राजस्थान चुनावः किसमें कितना है दम
जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजीव जैन कहते है, "मुझे नहीं लगता कि जमीन पर कुछ बदला है. यह बीजेपी की शैली हो सकती है कि अपने कार्यकर्ताओ में जोश भरा जाए. पर धरातल पर लोग सरकार की कार्यशैली से बहुत नाराज हैं. इसका चुनाव पर असर पड़ना लाजिमी है."
यह वो घड़ी है जब सियासी पार्टिया हर जरूरतमंद आँख में सुनहरे ख्वाब उतारती है. इसमें वादे हैं, दावे हैं.अब यह मतदाता की अंगुली तय करेगी कि उसे मशीन पर लगा कौन सी पार्टी का बटन पसंद है.
राजस्थान में अब नई सरकार चुनने में बहुत कम वक़्त बचा है. सत्तारूढ़ बीजेपी ने दावा किया है कि वो फिर से सत्ता में लौट रही है.कांग्रेस की नजर में यह बीजेपी की विदाई वेला है.
राजनीति के जानकार कहते हैं कि राज्य में व्यवस्था विरोधी रुझान बहुत मजबूत है. यह बीजेपी का रास्ता रोक सकता है. चुनावी दंगल में इन दोनों दलों के कुछ विद्रोही भी मैदान में है. इनमें चार मंत्री भी शामिल हैं.
रियासत काल में इस मरुस्थली भूभाग ने अनेक युद्ध देखे हैं. मगर यह चुनावी जंग है. इसमें कोई दो हजार से ज्यादा प्रत्याशी मैदान में हैं. राष्ट्रीय दलों के अलावा ऐसे अनेक दल उभर आए हैं, जिन्होंने अपने उम्मीदवार खड़े कर चुनावी परिदृश्य को उलझनभरा बना दिया है.
निर्दलीय भी बहुत है. नयी बनी राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी और भारत वाहिनी पार्टी ने परस्पर समझ पैदा कर 123 उम्मीदवार खड़े किये हैं. निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल की इस नयी पार्टी ने कुछ स्थानों पर मुकाबले को तिकोना बना दिया है.
जानकार यह हिसाब नहीं लगा पा रहे हैं कि इन सबका चुनाव परिणामों पर कैसा और कितना असर होगा. बहुजन समाज पार्टी ने भी 190 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारे है.
सत्ता में अपने पांच साल मुकम्मल कर चुकी बीजेपी फिर से सरकार बनाने को बेताब है. जबकि कांग्रेस अपना वनवास खत्म करना चाहती है. शुरुआती चुनावी सर्वेक्षणों में बीजेपी को अपनी प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी से पिछड़ते हुए बताया गया था.
मगर अब बीजेपी का दावा है कि चुनाव प्रचार के बाद फिजा बदल गई है. बीजेपी प्रवक्ता जितेंद्र श्रीमाली कहते है, "हम जीत रहे है."
पर कैसे? वो कहते है कि कांग्रेस ने मुद्दों से भटकाने की कोशिश की थी, लेकिन पहले हमनें गौरव यात्रा निकाल कर जनता के समक्ष सरकार के काम काज का लेखा पेश किया. फिर लाभार्थी सम्मेलन किया और अपनी उपलब्धियां गिनाईं. जनता बीजेपी को फिर सत्ता सौंपने जा रही है.
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माहौल बनाने का प्रयास
चुनाव प्रचार में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी-अपनी पार्टी के लिए वोट मांग रहे थे.
प्रचार में कोई कमी न रह जाए, इसलिए दोनों दलों के देशभर से आये प्रमुख नेताओं ने जगह-जगह सभाएं कीं, रोड शो कियए और अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया.
इसमें नेता तो नेता, फ़िल्मी सितारे भी शामिल थे. कांग्रेस प्रवक्ता सत्येंद्र राघव कहते है, "हमारे पास जो फीडबैक है वो यह बताता है कि कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है."
