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मोदी सुनामी के राहुल सबसे बड़े लूजर, उनके बाद ये हैं दिग्गज नाम

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नई दिल्ली- कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी की लाज केरल और तमिलनाडु ने बचा ली, नहीं तो शायद 2019 में उनकी पार्टी मुख्य विपक्षी का दर्जा पाते-पाते तीसरे नंबर पर पहुंच जाती। देश की सबसे पुरानी पार्टी का यह हाल क्यों हुआ है, ये बात जनता ज्यादा जानती है। लेकिन, 130 करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाली जनता की अदालत में राहुल अकेले लूजर बनकर नहीं निकले हैं। उनके साथ-साथ कई ऐसे दिग्गज हैं, जिनकी नीतियों और हरकतों को अस्वीकार करके लोगों ने उन्हें इसबार बहुत ही बड़ी शिकस्त दी है।

लूजर नंबर 2-ममता बनर्जी

लूजर नंबर 2-ममता बनर्जी

ममता बनर्जी (MAMATA BANERJEE) ने खुद को नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के सबसे बड़े चैलेंजर के रूप में पेश करने की भरपूर कोशिशें कीं। इसके लिए उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को गिराने से भी परहेज नहीं किया। इसके पीछे उनका मुख्य मकसद मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में ध्रुवीकरण था। इसके जरिए उन्होंने लेफ्ट और कांग्रेस को भी बंगाल की राजनीति से मिटाना चाहा। लेकिन, ममता (MAMATA BANERJEE) ध्रुवीकरण और मोदी-विरोध में इस कदर डूबीं कि उन्हें उनके ध्रुवीकरण नीति के खिलाफ होने वाले दूसरी तरफ की गोलबंदी का पूरा अंदाज ही नहीं लग पाया। इसके कारण बंगाल में उनका आधार हिल चुका है। अब उनके सामने असल चैलेंज 2021 के विधानसभा चुनावों में मोदी को फेस करना है।

लूजर नंबर 3-चंद्रबाबू नायडू

लूजर नंबर 3-चंद्रबाबू नायडू

टीडीपी (TDP) के चंद्रबाबू नायडू (CHANDRABABU NAIDU) ने जिस जल्दबाजी में एनडीए (NDA) का साथ छोड़ा था, वो बात आजतक उनके समर्थकों को भी समझ में नहीं आया है। वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress) एवं उसके नेता जगन मोहन रेड्डी (Jagan Maohan Reddy) के बढ़ते जनाधार से वे इस कदर घबरा गए थे कि एक के बाद एक गलत राजनीतिक आकलन करते चले गए। दशकों तक एनडीए (NDA) के सबसे चर्चित रिफॉर्मिस्ट नेता माने जाने वाले रातों-रात मोदी के बहुत बड़े सियासी दुश्मन बन गए। वह मोदी को भला-बुरा कहने में लगे रहे, उधर वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress) ने उनका गढ़ ही हिला दिया। नायडू की वजह से बीजेपी (BJP) आंध्र प्रदेश (AP) में कुछ कर नहीं पाई, लेकिन अपने राज्य के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में दखल चाहने वाले टीडीपी (TDP) नेता न ही अपना घर ही बचा पाए और न ही उनका दिल्ली वाला मंसूबा ही पूरा हुआ।

लूजर नंबर 4-अखिलेश यादव

लूजर नंबर 4-अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी (SP) के अंदर को लोगों को लगता है कि अखिलेश यादव (AKHILESH YADAV) का घर के बड़े-बुजुर्गों से झगड़ा ही उन्हें ले डूबा है। उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) को संगठन और बूथ मैनेज करने का अनुभव था, लेकिन अखिलेश ने उन्हें नजरअंदाज किया। जबकि, अखिलेश को जमीन की राजनीति का कोई खास अंदाजा नहीं रहा है। उन्हें तो जो मिला वो पिता मुलायम का बना-बनाया जनाधार और चाचा का परोसा हुआ मजबूत संगठन। उनकी मनमानी के कारण पार्टी संगठन को काफी नुकसान हुआ। पार्टी का आधार यादव वोटर बसपा (BSP) के साथ जाने को लेकर कभी भी पूरी तरह सहज नहीं हो पाया। यूपी में एसपी-बीएसपी (SP-BSP) के गठबंधन से बीजेपी को जो भी नुकसान हुआ है, उसकी मलाई अकेले बुआ को मिली है, बबुआ के सामने तो मुंह ताकने की नौबत आ गई है।

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लूजर नंबर 5-तेजस्वी यादव

लूजर नंबर 5-तेजस्वी यादव

तेजस्वी यादव (TEJASHWI YADAV) को जितनी कम उम्र में पिता का बना-बनाया हुआ जनाधार मिला था, वह उसे सहेज कर रखने में पूरी तरह नाकाम हो गए। लालू यादव (Lalu Yadav) के जेल में रहने से आरजेडी (RJD) और उसके गठबंधन को जो नुकसान हुआ वो तो हुआ ही, लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) के रवैये ने भी सत्ताधारी गठबंधन की मदद की। अनुभव की कमी के कारण तेजस्वी ने जिस तरह से बिहार (Bihar) में कैंपेन को लीड किया, उससे भी वह पटरी से उतरती चली गई। चुनाव को लेकर उनकी गंभीरता का अंदाजा इसी से साफ हो गया था कि खुद उन्होंने अपना ही वोट नहीं डाला। बिहार में बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी गठबंधन अभी जिस मजबूत स्थिति में है, उससे लगता नहीं है कि अगले साल विधानसभा चुनावों में भी तेजस्वी के सियासी भविष्य में कहीं से कोई तेजी दिखाई दे रही है।

