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राहुल गांधी के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने की तैयारी शुरू, पार्टी में ये बदलाव दे रहे हैं संकेत

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नई दिल्ली- लगता है कि राहुल गांधी ने दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी ताजपोशी कराने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। अलबत्ता पार्टी में उनका दबदबा अभी भी हर जगह महसूस किया जा सकता है। चाहे 23 वरिष्ठ नेताओं की और से सोनिया गांधी को लिखी हुई चिट्टी का मामला हो या फिर मानसून सत्र से पहले संसद में कांग्रेस की गतिविधियों को देखने के लिए नेताओं के बीच बांटी गई जिम्मेदारियां। राहुल की छाप कांग्रेसी बगीजे के हर पत्तों पर महसूस की गई है। हां, ये जरूर है कि पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार औपचारिक तौर पर अभी उनकी मां सोनिया गांधी के पास है, इसलिए फैसले उन्हीं के नाम पर लिए जाते हैं। लेकिन, अब लगता है कि गांधी परिवार की यह दुविधा भी जल्द खत्म होने वाली है।

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Rahul Gandhi to become Congress President again, these changes are giving indication in the party

कुछ महीनों के अंदर राहुल गांधी दोबारा से कांग्रेस अध्यक्ष बन सकते हैं। इसके लिए पार्टी सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। इन संकेतों पर मुहर इस बात से लगती है कि पार्टी में राहुल गांधी के कुछ वफादार नेताओं के पुनर्वास का काम अभी से तेज कर दिया गया है। राहुल गांधी के ये ऐसे समर्थक हैं, जो पिछले लोकसभा चुनावों के आसपास या तो खुद ही पार्टी या पदों से किनारे हो चुके हैं या फिर उन्हें कर दिया गया है। इनमें से एक बड़ा नाम जनता दल की राजनीति छोड़कर कांग्रेस में आए मोहन प्रकाश का है। पार्टी महासचिव पद की जिम्मेदारी निभा चुके मोहन प्रसाद करीब डेढ़ साल से संगठन से गायब थे। कुछ हफ्ते पहले उन्हें पार्टी प्रवक्ता नियुक्त किया गया था और अब बिहार चुनाव में उन्हें चुनाव प्रबंधन और समन्वय समिति का संयोजक बना दिया गया है। ये राहुल के इतने चहेते माने जाते हैं कि बाहरी का ठप्पा होने के बावजूद इन्हें उनके कार्यकाल में महासचिव के तौर पर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों का प्रभार दिया जा चुका है। लेकिन, आखिर यही बाहरी वाली छवि के चलते उन्हें सीडब्लूसी से बाहर होना पड़ा था और महासचिव पद से भी हटाया गया था।

कांग्रेस में वापस लौटने वाले राहुल के चहेतों में पूर्व आईपीएस डॉक्टर अजय कुमार बड़ा नाम हैं। 2014 के चुनाव में झारखंड में बाबूलाल मरांडी की पुरानी पार्टी से हारने के बाद ये कांग्रेस में शामिल हुए थे। राहुल की अध्यक्षता के दौरान एआईसीसी प्रवक्ता बनते इन्हें महीनें भर का भी वक्त नहीं लगा था। कर्नाटक मूल के होने के बावजूद दो साल के अंदर ही कई वरिष्ठों को पीछे छोड़ते हुए झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन गए। बाहरी होने का ठप्पा था ही, ऊपर से 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में पार्टी की ऐसी दुर्गति हुई कि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं पर भड़ास निकालते हुए कांग्रेस छोड़नी पड़ गई। फिर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का शरण मिला। अब वापस फिर से एआईसीसी में एंट्री हो चुकी है। करीब साल भर कांग्रेस से बाहर रहने के बाद उन्हें पार्टी को लेकर जो कुछ भी महसूस हो रहा है उसे इकोनॉमिक्स टाइम्स से हुई बातचीत में बयां किया है, 'मुझे लगता है कि सिर्फ कांग्रेस ही बीजेपी के विभाजनकारी एजेंडी से लड़ सकती है और राहुल गांधी मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ खड़े होने वाले सबसे बहादुर नेता हैं। मैंने सिर्फ स्थानीय नेताओं से मतभेदों के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दिया था।'

राहुल गांधी के कुछ सलाहकार हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर की वापसी के लिए भी उनसे संपर्क में हैं। उन्होंने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में टिकट बेचे जाने के आरोपों के साथ सोनिया गांधी के घर के बाहर अपना विरोध जताने के बाद पार्टी छोड़ दिया था। इससे पहले राहुल के आशीर्वाद से तंवर करीब पांच साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे, जिसको लेकर प्रदेश के नेताओं के बीच शीतयुद्ध की स्थिति बन गई थी। तंवर के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार किया गया और भूपिंदर सिंह हुड्डा बगावती तेवर दिखाने लगे थे। बाद में कुमारी शैलजा को लाकर किसी तरह पार्टी में शांति बहाली हुई थी और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अच्छी चुनौती पेश की।

इसी तरह मुंबई में भी राहुल गांधी के आशीर्वाद से शिवसेना से आने के बावजूद 5 साल तक स्थानीय नेताओं के प्रतिरोध के बाद भी संजय निरुपम का दबदबा कायम रहा। पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उन्हें उनके पद से हटा दिया गया और तब से निरुपम अक्सर बगावती तेवरों में नजर आ जाते हैं। उद्धव ठाकरे की सरकार के खिलाफ वह पहले दिन से ही झंडा बुलंद किए हुए हैं। ऐसा कोई मौका नहीं आता जब वह अपनी ही पार्टी की महा विकास अघाड़ी सरकार की नीतियों की ऐसी की तैसी नहीं करते। लेकिन, फिर भी वह राहुल गांधी से वफादारी निभाने में कोई कोताही नहीं बरतते। इसका फल उन्हें मिलना शुरू हो गया है। पिछले हफ्ते ही उन्हें एआईसीसी ने बिहार चुनावों के लिए चुनाव अभियान और समन्वय समिति का सदस्य बनाया गया है।

राहुल गांधी के वफादारों में गुजरात से आने वाले कांग्रेस के एक नेता भी हैं- मधुसूदन मिस्त्री। कांग्रेस के पूर्व महासचिव को अब पार्टी के उस केंद्रीय चुनाव समिति का चेयरमैन बना दिया गया है, जो राहुल गांधी के अध्यक्ष पद पर वापसी का ताना-बाना बून रहा है। यानि आने वाले दिनों में कई सारे कांग्रेसियों के दिन फिरने वाले हैं और कुछ को लंबे समय या हमेशा के लिए सियासी संन्यास लेने की तैयारी करनी पड़ सकती है।

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English summary
Rahul Gandhi will be crowned as Congress President again, his followers are being given important posts in the party
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