"बीजेपी मीडिया के जरिए यह प्रचारित करने का प्रयास कर रही है कि अब हालात बदल गए हैं. मगर धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है."
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जोड़-तोड़ और विद्रोह
राजस्थान की इस चुनावी जंग में बीजेपी सरकार के चार मंत्री पार्टी से बगावत कर मैदान में डटे हैं. बीजेपी का एक संसदीय सचिव और एक विधायक भी विद्रोह कर चुनाव मैदान में है.
कांग्रेस में भी कुछ पूर्व मंत्री और विधायक भी टिकट न मिलने पर बागी हो गए और पार्टी प्रत्याशियों को चुनौती दे रहे हैं. मगर जानकारों की नज़रें विधायक बेनीवाल की पार्टी पर भी लगी है.
बेनीवाल प्रभावशाली जाट समुदाय से आते हैं. उनकी पार्टी ने पचास से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. इससे जानकारों के लिए यह आकलन करना कठिन हो गया है कि बेनीवाल की पार्टी के प्रत्याशी परिणामों पर क्या असर डालेंगे.
इन चुनावों पर नज़र रख रहे वरिष्ठ पत्रकार संजय बोहरा कहते है, "जहाँ भी हमने देखा है, रोजगार एक बड़ा मुद्दा है. किसान खफा हैं और दलित भी नाराज हैं. ये जो तीन वर्ग हैं, बेरोजगार, किसान और दलित, इनकी नाराजगी सत्तारूढ़ पार्टी को भारी पड़ी सकती है."
"यह नाराजगी सिर्फ राज्य सरकार के खिलाफ ही नहीं बल्कि केंद्र के विरुद्ध भी है. लोग रोजगार, जीएसटी और नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार से भी खफा हैं."
बोहरा कहते हैं, "लोग कांग्रेस के प्रति भी बहुत उत्साहित नहीं हैं. चूँकि लोग बीजेपी सरकार से नाराज है, इसलिए कांग्रेस को लाना चाहते है."
पाथेय कण पत्रिका के सम्पादक केएल चतुर्वेदी इससे सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं, "बीजेपी वापस सत्ता में लौट रही है. क्योंकि सरकार ने बहुत काम किया है. जनता को लगता है कि बीजेपी को जिताना राष्ट्र के हित में है."
क्या व्यवस्था विरोधी रुझान का फर्क नहीं पड़ेगा? वो कहते हैं कि एंटी इंकम्बेंसी हर सरकार के विरुद्ध होती है. अतीत में कांग्रेस सरकारों के खिलाफ भी रही और वेोकामयाब होते रहे. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी जीतती रही है. यहाँ भी बीजेपी जीतेगी.
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बदलते गए मुद्दे
राज्य में अपनी ताजपोशी की ख्वाहिश लेकर निकले इन दोनों पार्टियों के नेताओ ने शुरू में विकास को मुद्दा बनाने की बाते कही, लेकिन देखते-देखते इसमें, मंदिर, जाति और धर्म-आस्था आ गए और बात बढ़ी तो गौत्र भी शामिल कर लिया गया.
बीजेपी ने मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विकास का डबल इंजन बताया है.
पर क्या इससे माहौल बदल गया है?
जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजीव जैन कहते है, "मुझे नहीं लगता कि जमीन पर कुछ बदला है. यह बीजेपी की शैली हो सकती है कि अपने कार्यकर्ताओ में जोश भरा जाए. पर धरातल पर लोग सरकार की कार्यशैली से बहुत नाराज हैं. इसका चुनाव पर असर पड़ना लाजिमी है."
यह वो घड़ी है जब सियासी पार्टिया हर जरूरतमंद आँख में सुनहरे ख्वाब उतारती है. इसमें वादे हैं, दावे हैं.अब यह मतदाता की अंगुली तय करेगी कि उसे मशीन पर लगा कौन सी पार्टी का बटन पसंद है.