Rahul Gandhi: कांग्रेस की निराशा के लिए अकेले राहुल बाबा जिम्मेदार नहीं!
बेंगलुरू। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की राजनीतिक समझ को लेकर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं और राजनीति के पुरोधा राजनीति में राहुल गांधी के भविष्य को लेकर भविष्यवाणी करते रहते हैं। वर्ष 2004 से सक्रिय राजनीति में आए राहुल गांधी के नेतृत्व में 26 से अधिक चुनावों में पराजय का मुंह देख चुकी 100 वर्ष से अधिक पुरानी राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अस्तित्व पर आज संकट के बादल मंडरा रहे हैं, क्योंकि राहुल गांधी के बाद कांग्रेस में कोई दूसरे नेता को उभारा नहीं गया है, जो राहुल गांधी की जगह ले सके।
राहुल गांधी की राजनीतिक असफलता को उनके व्यक्तित्व से जोड़ दिया गया है, लेकिन आज तक किसी राजनीतिक विश्लेषक ने कांग्रेस के पतन के लिए गांधी परिवार की मुखिया और अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष पर उस तरह से सवाल नहीं उठाया है, जैसा राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी पंकज शंकर ने अपनी वेबसीरीज पुत्र मोह में उठाने जा रहे हैं।
जी हां, लंबे समय तक गांधी परिवार के करीबी और निष्ठावान रहे पंकज शंकर कांग्रेस के पतन के लिए गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराया है। कांगेस अंतरिक्ष अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को निशाना साधते हुए पंकज शंकर कहते हैं कि राहुल गांधी की कथित विफलताओं के लिए सोनिया गांधी का पुत्र मोह जिम्मेदार है।
जब राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर थे, तो काफी समय तक उनका मीडिया का कामकाज संभाल चुके पंकज शंकर कहते हैं कि वो राहुल गांधी की कथित राजनीतिक विफलताओं का पूरा श्रेय गांधी परिवार को जाता है, जिससे एक बड़ी राजनीतिक दल के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।
कहा जाता है कि राहुल गांधी अनिच्छा से राजनीतिक है, क्योंकि उनकी रूचि और राजनीति दोनों में कोसों का फासला है। चूंकि एक बड़े राजनीतिक दल के एकलौते वारिस राहुल गांधी को गांधी परिवार का उत्तराधिकार संभालना है इसलिए जबरन उन्हें राजनीति में उतरना पड़ा है।
हालांकि यह काम उनकी बहन प्रियंका गांधी को अधिक सुहाता है, लेकिन अनिच्छुक राहुल गांधी को इसलिए पहला मौका दिया गया, क्योंकि हिंदुस्तान में पुरूष सत्तात्मक प्रणाली की जड़ें इस कदर जमी हुईं है कि निम्न वर्ग से लेकर उच्च वर्ग समान व्यवहार करता है। प्रियंका गांधी को मौका नहीं दिया गया, जिनमें स्पार्क था। राहुल गांधी को मौका दिया, जिनके नेतृत्व में कांग्रेस का भविष्य ही डार्क में पहुंच चुका है।
गौरतलब है वर्ष 2004 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अभी नेपथ्य में हैं। कांग्रेस की मानें तो राहुल गांधी मेडीटेशन के लिए विदेश गए हैं। संभव है 2008 से 2019 तक की हार की हताशा राहुल गांधी के अवसाद का कारण हो, जिसके इलाज के लिए राहुल गांधी को मेडीटेशन की जरूरत पड़ी होगी। हालांकि यह अपवाद नहीं है कि राहुल गांधी अक्सर राजनीति से फुरसत लेकर विदेश भ्रमण पर जाते रहते हैं।
लेकिन यह पहली बार है जब आधिकारिक रूप से कांग्रेस पार्टी द्वारा कहा गया है कि राहुल गांधी मेडीटेशन के लिए विदेश जा रहे हैं। हालांकि मेडीटेशन की वजहों के बारे में अभी तक कांग्रेस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया है इसलिए यह मान कर चला जा रहा है कि संभवतः हार दर हार की हत्याशा से राहुल गांधी डिप्रेशन के शिकार हो गए होंगे।
राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा इतनी पीड़ादायक रही है कि कोई सामान्य परिवार में राहुल गांधी होते तो अब तक कोई आत्मघाटी कदम उठा चुके होते, लेकिन कांग्रेस और गांधी परिवार पार्टी को जीवित रखने के लिए राहुल गांधी को संजीवनी की तरह इस्तेमाल कर रही है, यह अलग बात है कि जिस कस्तूरी की खोज कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार राहुल गांधी में कर रही है, उसमें राहुल गांधी की जरा भी रूचि नहीं है।
राहुल गांधी पिछले 15 वर्षों से राजनीति में है, लेकिन उनके प्रतिनिधुत्व में कांग्रेस रसातल पर पहुंच चुकी है। वर्ष 2004 से 2019 तक राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने ऐतिहासिक हार का सामना किया है, लेकिन पुत्र मोह में अंधी मां सोनिया गांधी अब भी राहुल गांधी को परोक्ष रूप से राजनीति में सक्रिय रखे हुए हैं जबकि राहुल गांधी कांग्रेस और राजनीति दोनों को टाटा-बॉय-बॉय कह चुके हैं।
इसकी बानगी हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिल गया था जब बीजेपी समेत सभी राजनीतिक दल दोनों राज्यों में चुनावी कैंपेन की तैयारी कर रही थीं, तो राहुल गांधी कथित रूप से बैंकॉक में हॉलीडे कर रहे थे। राहुल गांधी को लेकर राजनीतिक दलों द्वारा पूछताछ की गई तो कांग्रेस को मन मानकर राहुल गांधी को बीच हॉलीडे पर चुनावी रैलियों में उतारना पड़ा।
कांग्रेस आलाकमान चाहती तो राहुल गांधी को उनके हॉलीडे पर अकेला छोड़ सकती थी, लेकिन कांग्रेस ऐसा इसलिए नहीं कर सकी, क्योंकि राहुल गांधी अब भी कांग्रेस के शीर्ष नेता हैं। इसकी बानगी राहुल गांधी की राजनीतिक यात्राओं और उनके बयानों में देखा जाता है, जो राहुल गांधी किस हैसियत करते और देते हैं, यह स्पष्ट नहीं है।
सच यही है गांधी परिवार और कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के इतर किसी दूसरे नेता को उभारना ही नहीं चाहती है और यह तय सिलसिला निकट भविष्य में 2024 तक चलने वाला है। कांग्रेस में राहुल गांधी किसी पद पर नहीं रहते हुए अभी भी कांग्रेस अध्यक्ष पद की भूमिका में हैं और सोनिया गांधी सिर्फ उनका मुखौटा भर हैं। हालिया कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में नए कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाना था।
राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद पार्टी को नए नेतृत्व की जरूरत थी, जो कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सके, लेकिन पूरी कांग्रेस आलाकमान को कोई नेता नहीं मिला और उन्होंने 72 वर्षीय पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इसलिए कांग्रेस मुखिया का पद सौंप दिया ताकि गांधी परिवार को वज़ूद सलामत रह सके।
उल्लेखनीय है कांग्रेस पार्टी के पतन के लिए राहुल गांधी से अधिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के शीर्ष आलाकमान का हाथ है। राहुल गांधी पिछले 15 वर्षों से सक्रिय राजनीति में है, लेकिन राजनीतिक खांचे वाले व्यक्तित्व में राहुल गांधी अभी तक बाहर नहीं आ सके हैं, जो राहुल गांधी में नहीं है, सोनिया गांधी समेत पूरी कांग्रेस राहुल गांधी में वह व्यक्तित्व उभारने में लगी हुई है, जिससे पूरी पार्टी का दिवाला निकल चुकी है।
कांग्रेस पार्टी को अगर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री ही बनना था तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जगह राहुल गांधी को मौका दे सकती थी, जो पिता राजीव गांधी की तरह कम से कम सर्वाइव कर सकते थे। पूर्व वित्त मंत्री और अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह कौन से राजनीतिक व्यक्तित्व के स्वामी थे, जिन्हें पूरी कांग्रेस भारत के शीर्ष प्रधानमंत्रियों में से एक प्रधानमंत्री का तमगा देने से नहीं कतराती है।
कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल गांधी के साथ बिल्कुल पारंपरिक मां-बाप की तरह पेश आ रही है, जो राहुल गांधी पर अपने सपने थोप रही हैं। पिता राजीव गांधी को हालात ने प्रधानमंत्री बनाया और बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जिद में सोनिया गांधी ने कांग्रेस के हालात बिगाड़ दिए हैं। हालत यह है कि अब केवल पार्टी बची है, जो अपना जनाधार लगातार सिर्फ सोनिया गांधी का पुत्रमोह के कारण गंवा रही है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा और पार्टी महज 44 सीटों पर सिमट गई। महज दो डिजिट में सिमट चुकी अमेठी लोकसभा जैसी पारंपरिक सीट गंवा बैठी है। कहते हैं प्रधानमंत्री का रास्ता उत्तर प्रदेश में विशाल जीत से निकलता है, लेकिन कांग्रेस की हालत तो कांग्रेस में बेहद पतली है, जहां वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी महज एक सीट पर विजयी रही है, जो कि रायबरेली लोकसभा सीट है, तो फिर राहुल गांधी कैसे प्रधानमंत्री बनेंगे।
यही कारण है कि पुत्र मोह नामक वेब सीरीज लेकर आ रहे पंकज शंकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का नेतृत्व सौंपने की बात कहते हैं। उनका मानना है कि अगर प्रियंका गांधी ने पार्टी का नेतृत्व दिया गया होता तो कांग्रेस पार्टी की स्थिति कभी इतनी खराब नहीं होती।
उनका मानना है कि केवल प्रियंका गांधी वाड्रा ही कांग्रेस के भाग्य को बदल सकती हैं, लेकिन सोनिया गांधी का 'पुत्र मोह'कांग्रेस में उनकी बेटी की प्रगति ही नहीं, कांग्रेस की प्रगति में बाधक बना हुआ है। हालांकि यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी परिवारवाद के दुष्चक्र से फिर भी बाहर नहीं आ पाएगी।
पिछले चुनावों में ट्रेंड पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि देश की जनता ने अब परिवारवाद पॉलिटिक्स को भाव देना बंद कर दिया है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव इसके प्रमुख उदाहरणों में से एक हैं। जब तक कांग्रेस का आधुनिक परिपेच्छ में लोकतांत्रिक तरीके से पुनर्निर्माण नहीं होगा तब तक कांग्रेस का पुनर्उद्धार मुश्किल ही होगा।
क्योंकि अब देश का समझदार हो चुका वोटर ही नहीं, बल्कि अब कांग्रेसी लीडर भी सोनिया गांधी के पुत्र मोह और गांधी परिवार के खिलाफ लामबंद होना शुरू कर दिया है। इसकी बानगी केरल में युवा कांग्रेस नेता सीआर महेश हैं, जिन्होंने राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस का नेतृत्व कर रहीं सोनिया गांधी के नेतृत्व पर उंगली उठाई हैं।
सीआर महेश ने बाकायदा एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कहा था कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस की अगुवाई नहीं करना चाहते हैं तो उन्हें पीछे हट जाना चाहिए। केरल युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष सीआर महेश के मुताबिक अगर राहुल को आगे रह कर पार्टी की अगुवाई करने में दिलचस्पी नहीं है तो उन्हें पार्टी क्यों जबरन नेतृत्व करवाना चाहती है।
साफ था कि कांग्रेसी नेता भी समझ चुके हैं कि पुत्र मोह में कांग्रेस पार्टी की यह दुर्गति हुई है, लेकिन अफसोस यह है कि कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को कब यह बात समझ आएगी। क्योकि लगता नहीं है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी अभी नए कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव करने की जल्दी में हैं।
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