लूजर नंबर 6-अरविंद केजरीवाल

लूजर नंबर 6-अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल (ARVIND KEJRIWAL) की आम आदमी पार्टी (AAP) के पास अब पंजाब से लोकसभा की सिर्फ एक ही सीट बची है। उनकी निगेटिव पॉलिटिक्स और विद्रोही हरकतों से पार्टी का आधार हिल चुका है। तथ्य यह है कि अब वोट शेयर के मामले में दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी (AAP) कांग्रेस से पिछड़ रही है। करीब दो महीनों तक पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (ARVIND KEJRIWAL) दिल्ली में कांग्रेस से एलायंस करने को लेकर उनके नेताओं के सामने जिस तरह से घुटने टेकते दिखे, उसने उनके वोटरों को शायद भाजपा (BJP) की ओर मुड़ने को मजबूर कर दिया। दिल्ली में 2020 की शुरुआत में चुनाव है, लेकिन केजरीवाल के सामने उससे पहले अपने पार्टी को ही एकजुट रखने की चुनौती आ गई है।

लूजर नंबर 7-सीताराम येचुरी

लूजर नंबर 7-सीताराम येचुरी

सीताराम येचुरी (SITARAM YECHURY) ने जब से सीपीएम (CPM) की कमान संभाली है, लेफ्ट के दिन लदने शुरू हो चुके हैं। बंगाल और त्रिपुरा जिसे उनका गढ़ माना जाता था, वहां उन्हें खाता खोलने तक लाले पड़ गए। केरल में जहां उनकी सरकार है, वहां पर सबरीमाला मुद्दे पर उनके रोल ने उन्हें एक सीट पर समेट दिया है। अगर, तमिलनाडु में डीएमके का साथ नहीं होता तो लेफ्ट की स्थिति और भी बुरी हो जाती। ये वही लेफ्ट है, जिसके समर्थन के दम पर 2004 में यूपीए-एक की सरकार बनी थी। सीपीएम के नेता येचुरी के फैसलों से कई बार यह फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि वह स्वतंत्र निर्णय ले रहे हैं या किसी के पिछलग्गू की भूमिका निभा रहे हैं। पार्टी ऐसी हालत में आ चुकी है कि बंगाल में वो ममता बनर्जी से लड़ती है, लेकिन नरेंद्र मोदी का नाम सामने आते ही कांग्रेस और टीएमसी के पीछे चल पड़ती है। नतीजा ये हो चुका है कि अब लेफ्ट को अपने दम पर अपना वजूद बचाना भी भारी पड़ रहा है।

मोदी सुनामी में बच गईं मायावती

मोदी सुनामी में बच गईं मायावती

बसपा (BSP) सुप्रीमो की कामयाबी ये मानी जा सकती है कि मोदी लहर में जीरो रहने वाली उनकी पार्टी मोदी सुनामी में 10 के आंकड़े तक पहुंच गई। यानी बबुआ की पार्टी से गठबंधन का असली फायदा मिला है तो वो बुआ को मिला। लेकिन, इस बार मायावती (Mayawati) समाजवादी पार्टी (SP) ने अपना घर गंवाकर अगर बचा लिया है, तो यह जरूरी नहीं कि आगे आने वाले दिनों में भी अखिलेश यादव उनकी झोली में इसी तरह सीटें डालते रहें। बहनजी के लिए यूपी में एक और चुनौती ये भी है कि कयास लग रहे हैं उनके दलित वोट बेस में सेंध लगाया जा चुका है। अगर आने वाले तीन वर्षों में यह खाई गहरी हुई तो हाथी जैसे भारी जीव का उसमें मुंह के बल गिरने की आशंका बढ़ भी सकती है।

मोदी सुनामी में ऐसे बचे KCR

मोदी सुनामी में ऐसे बचे KCR

तीन दौर के चुनाव होने के बाद देश की अगली सरकार बनाने के लिए सबसे ज्यादा उतावले होने वालों में चंद्रबाबू नायडू के अलावा टीआरएस (TRS) के मुखिया और तेलंगाना (Telangana) के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (KCR) भी थे। कुछ ही महीने पहले तेलंगाना में मिड टर्म पोल कराकर उन्होंने जितनी धमाकेदार तरीके से सत्ता में वापसी की थी, लोकसभा का चुनाव आते-आते उसमें सेंध लग गई। केसीआर (KCR) के लिए सबसे बुरी स्थिति ये हो गई है कि उनकी पार्टी ने कुछ सीटें कांग्रेस और भाजपा के हाथों ही नहीं गंवाया, बल्कि अपनी बेटी कविता (Kavitha ) की भी सीट बचाने में नाकाम हो गए। जानकारी के मुताबिक उनका सपना था कि राज्य की सभी सीटें जीतकर वे दिल्ली में उपप्रधानमंत्री की कुर्सी ले लेंगे और परिवार के एक सदस्य को तेलंगाना की गद्दी सौंप देंगे। लेकिन, फिलहाल उन्हें अपने राज्य की ही राजनीति करनी पड़ेगी।

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English summary
Rahul is the biggest loser of the Modi tsunami, after him the legendary name
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