राहुल गांधी ने पूछा -जवानों और अधिकारियों के खाने में अंतर क्यों?, CDS बिपिन रावत ने दिया ये जवाब
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच लद्दाख में एलएसी पर लंबे समय जारी गतिरोध के बीच, सीडीएस जनरल बिपिन रावत शुक्रवार को रक्षा मामलों के संसदीय पैनल के सामने उपस्थित हुए। इस बैठक में संसदीय समिति के सदस्य और कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हुए। इस बैठक का आधिकारिक एजेंडा 'सैन्य बलों, विशेषकर सीमा क्षेत्रों में, राशन के सामान और वर्दी का प्रावधान और इसकी गुणवत्ता की निगरानी' के तौर पर सूचीबद्ध किया गया था।
राहुल गांधी ने उठाया जवानों के खाने की क्वालिटी का मुद्दा
रक्षा की संसदीय समिति की बैठक में राहुल गांधी ने सीडीएस बिपिन रावत से सवाल किया कि बॉर्डर क्षेत्र में जवानों और अधिकारियों के बीच खाने की क्वालिटी में अंतर क्यो हैं? राहुल गांधी ने कहा कि वेतन को रैंक से जोड़ा जा सकता है लेकिन आहार को नहीं। राहुल गांधी ने कहा, "जवानों के आहार से समझौता न करें, जो ड्यूटी पर रहते हुए लंबे समय तक कठोर परिस्थितियों का सामना करते हैं।
कई सैनिक उठा चुके हैं सेना में खाने का मुद्दा
दिलचस्प बात यह है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे अतीत में कई सैनिक उठा चुके हैं। जैसे बीएसएफ के तेज बहादुर यादव भी खाने का मुद्दा उठाया था जिसके बाद उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना किया और उन्हें बीएसएफ से निकाल दिया गया था। हालांकि राहुल गांधी के इस सवाल का सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने जवाब दिया। जनरल बिपिन रावत ने रक्षा संसदीय पैनल को बताया कि जवानों और अधिकारियों को परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता या मात्रा में कोई अंतर नहीं है।
जनरल रावत ने राहुल को दिया ये जवाब
जनरल बिपिन रावत ने भोजन की अलग-अलग आदतों के उदाहरण देते हुए कहा कि, अधिकतर जवान गांव या कस्बों से आते हैं। उनके खाने में रोटी को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि ऑफिसर शहर से आते हैं वे ब्रेड खाना अधिक पसंद करते हैं। सैनिक ज्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं और वे देसी घी पसंद करते हैं जबकि अधिकारी पनीर को खाना पसंद करते हैं। जनरल रावत ने कहा कि खाद्य आदतों में क्षेत्रीय अंतर भी हैं। आमतौर पर देखा गया है कि देश के उत्तरी हिस्सों से आने वाले जवान गेहूं पसंद करते हैं जबकि दक्षिण और पूर्व इलाकों के रहने वाले जवान चावल खाना पसंद करते हैं।