रघुराम राजन की अपील,संकट से उबरने के लिए विपक्ष समेत विशेषज्ञों की मदद ले सरकार
नई दिल्ली- रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मोदी सरकार को सलाह दी है कि कोरोना वायरस संकट से निपटने में वह उन तमाम विशेषज्ञों से राय ले जो इसमें अभी बड़े काम आ सकते हैं। उनके मुताबिक आजादी के बाद शायद इससे पहले देश पर इतना बड़ा संकट कभी नहीं आया है। उन्होंने मोदी सरकार से विपक्ष के लोगों से भी बात करने की सलाह दी है, जो उनके मुताबिक पहले कई संकटों से देश को उबार चुके हैं। बता दें कि रघुराम राजन यूपीए सरकार में आरबीआई के गवर्नर बने थे और मोदी सरकार में कार्यकाल पूरा करने के बाद वो रिजर्व बैंक से विदा हो गए थे। एक ब्लॉग के जरिए उन्होंने कोरोना वायरस के प्रकोप से देश को बचाने और उसकी वजह से पैदा हुई आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए सरकार को कई तरह के सुझाव दिए हैं।
जांचे-परखे विशेषज्ञों की सलाह ले सरकार- राजन
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के मुताबिक आजादी के बाद देश पर शायद इतना बड़ा संकट कभी नहीं आया, जितना की कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से पैदा हुआ है। इसके लिए उन्होंने मोदी सरकार से कहा है कि उसे सभी तरह के परखे हुए विशेषज्ञों और विपक्षी नेताओं से भी इस संकट का सामना करने के लिए मशवरा करनी चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने सरकार को इस बात के लिए आगाह भी किया है कि पहले से ही काम के बोझ से दबे लोगों के भरोसे सिर्फ प्रधानमंत्री के दफ्तर से सब कुछ का संचालन करने से ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाल। उन्होंने कहा है, 'बहुत कुछ किया जाना है। सरकार को उन लोगों से बात करनी चाहिए जिनकी विशेषज्ञता और क्षमता जांची-परखी हुई है, भारत में ऐसे कई लोग हैं जो इस समय मदद कर सकते हैं।' इसके लिए सरकार उन विपक्षी नेताओं का भी साथ ले सकती है, जिनके पास काफी अनुभव है और पहले भी भौगोलिक वित्तीय संकट से निपट चुके हैं।
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आजादी के बाद सबसे बड़ा चैलेंज- राजन
हालांकि, राजन ने इसके जरिए सब कुछ पीएमओ के जरिए ही हैंडल करने को लेकर सरकार पर निशाना भी साधा है और इसके बहाने उसे नसीहत भी देने की कोशिश की है। राजन के मुताबिक, 'हालांकि, अगर सरकार सब कुछ प्रधानमंत्री के दफ्तर से ही पहले से ही काम के बोझ से दबे लोगों के सहारे करना चाहेगी तो इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा और बहुत देर हो जाएगी।' राजन ने अपनी ये भावना 'परहैप्स इंडियाज ग्रेटेस्ट चैलेंज इन रिसेंट टाइम्स' के नाम से लिखे अपने ब्लॉग में जाहिर की है। उनके मुताबिक इस समय भारत आजादी के बाद शायद अब तक का सबसे गहरा आर्थिक आपात की स्थिति झेल रहा है। उन्होंने लिखा है कि 2008-09 में दुनिया बहुत बड़ा आर्थिक संकट झेल रही थी। लेकिन, हमारे यहां रोजगार के मौके बने रहे, कुछ वर्षों में कंपनियां और मजबूत हुईं, हमारी अर्थव्यस्था मोटे तौर पर मजबूत रही और हमारी सरकार की वित्तीय स्थिति भी अच्छी बन रही थी। राजन के मुताबिक 'आज इनमें से कुछ भी सच नहीं है और हम कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहे हैं।' राजन 2016 में अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर रिजर्व बैंक से विदा हुए थे।
कम प्रकोप वाले इलाकों में धीरे-धीरे शुरू हो काम- रघुराम
राजन को लगता है कि अगर भारत अभी भी सही कदम उठाए और प्राथमिकताओं को तय करे तो अपने मजबूत आधार की बदौलत कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट को मात दे सकता है और बेहतर भविष्य के लिए भी उम्मीदें बहाल करने में सक्षम साबित हो सकता है। उनके मुताबिक कोरोना के प्रकोप को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर टेस्टिंग, कठोर क्वारंटीन और सोशल डिस्टेंसिंग की दरकार है। उन्होंने लिखा है, '21 दिन का लॉकडाउन पहला चरण है, इससे भारत को बेहतर तैयारी का वक्त मिल गया है। इससे लड़ने के लिए सरकार स्वास्थ्यकर्मियों और संभावित स्रोतों मसलन, जनता, निजी, डिफेंस और रिटायर्ड लोगों की ओर देख रही है, लेकिन इन प्रयासों को कई गुना बढ़ाना पड़ेगा।' उन्होंने कहा कि इतने बड़े देश को पूरी तरह लॉकडाउन रखना संभव नहीं है, इसलिए हमें सोचना चाहिए कि कम प्रकोप वाले इलाकों में कुछ-कुछ गतिविधियां कैसे शुरू की जाएं। इसके लिए उन्होंने उन इलाकों में मौजूद सेहतमंद युवाओं का सहयोग लेने पर भी जोर दिया है।
अर्थव्यवस्था के लिए राजन का डोज
इसके अलावा उन्होंने लॉकडाउन की वजह से प्रभावित गरीबों और बेरोजगार हुए लोगों की चिंता करने को भी कहा है। उनके मुताबिक सरकार ने जो सहायता दी है, वह अधिकतर लोगों तक तो पहुंची है, लेकिन सब तक नहीं पहुंची है और जो पहुंची है वह भी पर्याप्त नहीं है। उन्होंने ये भी कहा है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह आसान नहीं है, लेकिन जरूरतमंदों को छोड़ा नहीं जा सकता, इसलिए हमें मानवीय पहलुओं को देखने के साथ-साथ कोरोना के खिलाफ जंग भी लड़ना होगा। इसके लिए उन्होंने कम महत्वपूर्ण खर्चों को कम करने या टालने की सलाह दी है और साथ ही तत्काल जरूरी कदमों को प्राथमिकता देने को कहा है। इसके साथ ही उन्होंने सरकार को निवेशकों का भरोसा फिर से बहाल करने के लिए भी कदम उठाने को कहा है। इसके लिए उन्होंने एनके सिंह कमिटी की सलाह के आधार पर स्वतंत्र वित्तीय परिषद गठित करने और मीडियम टर्म डेबिट टारगेट तय करने का रास्ता बताया है।
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