राहुल गांधी की डिप्रेशन की आखिर क्या हो सकती है वजह? आइए जानें!
बेंगलुरू। पूर्व कांग्रेस राहुल गांधी एक बार फिर विदेश दौरे पर चले गए हैं। कांग्रेस की ओर जारी बयान के मुताबिक राहुल गांधी मेडिटेशन के लिए विदेश दौर पर गए हैं। सवाल उठ रहा है क्या राहुल गांधी डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, जिसके इलाज के लिए विदेश गए हैं। विदेश दौरों की खबर अक्सर राहुल गांधी को सुर्खियों में ले आती है, लेकिन राहुल गांधी मौजूदा दौरा खास है, क्योंकि कांग्रेस के मुताबिक राहुल गांधी मेडीटेशन के लिए विदेश जा रहे हैं।
माना जाता है कि डिप्रेशन अथवा अवसादग्रस्त लोगों को ही मेडिटेशन की अक्सर जरूरत होती है। तो क्या राहुल गांधी डिप्रेसन के शिकार हैं और अगर हैं तो उनके डिप्रेशन की वजह है इसका जवाब ढ़ूंढना आसान नहीं हैं, क्योंकि 50 वर्षीय राहुल गांधी को करियर, शादी, आजादी, उत्तराधिकार और प्रधानमंत्री बनने की इच्छा भी डिप्रेसन का कारण हो सकता है।
गौरतलब है राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक पराजय के दौर से गुजरी है। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा। पार्टी को महज 44 लोकसभा सीटों पर विजय मिली। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटों में थोड़ा सुधार जरूर दर्ज हुआ और पार्टी अपने दम पर 53 सीट जीतने में कामयाब रही, लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी पांरपरिक अमेठी लोकसभा सीट गवां बैठी थी।
अमेठी लोकसभा सीट कांग्रेस पार्टी की पारंपरिक ही नहीं, घरेलू सीट थी, जहां पिछले 4 दशक से कांग्रेस का कब्जा रहा था, लेकिन कांग्रेस के लिए चुनौती बनकर उभरी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी से अमेठी छीन ली। हालांकि राहुल गांधी उससे पहले ही हार के डर अमेठी छोड़कर सुरक्षित वायनाड पहुंच चुके थे।
आंकड़ों पर गौर करें तो राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से पूर्व कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के नेतृत्व में लगातार कुल 24 चुनावों में हार का मुंह देखा है। वर्ष 2012 यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में यूपी विधानसभा चुनाव में 21 सांसदों वाली कांग्रेस पार्टी महज 28 सीट जीतने में कामयाब हुई।
वर्ष 2012 में ही पंजाब में कांग्रेस जीत की स्वाभाविक दावेदार थी, लेकिन अकाली-भाजपा गठबंधन ने सबको चौंका दिया।। पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में हार का कारण इशारों-इशारों में राहुल गांधी को ही बताया। इसका सबूत है कि 2017 विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस न केवल शिखर पर पहुंची बल्कि दिल्ली में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने वाली आम आदमी पार्टी के मंसूबों पर भी पानी फेर दिया।
राहुल गांधी अभी कांग्रेस पार्टी में किसी पद पर आसीन नहीं हैं, लेकिन यदा-कदा राजनीतिक यात्राएं करते रहते हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद प्रतिनिधि मंडल के साथ श्रीनगर का दौरा उनमें प्रमुख है। वहीं, हाल ही में संपन्न हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी की सिर्फ मुंह दिखाई ही की गई।
वह भी तब विपक्ष दलों ने हॉलीडे पर गए राहुल गांधी पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया। कांग्रेस हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से राहुल गांधी को दूर रखने की कोशिश थी, लेकिन विपक्षी दलों की चुटकी के बाद कांग्रेस को कथित रूप से बैंकाक में मौजूद राहुल गांधी को दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार करने के लिए बुलाना पड़ गया।
24 अक्टूबर को हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए मतदान का परिणाम आया तो दोनों राज्यों में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। यह बात अलग है कि कांग्रेस दोनों राज्यों में उम्मीद जगाकर सो गई। इसका श्रेय विपक्षी दल राहुल गांधी के चुनावी कैंपेन को दो सकते हैं, क्योंकि विपक्षी अक्सर राहुल गांधी की चुनावी कैंपेन को अपनी जीत से जोड़ कर देखते हैं। यहां तक कि सोशल मीडिया ऐसे मीम्स से भरे पड़े हैं, जिसमें राहुल गांधी की चुनावी कैंपेन को विपक्षी बीजेपी की जीत की गारंटी के तौर पर वर्णति किया जाता है।
राहुल गांधी की डिप्रेशन का कारण उनकी राजनीतिक करियर हो सकता है, क्योंकि उनके राजनीतिक करियर में जीत की खुशी कम बल्कि हार का अवसाद अधिक भरा हुआ है। राहुल गांधी की डिप्रेशन का कारण यह भी हो सकता है कि 50 वर्षीय राहुल गांधी की अभी तक शादी नहीं हो सकी है, क्योंकि करियर के बाद सामान्यतया लोग शादी के बारे में सोचते हैं।
