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Vasundhara Raje ने 'विवादित बिल' को सेलेक्ट कमेटी को भेजा, बैकफुट पर नजर आ रही हैं राजस्थान की CM

इस बिल के तहत किसी जज या मजिस्ट्रेट या किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पहले से इजाजत लिए बिना जांच नहीं की जा सकेगी। सोमवार को ही भारी विरोध के बीच में वसुंधरा राजे सरकार ने इस विवादित बिल को विधानसभा में पेश कर दिया था।

By Vikashraj Tiwari
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नई दिल्ली। वसुंधरा राजे लोकसेवकों को संरक्षण देने वाला क्रिमिनल लॉ संशोधन बिल पर बैकफुट पर नजर आ रही हैं। वसुंधरा राजे ने विपक्ष के भारी विरोध के चलते बिल को पुनर्विचार के लिए सेलेक्ट कमेटी को भेज ही दिया है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सोमवार शाम को अपने कई मंत्रियों को घर बुलाया था और उनसे उस बिल पर दोबारा विचार करने को कहा था, जिसे लेकर उन्हें काफी आलोचनाएं झेलनी पड़ रही हैं। इस बिल के तहत किसी जज या मजिस्ट्रेट या किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पहले से इजाजत लिए बिना जांच नहीं की जा सकेगी। सोमवार को ही भारी विरोध के बीच में वसुंधरा राजे सरकार ने इस विवादित बिल को विधानसभा में पेश कर दिया था।

Vasundhara Raje ने 'विवादित बिल' को सेलेक्ट कमेटी को भेजा, बैकफुट पर नजर आ रही हैं राजस्थान की CM

क्या है ये बिल?
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (राजस्थान अमेंडमेंट) बिल 2017 को पिछले ही महीने राज्य गृहमंत्री गुलाचंद कटारिया ने पेश किया था। इस बिल से क्रिमिनल लॉ (राजस्थान अमेंडमेंट) बिल को बदलने के लिए लाया गया। इस बिल के तहत राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बगैर किसी भी मौजूदा और पूर्व जज, मजिस्ट्रेट और लोक सेवकों के खिलाफ 180 दिन तक जांच करने पर पाबंदी लगाई गई है। इतना ही नहीं, इस समय के दौरान में मीडिया में ऐसे लोगों के नाम-पते और अन्य जानकारियों को प्रकाशित करने पर भी रोक होगी। इस बिल की सोशल मीडिया पर लगातार आलोचना हो रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।

कानून का उल्लंघन करने पर दो साल की सजा का प्रावधान
राजस्थान सरकार द्वारा लाए जा रहे इस बिल के मुताबिक मीडिया भी छह महीने तक किसी भी आरोपी के खिलाफ न ही कुछ दिखा सकेगी और न ही कुछ छाप सकेगी। जब तक सरकारी एंजेसी आरोपों पर कार्रवाई की मंजूरी न दे दे, तब तक मीडिया को छापने व दिखाने पर रोक होगी। अगर किसी ने इस आदेश का उल्लंघन किया तो उसे दो साल की सजा हो सकती है।

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English summary
Under this bill, a judicial magistrate or a government servant can not be scrutinized without permission beforehand. In the midst of heavy protest on Monday, the Vasundhara Raje Government had introduced this disputed bill in the assembly.
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