Shramik Special trains:भारी भीड़ उमड़ने के बाद अचानक क्यों कम होने लगे हैं पैसेंजर ?
नई दिल्ली- मजदूर दिवस के दिन 1 मई से देश में जबसे कोरोना लॉकडाउन में फंसे यात्रियों को उनके गृहराज्य भेजने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलने लगी हैं, यात्रियों की अबतक भारी भीड़ उमड़ रही थी। रेलवे स्टेशनों के बाहर प्रवासी मजदूरों और प्रवासी कामगारों का जन-सैलाब उमड़ रहा था। लेकिन, अब भारतीय रेलवे का कहना है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की मांग अचानक घटने लगी है। ये बाद खुद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव ने कही है। बताया जा रहा है कि लॉकडाउन में ढील के चलते फैक्ट्रियों और कारोबार की गतिविधियां फिर से शुरू होने के चलते श्रमिक स्पेशल से जाने वाले मजदूरों की संख्या में अचानक कमी दर्ज की जाने लगी है।
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की डिमांड अचानक कम हुई
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव ने कहा है कि अब श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की मांग घटने लगी है। ये स्पेशल ट्रेनें प्रवासी मजदूरों और प्रवासी कामगारों को उनके गृहराज्यों तक पहुंचाने के लिए चलाई जा रही है। यादव के मुताबिक इस वक्त रेलवे को सिर्फ 450 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की ही आवश्यकता रह गई है। उन्होंने शुक्रवार को कहा , 'ऐसा लगता है कि जिन राज्यों से ये ट्रेनें चलती हैं, वहां इनकी मांगों में कमी आने लगी है। गुरुवार को 137 ट्रेंने रवाना हुईं और बुधवार को 172 चली थीं। ट्रेनों की मांग पिछले दो दिनों से कम हो रही है।' जबकि, पिछले हफ्ते तक 250 ट्रेनें रोजाना चल रही थीं। यादव के मुताबिक पिछले 1 मई से कुल 52 लाख यात्रियों को लेकर ऐसी 3,840 ट्रेनें रवाना की गई हैं।
कारोबार शुरू होते ही मजदूरों का इरादा बदलने लगा है
दिल्ली से सटे यूपी के दो एनसीआर शहरों नोएडा और गाजियाबाद का ही उदाहरण ले लीजिए। शुक्रवार को नोएडा प्रशासन ने मांग घटने की वजह से श्रमिक ट्रेन सेवा रोक दी। जबकि, गाजियाबाद स्टेशन से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन पहले ही रोक दिया गया है। असल में इन एनसीआर शहरों में जैसे-जैसे बाजार, उद्योग और व्यापारिक प्रतिष्ठान खुलने शुरू हुए हैं अपने राज्यों की ओर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या बहुत ही कम रह गई है। गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी सुहास एलवाई के मुताबिक नोएडा और गाजियाबाद से पिछले दो हफ्तों में करीब 2.5 लाख कामगार (ट्रेनों और बसों से अपने राज्यों या जिलों की ओर ) गए हैं, लेकिन अब जाने वालों की तादाद घट चुकी है। उन्होंने कहा कि 'लंबे वक्त के बाद शुक्रवार को एक भी ट्रेन नहीं चली। बहुत ही कम ही प्रवासी बच गए हैं और जब कुछ और लोग जुट जाएंगे तभी हम और ट्रेनों की मांग करेंगे।'
ट्रेनों के दर से चलने पर रेलवे की सफाई
बता दें कि पिछले कुछ दिनों से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के देर से चलने, ट्रेनों में खाने-पीने की आपूर्ति नहीं हो पाने के चलते रेलवे आलोचनाओं का शिकार हो रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि यात्रा के दौरान कुछ यात्रियों की मौत के मामलों ने जरूरी सुविधाओं को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन आरोपों के जवाब में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने कहा है कि 3,840 ट्रेनों में से सिर्फ 71 को 20 से 24 मई के बीच रेल नेटवर्क पर दबाव की वजह से उनके रूट डायवर्ट किए गए। उन्होंने बताया कि 'सिर्फ 4 ट्रेनों को ही गंतव्य राज्यों तक पहुंचने में तीन दिन से ज्यादा लग गए, क्योंकि ये राज्य देश के उत्तर-पूर्वी इलाके में हैं। ये लंबी दूरी की ट्रेनें हैं और असम में भू-स्खलन जैसी घटनाओं की वजह से यात्रा में विलंब हुई है।'
श्रमिक ट्रेनें के यात्रियों से रेलवे की अपील
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने यह भी गुजारिश की है कि जिन यात्रियों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां हैं, बुजुर्ग नागरिक, गर्भवती महिलाएं और 10 साल से छोटे बच्चों को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में तभी सफर करना चाहिए, जब बहुत ही आवश्यक हो जाए। बता दें कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के बाद रेलवे ने 12 मई से नई दिल्ली से 15 गंतव्यों के लिए स्पेशल एसी ट्रेनों की भी शुरुआत की थी, जो वापस में नई दिल्ली तक आ रही हैं। इनके अलावा 1 जून से 200 जोड़ी स्पेशल पैसेंजर ट्रेनों का भी परिचालन शुरू हो रहा है और आने वाले दिनों में रेल यात्रा को सामान्य बनाने की कोशिशें जारी रहेंगी।