्म के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता है।
पासवान ने कहा कि मैंने जीवनभर दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकार के लिए संघर्ष किया है। सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता मेरा और मेरी पार्टी लोजपा का मिशन है। कोई भी सरकार नागरिकता तो दूर रही, इनके अधिकार पर उंगली नहीं उठा सकती है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम देश में आए घुसपैठियों के खिलाफ लागू होता है। यही कारण है कि संसद के दोनों सदनों ने इसे पास किया, जबकि राज्यसभा में NDA का बहुमत भी नहीं है। पासवान ने कहा कि, 2003 में नागरिकता कानून में संशोधन किया गया जिसमें NRC की अवधारणा तय हुई थी। 2004 में यूपीए की सरकार बनी जो इसे Repeal कर सकती थी। Repeal करने के बजाय 7 मई 2010 को लोकसभा में तत्कालीन गृहमंत्री श्री पी. चिदम्बरम ने कहा था-यह स्पष्ट है कि NRC, NPR का उपवर्ग होगा।
पासवान ने एनआरसी को लेकर कहा कि, यह भी भ्रम फैलाया जा रहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं वंचित वर्ग के लोगों के पास जन्मतिथि या माता-पिता के जन्मस्थल या जन्मतिथि का दस्तावेज नहीं रहने पर उन्हें संदेहास्पद सूची में डाल दिया जाएगा, जो सही नहीं है। नागरिक या उसके माता-पिता की जन्मतिथि या जन्मस्थली का सबूत आवश्यक नहीं है। सक्षम प्राधिकारी के पास किसी व्यक्ति द्वारा नागरिकता पंजीकरण के लिए आवेदन देने पर गवाह, अन्य सबूत या स्थानीय लोगों से पूछताछ आदि के आधार पर नागरिकता दी जाएगी। विदेशियों को भी नागरिकता कानून 1955 के तहत भारत की नागरिकता मिलती रही है। भारतीय मूल के 4,61000 तमिलों को 1964 से 2008 के बीच भारत की नागरिकता मिली। विगत 6 वर्षों में 2830पाकिस्तानी, 912 अफगानी और 172 बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता दी गई।
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