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Rajasthan:क्या इस नेता की वजह से सचिन पायलट से दूरी बनाकर चल रही है भाजपा

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नई दिल्ली- राजस्थान से जुड़े भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने कांग्रेस में जारी घमासान को लेकर काफी उत्साह दिखाया है। जिसमें प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के अलावा केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत, ओ माथुर और राजस्थान में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया जैसे लोग शामिल हैं। लेकिन, कई रोज गुजर गए, प्रदेश भाजपा की सबसे बड़ा चेहरा वसुंधरा राजे अबतक सोशल मीडिया पर भी शांत ही नजर आई हैं। सवाल है कि क्या उन्हीं की वजह से भाजपा पायलट के मुद्दे पर चाहकर भी उतना ऐक्टिव नहीं हो पा रही है, जितना ज्योतिरादित्य सिंधिया के मसले पर हुई थी? अगर ऐसा है तो अगला सवाल उठता है, ऐसा क्यों है?

पायलट के मसले पर क्यों ठंडा है भाजपा का उत्साह?

पायलट के मसले पर क्यों ठंडा है भाजपा का उत्साह?

राजस्थान में जबसे कांग्रेस में सचिन पायलट एपिसोड शुरू हुआ है, बीजेपी नेता उनके पार्टी में आने पर स्वागत की बात तो कर रहे हैं, लेकिन किसी ने इसमें वह तेजी नहीं दिखाई है, जिस तरह से मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले में हुआ था। ये भी हो सकता है कि उस समय राज्यसभा चुनाव का मौका था और सिंधिया की भाजपा को तात्कालिक दरकार थी। लेकिन, पायलट के मामले में एक बात सबसे ज्यादा चौंका रही है, उनकी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इतनी ज्यादा खुन्नस के बावजूद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की अबतक की चुप्पी। हो सकता है कि वह किसी भी वक्त धौलपुर हाउस से जयपुर पहुंच जाएं और इस मसले पर पार्टी नेताओं से चर्चा भी कर लें। लेकिन, अभी तक उनकी चुप्पी बहुत कुछ इशारा कर रही है। जहां तक प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की बात है तो वह भी पायलट के भाजपा में आने पर खुशी होने की बात तो कह रहे हैं, लेकिन इस संबंध आखिरी फैसला सेंट्रल लीडरशिप पर छोड़कर अपनी सीमा से आगे बढ़ने का जोखिम नहीं लेना चाहते। यही नहीं, शुरू में गहलोत सरकार के बहुमत के लिए फ्लोर टेस्ट की मांग से भी भाजपा अब पीछे हट चुकी है। ऐसे में जाहिर है कि कोई न कोई अदृश्य शक्ति (भाजपा से बाहर के लोगों के लिए) जरूर है, जो प्रदेश भाजपा नेताओं को ज्यादा हिम्मत दिखाने से रोक रही है!

राजस्थान में भाजपा पर भारी 'महारानी'

राजस्थान में भाजपा पर भारी 'महारानी'

जब से भाजपा पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह का दखल बढ़ा है, पार्टी उसी दिशा में आगे बढ़ी है जिसपर ये नेता पार्टी को लेकर बढ़े हैं। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इस जोड़ी ने पार्टी को शिखर पर भी पहुंचाया है। लेकिन, सिर्फ राजस्थान ही एक ऐसा प्रदेश देखने में आता है, जहां 'महारानी' के माहात्म्य के आगे गुजरात की सफल जोड़ी भी थोड़े एहतियात के साथ दखल देती है। पिछले 6 वर्षों का इतिहास टटोलें तो ऐसा एक ही मौका आया है, जब वसुंधरा राजे की चाहत के बाद भी 2014 में उनके बेटे दुष्यंत सिंह को मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई। बाकी राजस्थान भाजपा में कुछ भी हुआ है तो उसपर 'महारानी' की मुहर जरूर रही है। इसकी एक बानगी 2018 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल चुका है जब तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पसंद के बावजूद गजेंद्र शेखावत को प्रदेश भाजपा की कमान नहीं सौंपी जा सकी। भाजपा नेतृत्व को बुजुर्ग मदन लाल सैनी के नाम पर सहमति जतानी ही पड़ी। पिछले साल जब उनका निधन हो गया तो फिर दोनों पक्षों ने किसी तरह से सतीश पूनिया के नाम पर समझौता किया।

वसुंधरा-गहलोत में अलिखित समझौता!

वसुंधरा-गहलोत में अलिखित समझौता!

