Rajasthan Political Crisis: बचेगी या जाएगी अशोक गहलोत सरकार ? समझिए नंबर गेम
नई दिल्ली- 2018 के दिसंबर में जबसे राजस्थान में भाजपा को हटाकर कांग्रेस सत्ता में आई है, उसके बाद से इस वक्त पार्टी वहां सबसे बड़ा राजनीतिक संकट झेल रही है। राज्य के उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के काम करने के तरीके से बेहद नाराज हैं और पार्टी के कई विधायक और मंत्री उनके साथ खुलकर एकजुट हो रहे हैं। चर्चा है कि कुछ मंत्री भी मुख्यमंत्री की बुलाई मीटिंग को नजरअंदाज कर दे रहे हैं। खबरें हैं कि पायलट के साथ कांग्रेस के 30 विधायक हैं और कई निर्दलीय भी उनके एक इशारे पर ऐक्शन प्लान के साथ तैयार बैठे हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या गहलोत सरकार भी कमलनाथ सरकार की तरह चली जाएगी या यहां राजनीति के धुरंधर सीएम बाजी अपने पास ही सुरक्षित रखने में एकबार फिर से कामयाब हो जाएंगे।
बचेगी या जाएगी अशोक गहलोत सरकार ?
कांग्रेस पहले कर्नाटक, फिर मध्य प्रदेश में मुश्किल से हाथ आई सत्ता पिछले एक साल में गंवा चुकी है। अबकी बार राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौत आ खड़ी हुई है। सरकार में नंबर टू सचिन पायलट मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के कम से कम 30 विधायक और कुछ निर्दलीय एमएलए उनके साथ हैं और उन्होंने उप मुख्यमंत्री को भरोसा दिया है कि वो जो भी फैसला लेंगे, वो उनका साथ देंगे। यूं कह लीजिए कि करीब साढ़े तीन महीने बाद पार्टी की स्थिति घूमकर मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी हो गई है। वहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलाथ और दिग्विजय सिंह की पक्की जोड़ी से नाराज क्या हुए, कांग्रेस आलाकमान सत्ता हाथ से खिसकती देखती रही और उसे हाथ मलकर रह जाना पड़ा। सवाल है कि क्या राजस्थान में भी मध्य प्रदेश दोहराया जाएगा? इसके लिए जरूरी है कि राजस्थान में सदन का मौजूदा गुना-गणित जान लें।
विधानसभा में कांग्रेस सरकार का गणित
राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के गहलोत और पायलट कैंप के विधायकों को मिलाकर पार्टी की कुल सदस्य संख्या 101 है। इस तरह से 200 विधायकों वाले विधानसभा में पार्टी के पास अपने दम पर स्पष्ट बहुमत है। जबकि, पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के 6 विधायकों को भी पार्टी में शामिल करा लिया है। इस तरह से कांग्रेस विधायकों की संख्या हो गई 107. इसके इलावा कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल का भी एक विधायक पार्टी के साथ है। यही नहीं गहलोत सरकार को 13 निर्दलीय विधायकों, 2 भारतीय ट्रायबल पार्टी और 2 सीपीएम विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। इस तरह विधानसभा में गहलोत सरकार के पास अभी कुल 125 विधायकों का समर्थन है। ऐसे में 107 विधायकों वाली कांग्रेस से पायलट कानूनी तौर पर सिर्फ 30 विधायकों को तोड़कर अलग ग्रुप नहीं बना सकते।
अशोक गहलोत का पलड़ा अभी भी भारी
लेकिन, राजस्थान विधानसभा में विपक्षी भाजपा के पास अपने 72 विधायक हैं और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के पास 3 विधायक हैं जो कि उसकी सहयोगी है। ऐसे में अगर पायलट कर्नाटक और एमपी स्टाइल में 30 विधायकों के साथ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देते हैं तो कांग्रेस विधायकों की संख्या घटकर 77 रह जाएगी। इसमें अगर निर्दलीयों को छोड़कर उसके बाकी सहयोगियों की संख्या भी जोड़ दें तो उसका आंकड़ा 82 से कम नहीं रहेगा। जबकि भाजपा खेमे के पास सिर्फ 75 विधायक रहेंगे। ऐसे में सारा दारोमदार उन 13 निर्दलीय विधायकों पर रहेगा कि वो किस तरफ कितनी संख्या में झुकते हैं। क्योंकि, पायलट खेमे से इस्तीफे की स्थिति में (अगर ऐसा हुआ तो) सदन की कुल सदस्य संख्या 170 रह जाएगी, जिसके लिए 86 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा। यानि फिर भी पलड़ा अशोक गहलोत के पक्ष में भारी पड़ रहा है। अलबत्ता अगर भाजपा 13 में से कम से कम 10 निर्दलीय विधायकों अपने खेमे में करेगी, तभी उसके बीते हुए दिन फिरने की संभावना है, जो कि मौजूदा परिस्थितियों में बहुत ही बड़ी चुनौती होगी।
गहलोत खेमा को संकट टल जाने का भरोसा
शायद यही वजह है कि भाजपा फिलहाल इसे कांग्रेस का अंदरूनी मसला मानकर बाहर से शांत बैठी हुई है। क्योंकि, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा है कांग्रेस में जो कुछ भी हो रहा है उसमें पार्टी का कोई रोल नहीं है। वहीं गहलोत खेने को पक्का यकीन है कि उनके पास नंबर हैं और उनकी सरकार सुरक्षित है। शायद यही वजह है कि पायलट खेमे ने अभी तक सिर्फ यही मुद्दा उठाया है कि वह गहलोत की मनमर्जी नहीं चलने देंगे। यानि वह इसके बदले में पार्टी आलाकमान से कुछ और आशीर्वाद लेकर भी अपने पैर पीछे खींच सकते हैं और इसीलिए गहलोत ने उन्हें रोकने के लिए उसी तरह की तैयार करनी शुरू कर दी है।
कांग्रेस आलाकमान के फैसले पर सबकी नजर
हालांकि, कांग्रेस आलाकमान और मुख्यमंत्री गहलोत की चिंता इसलिए बढ़ी हुई है कि शनिवार की रात सीएम की ओर से बुलाई गई बैठक में पायलट खेमे के मंत्री भी नदारद रहे। इनमें से एक बड़ा नाम पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह भी हैं जो दिल्ली चले आए थे और ट्वीट कर बताया था कि वह अपनी बहन से मिलने गए थे। इनके अलावा उपमुख्यमंत्री खेमे में जिन विधायकों के होने की बात है वे हैं- जीआर खटाना, मुरलीलाल मीणा, राकेश पारीक, पीआर मीणा, हरीश मीणा, इंद्रराज गुर्जर, रामनिवास गावाड़िया, प्रशांत बैरवा, चेतन डूडी,जाहिदा खान, रोहत बेहरा, दानिश अबरार, मुकेश भाकर, सुदर्शन रावत और अमर सिंह जाटव शामिल हैं। बहरहाल, अब सबकी नजरें पार्टी आलाकमान पर टिकी है कि वो क्या फैसला लेती है। उसमें पायलट को मनाने का कोई प्लान होता है या फिर उन्हें भी सिंधिया की तरह यूं ही छोड़ दिया जाता है। वैसे इस राजनीतिक संकट से अगर मौजूद गहलोत सरकार बच भी जाय, लेकिन उसकी जड़ें तो हिल ही चुकी हैं और अभी नहीं तो आने वाले समय में उसे इससे भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
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