राहुल गांधी के डिप्रेशन का कारण कांग्रेस की लगातार हो सकती है, जो उनके नेतृत्व में कांग्रेस तरसती रही है। राहुल गांधी की डिप्रेशन का कारण आजादी हो सकती है, जो राहुल गांधी राजनीतिक करियर से चाहते हैं, लेकिन जबरन उन्हें चुनना पड़ा है। राहुल गांधी की डिप्रेशन कारण कांग्रेसी उत्तराधिकार का भी हो सकता है।
राहुल गांधी के बारे में अक्सर तंज के रूप विपक्ष की ओर से कहां जाता है कि राहुल गांधी के बाद कांग्रेस का उत्तराधिकारी ही नहीं बचेगा। विपक्ष के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन राहुल गांधी के ऊपर खुद को कांग्रेस का सही उत्तराधिकारी साबित करने का डिप्रेसन कर गया हो सकता है। राहुल गांधी को डिप्रेसन प्रधानमंत्री की इच्छा का भी हो सकता है।
राहुल गांधी के पास वर्ष 2004 से 2009 के दौरान दो-दो बार ऐसे मौके आए, जब वो प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंच सके। वर्ष 2009 लोकसभा चुनाव के चुनावी कैंपेन में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह तो बाकायदा कह दिया था कि वो राहुल गांधी के अंडर में काम करने को तैयार हैं, लेकिन फिर भी उनको मौका नहीं मिला। राहुल गांधी के डिप्रेसन के पीछे यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में बीजेपी लगातार शीर्ष पर पहुंची है, लेकिन एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि कांग्रेस राहुल गांधी की वजह से जीतती हुई दिख रही है। यह अलग बात है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता कांग्रेस की इक्का-दुक्का जीत का श्रेय गांधी परिवार और राहुल गांधी को देने को मजबूर हैं।
बात करें, वर्ष 2015 बिहार विधानसभा चुनाव की तो महागठबंधन में शामिल कांग्रेस को आंशिक सफलता मिली, लेकिन राहुल गांधी का इसका श्रेय किसी ने नहीं दिया। कोई दल छोड़िए, खुद कांग्रेस ने भी राहुल गांधी का नाम नहीं लिया। वर्ष 2016 में तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस पार्टी को केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में सरकार बनी। इसका भी श्रेय राहुल गांधी को किसी नहीं दिया।
वर्ष 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव हुए। पंजाब में कांग्रेस विजयी हुई और अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को पंजाब से सत्ता से बाहर कर दिया, लेकिन जीत का श्रेय पंजाब नेता व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को गया। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस वर्ष 2012 में पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ी थी, लेकिन कांग्रेस बुरी तरह हार गई। पंजाब में हार के लिए राहुल गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री कैंडीडेट घोषित करने को ठहराया, लेकिन वर्ष 2017 में कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे के नाम पर ही चुनाव जीतने में कामयाब रही।
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हुई। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे वो राज्य शामिल है, जिनमें से दो राज्यों में बीजेपी पिछले 15 वर्षों से सरकार में थी जबकि राजस्थान में बीजेपी विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में प्रचंड जीत दर्ज की थी।
हालांकि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जीत का अंतर बेहद कम था, लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सचुमच इतिहास रचा था। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने दबे मन से ही सही तीनों राज्यों में सरकार के लिे राहुल गांधी को श्रेय दिया, लेकिन वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की हार ने राहुल गांधी के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया।
राहुल गांधी पर डिप्रेसन 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बुरी हार के बाद हावी हुई होगी, क्योंकि 2019 लोकसभा में हार के बाद राहुल गांधी ने लंबी चुप्पी साध ली थी और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए किसी दूसरे की तलाश का अल्टीमेटम दे दिया था। राहुल गांधी का जिद कहेंगे या डिप्रेसन का असर राहुल गांधी को करीब दो ढाई महीने तक पद पर बने रहने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा मनाया गया।
