राजस्थान विधानसभा चुनाव: जनता के इन मुद्दों की भी हो बात
नई दिल्ली। राजस्थान में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही चुनावी सरगर्मी तो बढ़ गई है लेकिन क्या इन चुनावों में जनता के मूल मुद्दों की बात भी होगी। ये सवाल इसलिए कि राजनीतिक दलों का गुणा-गणित जात-पात और वर्ग-संप्रदाय तक सिमटा है। राज्य में वसुंधरा सरकार के खिलाफ लोगों में रोष बताया जा रहा है लेकिन अगर जमीनी मुद्दों को भटकाकर भावनात्मक मुद्दों को पार्टियों ने चुनाव में जगह दी तो क्या ये राज्य के मतदाता के साथ न्याय होगा। पांच साल में चुनाव ही ऐसा वक्त होता है जब मतदाता को कुछ आस बंधती है और वो सोचता है कि नेता उसके हित और उसके भविष्य को लेकर कोई बात करेंगे। लेकिन अगर उसे जात-धर्म के जाल में फंसा दिया गया तो ये उसके साथ धोखा होगा।
राजस्थान में कई अहम मुद्दे हैं जिन पर चुनावों में बात होनी चाहिए। राजनीतिक दलों को इसकी याद आएगी? ये देखना होगा। लेकिन हम इनकी याद जरूर दिलाएंगे। आइए नजर डालते हैं जनता के कुछ मुद्दों पर।
बेरोजगारी का दंश
2013
में
जब
बीजेपी
राजस्थान
में
विधानसभा
के
चुनाव
मैदान
में
उतरी
थी
तो
उसने
वादा
किया
था
कि
सत्ता
में
आने
के
बाद
वो
5
साल
में
15
लाख
लोगों
को
रोजगार
देगी।
अब
2018
का
चुनाव
होने
वाला
है।
कांग्रेस
का
कहना
है
कि
5
साल
में
राज्य
में
मुश्किल
से
एक
लाख
लोगों
को
नौकरी
दी
गई
है।
राज्य
में
बेरोजगारी
भत्ते
का
प्रावधान
है
इसके
तहत
पुरुष
बेरोजगार
को
650
रुपए
प्रतिमाह
और
महिला
व
विशेष
योग्यजन
बेरोजगार
को
750
रु.
प्रतिमाह
भत्ता
देने
का
प्रावधान
है।
भत्ता
स्नातक
बेरोजगारों
को
2
साल
तक
दिया
जाता
है।
प्रदेश
में
वर्तमान
में
5
लाख
89
हजार
से
ज्यादा
पंजीकृत
शिक्षित
बेरोजगार
है
और
पिछले
चार
साल
में
सरकार
की
तरफ
से
सिर्फ
एक
लाख
32
हजार
युवाओं
को
बेरोजगारी
भत्ता
दिया
गया।
राजस्थान
में
बेरोजगार
की
दर
7.1
फीसदी
है।
राज्य
में
बेरोजगारों
ने
अपनी
हालत
को
बयां
करने
के
लिए
एक
शॉर्ट
फिल्म
'दास्तां
ए
बेरोजगार'
बनाई
है
जो
आगामी
21
अक्टूबर
को
रिलीज
होगी।
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कहां है महिला सश्क्तिकरण
राजस्थान में भी 12 साल तक की बच्चियों से रेप के मामले में फांसी देने का प्रावधान है। लेकिन प्रदेश में बच्चियों के साथ दुष्कर्म के आंकड़े डराने वाले हैं। पिछले 3 सालों में प्रदेश में नाबालिग बच्चियों के साथ 3897 रेप की वारदातें हुईं। हर साल ये संख्या करीब 1300 है और हर रोज प्रदेश में तीन नाबालिग बच्चियां के साथ बलात्कार होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 52.1 फीसदी महिलएं अशिक्षित थीं और राजस्थान देश में चौथे पायेदान पर है। मातृ मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश (27.8) के बाद राजस्थान (23.9) का ही नंबर है। एक शोधपत्र के मुताबिक भारत में हर साल बीस लाख से ज्यादा महिलाएं लापता हो जाती हैं और इस मामले में दो राज्य हरियाणा और राजस्थान अव्वल हैं। राजनीतिक तौर पर भी प्रदेश में महिलाओं की स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है। 200 सीटों वाली विधानसभा में फिलहाल महज 26 महिला विधायक हैं। राज्य के 14 जिले ऐसे हैं जहां से एक भी महिला विधायक नहीं है। ऐसे हालात तब हैं जब सूबे की कमान महिला मुख्यमंत्री के हाथ में है।
घोटाले और भ्रष्टाचार
वसुंधरा राजे सरकार में जहां मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं तो वहीं खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तक भी इसकी आंच आई। कांग्रेस ने खानों के आवंटन में 45 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया। ललित मोदी विवाद में भी वसुंधरा की खूब किरकिरी हुई। छात्रों की छात्रवृति देने में भी घोटाले के आरोप लगे। अभी हाल ही में हुई गौरव यात्रा को लेकर भी कई सवाल उठे किस उसमें सरकारी पैसे यानी आम जनता के पैसों का दुरुपयोग हो रहा है।
किसान हैं बेहाल
देश
में
किसानों
की
हालत
किसी
से
छुपी
नहीं
है।
राजस्थान
भी
इससे
अछूता
नहीं
है।
कर्ज
माफी
और
कई
अन्य
मांगों
को
लेकर
सरकार
और
किसान
कई
बार
आमने
सामने
आए।
लेकिन
किसानों
के
मसलों
का
हल
नहीं
निकला।
वसुंधरा
ने
चुनावी
साल
में
अपने
बजट
भाषणा
में
किसानों
के
50
हजार
रूपए
तक
के
कर्ज
एक
बार
में
माफ
करने
और
फिर
आगामी
सालों
में
किसान
कर्ज
माफी
आयोग
बनाकर
आवेदन
के
आधार
पर
कर्ज
माफी
की
घोषणा
की
थी
।
लेकिन
कहा
जा
रहा
है
कि
जमीनी
स्तर
पर
किसानों
को
इसका
कोई
लाभ
नहीं
मिला
है।
उपज
के
लाभकारी
मूल्य
न
मिलने
से
भी
किसान
परेशान
हैं।
बिजली
के
बढ़े
दामों
ने
भी
किसानों
की
कृषि
की
लागत
को
बढ़ा
दिया
है।
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मेडिकल सुविधाएं बदहाल
राजस्थान में GDP का सिर्फ 2% ही हेल्थ सेक्टर पर खर्च किया जाता है। सरकार ने गरीबों के लिए 108 एम्बुलेंस सेवा और भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजनाएं चलाई लेकिन इनमें फैला भ्रष्टाचार पूरी व्यवस्था को खत्म कर रहा है। भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना में सरकार गीरब मरीज को 3 लाख तक का बीमा देती है। लेकिन इसकी आड़ में निजी अस्पताल चांदी काट रहे हैं। कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जरूरी न होने के बावजूद निजी अस्पतालों में 10 गर्भवती महिलाओं में से 6 की सिजेरियन डिलीवरी कर दी जाती है। जबकि सरकारी अस्पतालों में ये संख्या सिर्फ 10 में से 3 है। प्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी है। राज्य में करीब 2 हज़ार की जनसंख्या पर एक डॉक्टर है।
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