ऐसे में पायलट के मामले पर अबतक वसुंधरा राजे ने जो संदिग्ध शांति बनाई रखी है, उसकी वजह ये है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे राजस्थान की सियासत के ऐसे दो चेहरे हैं, जो एक-दूसरे के विपक्ष में होते हुए भी एक-दूसरे के खिलाफ उस तरह से मोर्चा खोलते नहीं देखे गए हैं। हैरानी की बात जरूर है, लेकिन ऐसा दो देशकों से चल रहा है। दोनों आपस में लगभग हर पांच साल बाद कुर्सी बदलते आ रहे हैं, लेकिन एक-दूसरे पर सीधे प्रहार से बचते भी रहे हैं। सचिन पायलट यही आरोप भी लगा रहे हैं। उनका कहना है कि वसुंधरा सरकार के दौरान जिस जमीन डील में भ्रष्टाचार को चुनाव में उन्होंने मुद्दा बनाया, गहलोत ही उसपर कुंडली मारकर बैठ गए। उन्होंने ये भी आरोप लगाया है कि जिस सरकारी बंगले में वसुंधरा राजे ने अदालत के आदेश को नजरअंदाज कर अपने आजीवन रहने का इंतजाम कर लिया, उलटे उस फैसले के खिलाफ गहलोत सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, ताकि वसुंधरा की मनमर्जी वाला बंगला उनके पास ही सुरक्षित रहे।

पायलट को भाजपा में लाने के पक्ष में नहीं हैं वसुंधरा ?

पायलट को भाजपा में लाने के पक्ष में नहीं हैं वसुंधरा ?

तथ्य ये है कि सोशल मीडिया पर ठीक-ठाक ऐक्टिव रहने वाली वसुंधरा ने अबतक राजस्थान कांग्रेस में जारी घमासान पर एक शब्द नहीं बोला है। भाजपा की राजनीति को करीब से जानने वाले लोगों की मानें तो वसुंधरा राजे पायलट वाली राजनीति को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि वसुंधरा की अबतक की उदासीनता देखकर ही अशोक गहलोत का भी आत्मविश्वास इतना बढ़ा है कि उन्होंने जैसा चाहा, सचिन पायलट के साथ वैसा ही बर्ताव किया। सौ बात की एक बात ये कि वो सचिन पायलट को भाजपा में लाने के पक्ष में नहीं लग रही हैं। क्योंकि, पायलट ही वो शख्स हैं, जिन्होंने 2013 से 2018 तक राजस्थान में वसुंधरा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला और सरकार की खामियों को उजागर करते रहे। शायद यही वजह है कि पायलट खेमे में भी अलग पार्टी बनाने की चर्चा होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। छन-छन कर 'प्रगतिशील कांग्रेस पार्टी' जैसे संगठन का नाम भी उभरकर आ रहा है।

2023 में वसुंधरा को मिल सकती है चुनौती

2023 में वसुंधरा को मिल सकती है चुनौती

तथ्यों का विश्लेषण करने पर यह बात समझ में आती है कि वसुंधरा राजे, अशोक गहलोत को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानतीं। क्योंकि, दो दशकों से राजस्थान में लगभग ऐसा ट्रेंड बना हुआ है कि भाजपा आएगी तो कांग्रेस जाएगी। यानि दोनों की कुर्सी हर पांच साल के लिए सुरक्षित है। लेकिन, सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनना चाहते है। ऐसे में अगर वो आ गए और राजस्थान का ट्रेंड बरकरार रहा तो 'महारानी' के सामने वह बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। यही नहीं वसुंधरा राजस्थान में भाजपा की वैसी नेता हैं, जिनका समाज के हर वर्ग पर अपनी पकड़ है। भाजपा विधायकों पर भी उनका दबदबा बरकरार है। जबकि, सचिन पायलट को आमतौर पर गुर्जर नेता माना जाता है, जो अपने पिता की विरासत आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन, जिस तरह से पायलट ने रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह जैसे नेताओं को अपने साथ जोड़ा है, उसके जरिए वह अपनी एक सर्वमान्य छवि बनाना चाहते हैं। राजे के मन में भी शायद यही बात खटक रही है। एक बात और है- 2023 में जब राजस्थान विधानसभा का अगला चुनाव होगा, वो 70 वर्ष की हो जाएंगी। यानि उनके लिए पीएम मोदी के द्वारा भाजपा में तय 75 साल के रिटायरमेंट की उम्र तक आखिरी पारी खेलने का मौका बचेगा। ऐसे में वो वही जोखिम नहीं लेना चाहतीं, जिसका डर शायद मध्य प्रदेश में सिंधिया की वजह से अब शिवराज सिंह चौहान को सता रहा होगा।

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English summary
Rajasthan:Is BJP running away from Sachin Pilot because of this leader
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