लेकिन राहुल गांधी नहीं माने और अंततः हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के मद्देनजर पार्टी आलाकमान ने कांग्रेस की कमान पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों में सौंप दी। बहाना यह किया गया कि सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया है और कांग्रेस वर्किंग कमेटी बाद में अध्यक्ष चुनेगी।
नए कांग्रेस अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया संभवतः हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव परिणामों के बाद शुरू होनी थी, लेकिन दोनों राज्यों में पार्टी की हार के बाद लगता है एक बार फिर यह कवायद धीमी पड़ सकती है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनाई गईं 72 वर्षीय सोनिया गांधी को तब तक कांग्रेस की कमान थामनी पड़ सकती है जब पार्टी को कोई बड़ी जीत नहीं मिल जाती है।
झारखंड विधानसभा चुनाव और 2020 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम तक कांग्रेस नए अध्यक्ष की खोज की प्रक्रिया को ठंडे बस्ते में डाल सकती है, क्योंकि राहुल गांधी डिप्रेसन में है, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में राजनीति सीख रही हैं और सोनिया गांधी के अलावा कोई और विकल्प नहीं हैं।
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विपक्षी दलों के टारगेट लिस्ट से बाहर हुए राहुल गांधी
राहुल गांधी कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि विपक्षी राजनीतिक दलों की हिट लिस्ट से बाहर हो चुके हैं। मुख्य विपक्षी दल बीजेपी भी राहुल गांधी को अब अधिक महत्व देने के मूड में नहीं दिख रही है। कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के राहुल गांधी की अहमियत खुद कांग्रेस में भी घट गई है।
राहुल गांधी द्वारा नियुक्त पदाधिकारियों की हो रही है छुट्टी!
कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के राहुल गांधी की अहमियत खुद कांग्रेस में भी घट गई है। यही कारण है कि राहुल गांधी द्वारा नियुक्त किए गए विभिन्न राज्यों के पदाधिकारियों की छुट्टी की जा रही है। पूर्व हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं, जो राहुल गांधी के चहेते थे, लेकिन इधर राहुल गांधी गए और उधर उनकी कुर्सी भी छीन ली गई।
राहुल गांधी वर्सेज सोनिया गांधी ने बढ़ाया दर्द!
सोनिया गांधी वर्सेज राहुल गांधी नामक शीर्षक से मीडिया में खूब कलमें घिसी गईं। राहुल गांधी के चहेतों में शामिल संजय निरूपम ने अपनी दुख भरी दास्तां सुनाने के लिए मीडिया के सामने आए और कांग्रेस पार्टी के उन शीर्ष नेताओं को निशान पर लिया जो उनके मुताबिक अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की आड़ में राहुल गांधी के चेहतों की कुर्सी छीन रहे हैं।
राहुल गांधी के बयानों को गंभीरता से नहीं ले रहा विपक्ष
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हरियाणा में एक रैली के दौरान राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) मुद्दे बोल रहे थे। इसी दौरान पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर प्रतिक्रिया करते हुए उन्होंने कहा कि एनआरसी मुद्दे पर राहुल गांधी कितनी भी आपत्ति करें, लेकिन वर्ष 2024 तक देश से हर घुसपैठिए को बाहर किया जाएगा।
कांग्रेस की जीत के शुभंकर नहीं बन सके राहुल गांधी
राहुल गांधी को विपक्षी दल राहुल गांधी को चुनाव जीतने वाला शुभंकर तक बतलाने से नहीं चूकते हैं। केंद्र में सत्तासीन बीजेपी के कई नेता ऑन द रिकॉर्ड यह कह चुके हैं कि राहुल गांधी के कांग्रेस में रहते बीजेपी कोई चुनाव नहीं हार सकती है।
सोशल मीडिया मीम्स में शीर्ष पर रहते हैं राहुल गांधी
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी को लेकर मीम्स बनाए जाते है, जिसमें मजाकिया अंदाज में लिखा जाता है कि चुनावी रैली में राहुल गांधी की मौजूदगी ही बीजेपी की जीत का रहस्य है। राहुल गांधी की चुनावी कैंपन को विपक्षी दल अपनी जीत का शुभंकर मान लिया है। सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा मीम्स अगर बनते हैं तो वो राहुल गांधी के होते हैं।
कांग्रेस की जीत के हीरो नहीं बन सके राहुल गांधी
वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी न केवल पंजाब में धमाकेदार जीत दर्ज की बल्कि दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने का सपना देख रही आम आदमी पार्टी को प्रदेश की राजनीति से उठाकर पटकने भी कामयाब हुई। यह वहीं आम आदमी पार्टी थी, जिसने दिल्ली में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था।