आज से शुरु हुआ राज्यसभा का 250वां सत्र, प्रणब मुखर्जी ने बताया अपना अनुभव
नई दिल्ली। संसद के उच्च सदन राज्यसभा का आज (सोमवार) से 250वां सत्र शुरू हो रहा है। राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने इस मौके पर रविवार को एक पब्लिकेशन जारी किया है। जिसमें 1952 से अब तक उच्च सदन के सफर के बारे में बताया गया है। इस दौरान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मुखर्जी का कहना है कि इस सफर के दौरान यहां कई मुद्दों पर बहस हुई है। वह कहते हैं कि उन्हें 1969 में राज्यसभा के लिए चुना गया था। और वह 1987 तक इसके सदस्य भी रहे। दूसरी बार वह अगस्त 1993 से मई 2004 तक इसके सदस्य रहे। यह तब तक था जब वह 2012 में देश के राष्ट्रपति बनने के लिए लोकसभा से निर्वाचित हुए।
राज्यसभा का विशेष महत्व
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि राज्यसभा का हमेशा मेरे जीवन में एक विशेष महत्व रहा है। राज्यसभा सदस्य के रूप में अपनी लंबी पारी के दौरान, मुझे स्वतंत्रता आंदोलन के अनुभवी नेताओं से सीखने का मौका मिला। जो न केवल राजनेता थे, बल्कि अच्छे वक्ता भी थे। उन्होंने कहा कि इनमें एमसी छागला, अजीत प्रसाद जैन, जयरामदत्त दौलतराम, भूपेश गुप्ता, जोआचिम अल्वा, महावीर त्यागी, राज नारायण, भाई महावीर, लोकनाथ मिश्रा, चित्त बसु, और कई अन्य शामिल हैं।
राजनीतिक रूप से अधिक दक्ष सदस्य आए
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कहते हैं, मेरे अनुसार राज्यसभा एक ऐसी जगह है, जिसका उद्बोधन चर्चा और बहस से होता है। क्योंकि राज्यसभा में विभिन्न पार्टी से चुनकर लोग आते हैं, ऐसे में अपेक्षा की जाती है कि इनमें राजनीतिक रूप से अधिक दक्ष सदस्य भी आएं। इस उम्मीद को ध्यान में रखते हुए 12 सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करता है। इन प्रतिष्ठित हस्तियों में इतने वर्षों से विश्व प्रसिद्ध संगीतकार पंडित रविशंकर, गायिका लता मंगेशकर, पृथ्वीराज कपूर, नरगिस और दिलीप कुमार जैसे सिनेमा के लोग शामिल रहे हैं। शानदार नाटककार, कवि और लेखक भी राज्यसभा के सदस्य रहे हैं।
महिलाओं के लिए आरक्षित सीट
मुखर्जी कहते हैं, मुझे देशभर में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने वाले कानून की याद आती है। राज्यसभा ने इस कानून के पारित होने में एक अहम भूमिका निभाई है। दो दशक से अधिक के प्रयास के बाद साल 2010 में उच्च सदन ने महिलाओं के लिए दो तिहाई विधायी सीटों को आरक्षित करने के विधेयक को पारित करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम था। विधेयक को 186 मतों से पारित किया गया था।
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