'जब तक जज साहब बैठे रहे, क़ुरान पढ़ता रहा'
2005 के दिल्ली धमाकों के संदेह में पकड़े जाने के 12 साल बाद बरी हुए रफ़ीक शाह की दास्तां.
भारतीय कश्मीर के ज़िला गांदरबल के अलिस्टेनग, शोहमा में 30 साल के मोहम्मद रफ़ीक शाह को जब गिरफ़्तार किया गया था उस समय घुप्प अंधेरा था और 12 साल बाद रिहा होकर जब वो अपने घर पहुंचे तो भी घुप्प अंधेरा ही है.
उनके रिश्तेदार और पड़ोसी उनकी रिहाई की ख़ुशी में मिठाईयां बाँट रहे हैं. हालाँकि वापस पहुंचने के बाद रफ़ीक घर से अभी तक बाहर नहीं निकले हैं. मिलने आ रहे कई लोग उनके लिए अनजान हैं.
रफ़ीक अहमद और मोहमद हुसैन फ़ाज़ली को वर्ष 2005 में दिल्ली के सिलसिलेवार बम धमाकों के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था.
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जिस दिन धमाके हुए, रफ़ीक यूनिवर्सिटी में अपनी एमए की क्लास में थे.
उन्हें नहीं पता कि उन्हें ही यूनिवर्सिटी से गिरफ़्तार क्यों किया गया. पर उनका कहना है कि शायद छात्र राजनीति में उनकी सक्रियता इसका कारण हो सकती है.
वे कहते हैं,"मैं यूनिवर्सिटी की छात्र यूनियन को बहाल करने की कोशिश कर रहा था. साथ ही कश्मीर में जो भी ज़ुल्म उस समय होता था मैं उसके ख़िलाफ़ आगे आगे रहता था. मुझे लगता है कि ये भी वजह हो सकती थी."
रफ़ीक बचपन में जब नर्सरी में पढ़ते थे, तो अपने पिता के साथ पहली बार दिल्ली गए थे.
2005 में दिल्ली में मारे गए 68 लोगों के बारे में रफ़ीक कहते हैं "मुझे उनके परिवार वालों से पूरी हमदर्दी है, क्योंकि उन्होंने भी तकलीफ़ झेली है और मैंने भी. मुझे इस बात का एहसास है कि जब अपना बिछड़ जाता है तो दिल पर क्या गुज़रती है."
जेल में ही पूरी की पढ़ाई
वे बताते हैं कि उन्हें पढ़ने का बेहद शौक था और वे एमए के बाद पीएचडी करना चाहते थे. जेल में भी 12 साल के दौरान रफ़ीक का ज़्यादातर समय पढ़ाई में गुज़रता था.
उन्होंने कहा, "जेल में भी क़ुरान ज़रूर पढ़ता था, इसके अलावा जो भी किताब होती थी पढ़ लेता था. रिहाई से पहले मैं नरसिम्हा राव पर लिखी गई एक किताब (हाफ़ लायन) पढ़ रहा था."
रफ़ीक ने जेल में रहते हुए ही 2010 में 69 प्रतिशत नंबरों के साथ एमए की पढ़ाई पूरी की.
रिहाई का दिन और सड़क से वापसी
वे कहते हैं कि हालिया दिनों में जब अदालत में फ़ैसला होना था तो रिहाई की उम्मीद तो थी, लेकिन घबराहट भी हो रही थी.
वह बताते हैं, "वहां बहुत ख़ौफ़ का माहौल था. मैं सिर्फ़ क़ुरान की आयतें पढ़ रहा था, जब तक कि जज साहब कुर्सी पर बैठे थे."
रिहा होने के बाद रफ़ीक हवाई जहाज़ में ना बैठकर सड़क के रास्ते घर लौटे.
उनका कहना था "मैं अपने माँ-बाप के उस दर्द को नज़दीक से देखना चाहता था जो उनको कश्मीर से मेरे पास आने से पहुंचता रहा होगा. मैं तीन दिन रास्ते में फंसा था, और तब लगा कि मेरे माँ-बाप पर क्या गुज़रती रही होगी."
बहनों की शादी
रफ़ीक अपनी शादी से पहले अपनी दोनों छोटी बहनों की शादी करवाना चाहते थे.
वह कहते हैं "उनकी शादी हुई मगर तब मैं जेल में था, मुझे जानकारी थी लेकिन मैं जान-बूझकर नहीं आना चाहता था, मुझे लगा मेरे आने से घर में माहौल बिगड़ सकता है."
रफ़ीक अभी शादी नहीं करना चाहते हैं.
रफ़ीक के 70 वर्षीय पिता मोहम्मद यासीन शाह कहते हैं कि 12 साल का सफ़र उनके लिए मुसीबतों भरा था.
वह कहते हैं,"अब मैं खुश हूँ कि बेटे की बेगुनाही साबित हुई. लेकिन बेटे के 12 साल बर्बाद हुए, उसकी ज़िंदगी ख़राब हो गई."
मोहमद यासीन को इस बात का डर है कि अगर वे पुलिस वालों के ख़िलाफ कार्रवाई की माँग करते हैं तो वो कुछ नया मामला बना सकते हैं.
रफ़ीक की गिरफ्तारी के दिन को याद करते हुए वो बताते हैं," जब मैंने पुलिसवालों से पूछा कि मेरे बेटे को क्यों ले जा रहे हो तो उन्होंने मुझे थप्पड़ मारा और मेरे साथ बदतमीज़ी की. उस दिन रफ़ीक की माँ और बहन नंगे पैर दौड़ीं. "
दो महीने बाद उन्हें पता चला कि बेटा तिहाड़ में बंद है.
रफ़ीक की माँ महमूदा कहती हैं,"जब तिहाड़ पहुंचते थे तो मैं ख़ुदा से सिर्फ़ ये दुआ मांगती थी कि मुझे इन रास्तों पर फिर कभी मत लाना.
"जब बेटियों की शादी थी तो जो दर्द था वह किसी को महसूस होने नहीं दिया. भाई को विदा कहे बग़ैर वह ससुराल को निकलीं."
"मैं 12 साल बाद सो सकी हूँ. सिर्फ सोचती थी कि बेटे के लिए मुझसे कहा जाए कि पहाड़ पर चढ़ जाओ तो मैं उसके लिए भी तैयार थी."